NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 3 ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन चलाना (Ruling The Countryside)
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (इतिहास) |
Chapter | 3rd |
Chapter Name | ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन चलाना (Ruling The Countryside) |
Category | Class 8th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 3 ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन चलाना (Ruling The Countryside) Question & Answer in Hindi रैयतों को नील की खेती से क्या नुकसान पहुंचा रहा था?, कंपनी द्वारा दीवानी प्राप्त करने के बाद कारीगर गांव छोड़कर क्यों भागने लगे?, किसानों को नील की खेती करने में मुख्य समस्या क्या आ रही थी?, अध्याय 3 हमें संसद क्यों चाहिए प्रश्न उत्तर?, रैयत किसान का मतलब क्या है?, भारत में नील की मांग क्यों थी?, नील की खेती के दो प्रकार कौन से हैं? नील विद्रोह का नेता कौन है?, खेती की शुरुआत कैसे हुई?, व्यापारी ग्रामीण इलाकों में क्यों जाते हैं?, कंपनी दीवान कब बनती है?, कंपनी को दीवानी मिलने से क्या क्या फायदे हुए होंगे?, रैयत और गैर रैयत में क्या अंतर है?, रियात का मतलब क्या होता है?, रयोट का क्या अर्थ है?, भारत में नील की खेती क्यों घटी आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 3 ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन चलाना (Ruling The Countryside)
Chapter – 3
ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन चलाना
प्रश्न – उत्तर
प्रश्न 1. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ-
रैयत | ग्राम समूह |
महाल | किसान |
निज | रैयतों की ज़मीन पर खेती |
रैयती | बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती |
उत्तर –
रैयत | ग्राम समूह |
महाल | किसान |
निज | रैयतों की ज़मीन पर खेती |
रैयती | बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती |
प्रश्न 2. रिक्त स्थान भरें
(क) यूरोप में वोड उत्पादकों को …………….. से अपनी आमदनी में गिरावट का ख़तरा दिखाई देता था।
उत्तर – नील
(ख) अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग …………………….. के कारण बढ़ने लगी।
उत्तर – औद्योगीकरण
(ग) …………………… की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय माँग पर बुरा असर पड़ा।
उत्तर – कृत्रिम रंग
(घ) चंपारण आंदोलन …………………….. के खिलाफ था।
उत्तर – नील बागान मालिकों।
आइए विचार करें
प्रश्न 3. स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – स्थाई बंदोबस्त-लार्ड कॉर्नवॉलिस ने 1793 में स्थायी बंदोबस्त लागू किया-
• राजाओं और तालुकदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई।
• जमींदारों को किसानों से राजस्व इकट्ठा कर कंपनी के पास जमा कराने का काम दिया गया।
• जमीनों की राजस्व राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गयी।
• किसानों से भूमि संबंधी अधिकार छीन लिए गए, जिससे किसान जमींदारों की दया पर निर्भर हो गए। वे अपनी ही जमीन पर मजदूरों की तरह काम करने लगे।
प्रश्न 4. महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?
उत्तर – महालवारी व्यवस्था और स्थायी बंदोबस्त में भिन्नता–
महालवारी व्यवस्था – बंगाल प्रेज़िडेंसी के उत्तर पश्चिमी के लिए होल्ट मैकेंजी नामक अंग्रेज़ ने एक नयी व्यवस्था 1822 में तैयार की गयी। इस व्यवस्था के अनुसार-
• गाँव के एक-एक खेत के अनुमानित राजस्व को जोड़कर हर गाँव या ग्राम संमूह (महाल) से वसूल होने वाले राजस्व का हिसाब लगाया गया।
• इस राजस्व को स्थायी रूप से निश्चित नहीं किया गया, बल्कि उसमें समय-समय पर संशोधन का प्रावधान किया गया।
• राजस्व इकट्ठा करने तथा कंपनी के पास जमा कराने का काम जमींदार के स्थान पर गाँव के मुखिया को दिया गया।
स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था – लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 में यह व्यवस्था लागू की-
• राजाओं और तालुकदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गयी। खेत के हिसाब से राजस्व निश्चित नहीं किया गया।
• ज़मीनों की राजस्व राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गयी। इस राशि में संशोधन का कोई प्रावधान नहीं किया गया।
• राजस्व इकट्ठा करने तथा कंपनी के पास जमा कराने का काम जमींदार को दिया गया।
प्रश्न 5. राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।
उत्तर – मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा समस्याएँ-
• ज़मीन से होने वाली आय को बढ़ाने के चक्कर में राजस्व अधिकारियों ने बहुत ज्यादा राजस्व तय कर दिया। किसान राजस्व नहीं चुका पा रहे तथा गाँव छोड़कर भाग रहे थे।
• मुनरो व्यवस्था से अफसरों को उम्मीद थी कि यह नई व्यवस्था किसानों को संपन्न उद्यमशील किसान बना देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
प्रश्न 6. रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?
उत्तर – रैयतों का नील की खेती से कतराने का कारण-
• किसानों को नील की खेती करने के लिए अग्रिम ऋण दिया जाता था, परंतु फसल कटने पर कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर किया जाता था जिससे वे अपना ऋण नहीं चुका पाते थे और कभी न खत्म होने वाले कर्ज के चक्र में फँस जाते थे।
• बागान मालिक चाहते थे कि किसान अपने सबसे उपजाऊ खेतों पर नील की खेती करें, लेकिन किसानों किसान को नील की खेती करने के लिए अतिरिक्त मेहनत तथा समय की आवश्कता होती थी जिस कारण किसान अपनी अन्य फसलों के लिए समय नहीं दे पाता था।
प्रश्न 7. किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?
उत्तर – बंगाल में नील के उत्पादन के धराशायी होने की परिस्थितियाँ-
• मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती करने से मना कर दिया।
• रैयतों ने निर्णय लिया कि न तो वे नील की खेती के लिए कर्ज लेंगे और न ही बागान मालिकों के लाठीधारी गुंडों से डरेंगे।
• कंपनी द्वारा किसानों को शांत करने और विस्फोटक स्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश को किसानों ने अपने विद्रोह का समर्थन माना।
• नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच करने के लिए बनाए गए नील आयोग ने भी बाग़ान मालिकों को जोर -जबर्दस्ती करने का दोषी माना और आयोग ने किसानों को सलाह दी वे वर्तमान अनुबंधों को पूरा करें तथा आगे से वे चाहें तो नील की खेती को बंद कर सकते हैं।
• इस प्रकार बंगाल में नीले का उत्पादन धराशायी हो गया।
आइए करके देखें
प्रश्न 8. चंपारण आंदोलन और उसमें महात्मा गांधी की भूमिका के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें।
उत्तर – अफ्रीका से वापसी के बाद गांधी जी चंपारण के नील उत्पादक किसानों के बीच उनकी समस्याओं को जानने के लिए पहुँचे-
• गांधी जी नील उत्पादक किसानों के विरोध को अपना समर्थन दिया।
• गांधी जी भारत में अपना पहला सत्याग्रह चंपारण से शुरू किया जोकि नील उत्पादक किसानों के समर्थन में बागान मालिकों के विरुद्ध था।
• सरकार ने दमनकारी नीति अपनाई और गांधी जी को गिरफ्तार किया गया।
• अंत में सरकार को झुकना पड़ा और नील उत्पादक किसानों की जीत हुई तथा गांधी जी के सत्याग्रह का प्रयोग सफल रहा।
प्रश्न 9. भारत के शुरुआती चाय या कॉफी बाग़ानों का इतिहास देखें। ध्यान दें कि इन बाग़ानों में काम करने वाले मजदूरों और नील के बाग़ानों में काम करने वाले मजदूरों के जीवन में क्या समानताएँ या फर्क थे।
उत्तर – चाय या कॉफी बाग़ानों तथा नील बाग़ानों के मजदूरों के जीवन में समानताएँ ब अंतर-
• चाय बागानों में मजदूरों को अनुबंधों के आधार पर रखा जाता था जबकि नील बागानों में ऐसा नहीं था।
• चाय या कॉफी बागानों में पूरे वर्ष काम होता था जबकि नील बाग़ानों में फसल कटाई या बुवाई के समय अधिक काम होता था।
• चाय या कॉफी बागानों से मज़दूर अनुबंध की अवधि के दौरान बागानों से बाहर नहीं जा सकते थे जबकि नील बाग़ानों में ऐसा नहीं होता था।
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