NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना (Tribals Dikus And The Vision of A Golden Age)
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | Social Science (इतिहास) |
Chapter | 4th |
Chapter Name | आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना (Tribals Dikus And The Vision of A Golden Age) |
Category | Class 8th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना (Tribals Dikus And The Vision of A Golden Age) Notes in Hindi जिसमे आदिवासी दीकुओं के खिलाफ क्यों थे?, आदिवासी शब्द का क्या अर्थ होता है?, आदिवासियों का इतिहास क्या है?, आदिवासी लोग कौन से भगवान को मानते हैं?, भारत में आदिवासी लोगों को आदिवासी कैसे कहा जाता था?, आदिवासी कितने प्रकार के होते हैं?, आदिवासी का धर्म क्या है?, आदिवासियों के पूर्वज कौन थे?, आदिवासियों का गुरु कौन था?, पहला आदिवासी कौन है?, भारत में सबसे ज्यादा आदिवासी कौन से राज्य में है?, आदिवासी समाज की कुलदेवी कौन है?, आदिवासी किसकी पूजा करते हैं?, भारत के आदिवासी कौन है?, आदिवासी हिंदू हैं?, आदिवासी संस्कृति क्या है?, आदिवासी में कितने सरनेम होते हैं? और आदिवासी परिवार क्या है? आदि के बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 8th History Chapter – 4 आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना (Tribals Dikus And The Vision of A Golden Age)
Chapter – 4
आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना
Notes
जनजातीय समूह की सक्रियता – उन्नीसवीं सदी तक देश के विभिन्न भागों में आदिवासी तरह-तरह गतिविधियों में सक्रिय थे।
कुछ झूम
(i) झूम खेती घुमंतू खेती को कहा जाता है।
(ii) इसमें लोग जंगलों में छोटे भूखंडों के पेड़ों के ऊपरी हिस्सों को काटकर तथा वहाँ की घास व झाड़ियों को जलाकर साफ कर देते थे।
(iii) राख को जमीन पर फैला देते थे फिर उसकी खुदाई कर बीज बिखेर कर खेती करते थे कुछ वर्षों तक (प्रायः दो या तीन वर्ष तक) जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है इसके पश्चात वे दूसरी जगह चले जाते थे।
(iv) जहाँ से उन्होंने अभी फसल काटी थी वह जगह कई सालों तक परती (कुछ समय के लिए बिना खेती के छोड़ दी जाने वाली जमीन ताकि उसकी मिट्टी दोबारा उपजाऊ हो जाए) पड़ी रहती थी।
(v) घुमंतू किसान सामान्यतः पूर्वोत्तर और मध्य भारत के पर्वतीय व जंगली पट्टीयों में रहते थे।
(vi) भारत के कुछ अन्य हिस्सों में भी घुमंतू किसान रहते हैं।
(vii) गुजरात के बहुत सारे वन क्षेत्रों में यह अभी भी जारी है। गुजरात की भील जनजाति भी घुमंतू खेती करती है।
कुछ शिकारी और संग्राहक
(i) उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) के जंगलों में रहने वाले खोंड तथा डोंगरिया एवं मध्य भारत के बैगाशिकारी और संग्राहक जनजातियाँ हैं।
(ii) ब्रिटिश काल में स्थानीय बुनकरों और चमड़ा कारीगरों को कपड़े व चमड़े की रंगाई के लिए कुसुम और पलाश के फूलों की जरूरत होती थी तो वे इन्हीं संग्राहक जनजातियों से ही कहते थे।
(iii) कई बार तो चीजों की अदला-बदली से काम चल जाता था वे अपने कीमती वन उत्पादों के बदले जरूरत की चीजें ले जाते थे।
(iv) जो चीजें आसपास पैदा नहीं होती थीं उन्हें हासिल करने के लिए आदिवासियों को खरीद-फरोख्त भी करनी पड़ती थी।
(v) इसकी वजह से वे कभी-कभी व्यापारियों और महाजनों पर आश्रित हो जाते थे।
कुछ जानवर पालते – पंजाब के पहाड़ों में रहने वाले वन गुज्जर और आंध्र प्रदेश के लबाडिया आदि समुदाय गाय-भैंस केझुंड पालते थे कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) के गद्दी समुदाय के लोग गड़रिये और कश्मीर के बकरवाल बकरियाँ पालते थे।
कुछ लोग एक जगह खेती करते थे – गोंड (मध्य भारत) और संथाल (झारखंड) जैसी अनेक जनजातियाँ एक जगह ठहरकर खेती करती थीं। बहुत सारे समुदायों में मुंडाओं की तरह जमीन पूरी कबीले की संपत्ति होती थी। ब्रिटिश अफसरों को एक जगह ठहर कर खेती करने वाली ऐसी जनजातियाँ शिकारी-संग्राहक या घुमंतू खेती करने वाली जनजातियों से अधिक सभ्य लगती थीं।
औपनिवेशिक शासन से आदिवासियों के जीवन पर क्याअसर पड़े? – ब्रिटिश शासन के दौरान आदिवासी समूह का जीवन बदल गया।
आदिवासी मुखियाओं का क्या हुआ? – अंग्रेजों के आने से पहले अनेक स्थानों पर आदिवासी मुखियाओं की अपनी पुलिस होती थी तथा जमीन और प्रबंधन के स्थानीय नियम वे खुद बनाते थे, परंतु अंग्रेजों के आने के बाद इनका जमीन पर मालिकाना हक तो बना रहा परंतु प्रशासनिक शक्तियाँ छिन गईं। इन मुखियाओं को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों को मानने के लिए बाध्य कर दिया गया। उन्हें अंग्रेजों को नजराना देना पड़ता था और अंग्रेजों के प्रतिनिधि की हैसियत से अपने समूहों को अनुशासन में रखना होता था।
घुमंतू काश्तकारों का क्या हुआ?
(i) ऐसे समूहों से अंग्रेजों को काफ़ी परेशानी थी जो यहाँ-वहाँ भटकते रहते थे।
(ii) वे चाहते थे किआदिवासियों के समूह एक जगह स्थायी रूप से रहें और खेती करें।
(iii) स्थायी रूप से एक जगह रहने वाले किसानों को नियंत्रित करना आसान था अंग्रेज़ अपने शासन के लिए आमदनी का नियमित स्रोत भी चाहते थे, फलस्वरूप उन्होंने ज़मीन के बारे में कुछ नियम लागू कर दिए।
(iv) भील (गुजरात व अन्य कई क्षेत्रों में भी) और नागा (नागालैंड) जैसी कई जनजातियाँ घुमंतू कृषि करती थीं।
(v) इन्हें स्थाई रूप से बसाने के लिए अंग्रेजों ने जमीन को मापकर प्रत्येक व्यक्ति का हिस्सा और लगान तय किया।
(vi) उन्होंने कुछ किसानों को भूस्वामी और दूसरों को पट्टेदार घोषित किया।
वन कानून और उसके प्रभाव – जैसे ही अंग्रेजों ने जंगल के भीतर आदिवासियों के रहने पर पाबंदी लगा दी उनके सामने यह समस्यापैदा हो गई कि रेलवे स्लीपर्स (लकड़ी के क्षैतिज तख्ते जिन पर पटरियाँ बिछाई जाती हैं) के लिए पेड़ काटने और लकड़ी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए मजदूरों का इंतजाम कहाँ से किया जाए?
उन्होंने तय किया कि झूम काश्तकारों को जंगल में जमीन के छोटे टुकड़े दिए जाएंगे और उन्हें वहाँ खेती करने की भी छूट होगी बशर्ते गांव में रहने वालों को वन विभाग के लिए मजदूरी करनी होगी इस तरह उन्होंने सस्ते श्रम की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वन गांव बसा दिए।
बहुत सारे आदिवासी समूहों ने औपनिवेशिक वन कानूनों का विरोध किया। उन्होंने नए नियमों का पालन करने से इनकार कर दिया और उन्हीं तौर तरीकों से चलते रहे जिन्हें सरकार गैर-कानूनी घोषित कर चुकी है। कई बार उन्होंने खुलेआम बग़ावत भी कर दी। 1906 में सोंग्राम संगमा द्वाराअसम में और 1930 के दशक में मध्य प्रांत में हुआ वन सत्याग्रह इसी तरह के विद्रोह थे।
व्यापार की समस्या
(i) 19 वीं शताब्दी में व्यापारी व महाजन आदिवासियों से वन उपज खरीदये, नकद कर्जा देने व मजदूरी पर रखने के लिए जंगलों में जल्दी-जल्दी आने लगे थे। जिसका आदिवासियों पर विपरित प्रभाव पड़ रहा था।
(ii) इसे हम रेशम उत्पादकों के उदाहरण से समझ सकते है।
(iii) 18वीं सदी में भारतीय रेशम की यूरोपीय बाजारों में भारी माँग थी।
(iv) झारखण्ड में स्थित हजारीबाग के आस-पास रहने वाले संथाल रेशम के कीड़े पालते थे।
(v) रेशम के व्यापारी अपने एजेंटो को भेजकर आदिवासियों को कर्जा देते थे व उनके कृमिकोषों को इकट्ठा कर लेते थे।
(vi) एक हजार कृमिकोषों के लिए उन्हें मात्र 3-4 रुपये ही दिये जाते थे जबकि आगे उन्हें 5 गुना कीमत पर बेचा जाता था।
(vii) रेशम उत्पादकों व निर्यातकों के बीच कड़ी का काम करने वाले बिचौलियों को जमकर मुनाफा होता था व रेशम उत्पादकों को बहुत मामूली फायदा मिलता था।
(viii) अधिककतर आदिवासी समुदाय बाजार व व्यापारियों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे थे।
नजदीक से देखने पर – उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के दौरान देश के विभिन्न भागों में जनजातीय समूहों ने बदलते कानूनों, अपने व्यवहार पर लगी पाबंदीयों, नए करों और व्यापारियों व महाजनों द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ कई बार विद्रोह किए। 1831-32 में कोल आदिवासियों ने और 1855 में संथालों ने विद्रोह किया था। मध्य भारत में बस्तर विद्रोह 1910 में हुआ और 1940 में महाराष्ट्र में वर्ली विद्रोह हुआ।
बिरसा मुंडा
(i) बिरसा का जन्म 1870 के दशक के मध्य में मुंडा परिवार में हुआ था मुंडा एक जनजातीय समूह हैजो छोटा नागपुर में रहता है विरसा के समर्थकों में क्षेत्र के दूसरे आदिवासी- संथाल और उराँव भी शामिल थे। बिरसा ने अपने समर्थकों को दीकुओं (बाहरी लोगों) के उत्पीड़न से आजाद कराने के लिए आंदोलन किया।
(ii) बिरसा का आंदोलन आदिवासी समाज को सुधारने का आंदोलन था। उसने मुंडा से आह्वान किया कि वे शराब पीना छोड़ दें, गांव को साफ रखें और डायन व जादू-टोने में विश्वास न करें। बिरसा ने ईसाई मिशनरियों और हिंदू जमींदारों का भी लगातार विरोध किया। वह उन्हें बाहर का मानता था जो मुंडा जीवन शैली नष्ट कर रहे थे।
(iii) अंग्रेजों को बिरसा आंदोलन के राजनीतिक उद्देश्यों से बहुत ज्यादा परेशानी थी यह आंदोलन मिशनरियों, महाजनों, हिंदू भूस्वामियों और सरकार को बाहर निकालकर बिरसा के नेतृत्व में मुंडा राज स्थापित करना चाहता था।
(iv) जब आंदोलन फैलने लगा तो अंग्रेजों ने सख्त कार्रवाई का फ़ैसला लिया। उन्होंने 1895 में बिरसा को गिरफ्तार किया और दंगे-फसाद के आरोप में दो साल की सजा सुनायी। सफेद झंडा बिरसा राज का प्रतीक था। सन 1900 में बिरसा की हैजे से मृत्यु हो गई और आंदोलन ठंडा पड़ गया।
काम की तलाश – असम के चायबागानों व झारखण्ड के कोयला खादानों में काम करने के लिए आदिवासियों को बड़ी संख्या में भर्ती किया गया। इन लोगों को ठेकेदारों के मार्फत भर्ती किया जाता था। ठेकेदार इन्हें बहुत कम वेतन देने के साथ ही वापस घर भी नहीं लौटने देते थे।
परती – कुछ समय के लिए बिना खेती छोड़ दी जाने वाली ज़मीन ताकि उसकी मिट्टी दोबारा उपजाऊ हो जाए।
साल – एक पेड़।
महुआ – एक फूल जिसे खाया जाता है या शराब बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
बेवड़ – मध्य प्रदेश में घुमंतू खेती के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द।
स्लीपर – लकड़ी के क्षैतिज तख़्ते जिन पर रेल की पटरियाँ बिछाई जाती हैं।
वैष्णव – विष्णु की पूजा करने वाले वैष्णव कहलाते हैं।
NCERT Solution Class 8th Social Science (History) Notes All Chapter |
NCERT Solution Class 8th Social Science (History) Question Answer All Chapter |
NCERT Solution Class 8th Social Science (History) MCQ All Chapter |
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |