भारत में गठबंधन सरकारों का उदय कई राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों का परिणाम है। इसका विकास स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक परिदृश्य में विभिन्न चरणों में देखा गया। इस पर प्रकाश डालते हुए निम्नलिखित बिंदु प्रमुख हैं:
1. कांग्रेस का प्रभुत्व और गिरावट
- स्वतंत्रता के बाद से 1967 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश की राजनीति पर हावी रही।
- 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा और गैर-कांग्रेसी दलों ने गठबंधन सरकारें बनाईं। यह गठबंधन राजनीति की शुरुआत थी।
2. 1977 का परिवर्तन
- आपातकाल (1975-77) के बाद, 1977 के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली और जनता पार्टी ने गठबंधन के रूप में केंद्र में सरकार बनाई। यह पहली बार था जब केंद्र में कांग्रेस के बिना सरकार बनी।
- हालांकि यह सरकार स्थिर नहीं रही, लेकिन इसने गठबंधन राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख बना दिया।
3. 1990 का दशक: गठबंधन युग की शुरुआत
- 1989 के बाद, भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा।
- राष्ट्रीय मोर्चा (1989), संयुक्त मोर्चा (1996-1998) और बाद में एनडीए (1998) व यूपीए (2004) जैसे गठबंधन बने।
- क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाव ने एकल-दलीय सरकार की संभावना को कम कर दिया।
4. क्षेत्रीय दलों का उदय
- विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों जैसे द्रमुक, अन्नाद्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, तेलुगु देशम आदि का उदय हुआ।
- इन दलों ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गठबंधन सरकारों की अनिवार्यता को जन्म दिया।
5. आर्थिक उदारीकरण और सामाजिक बदलाव
- 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद विभिन्न समूहों और समुदायों की राजनीतिक जागरूकता बढ़ी।
- जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण ने क्षेत्रीय और छोटे दलों को सशक्त किया।
6. गठबंधन सरकारों के प्रभाव
- गठबंधन सरकारों ने निर्णय लेने में सहमति और साझेदारी को बढ़ावा दिया।
- हालांकि, अस्थिरता और नीतिगत स्थगन जैसे मुद्दे भी सामने आए।
निष्कर्ष
भारत में गठबंधन सरकारों का उदय बहुदलीय लोकतंत्र की विशेषता है। यह राजनीति में विविधता, क्षेत्रीयता और लोकतांत्रिक साझेदारी को दर्शाता है। हालांकि, स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के बीच बेहतर संवाद और सहमति की आवश्यकता है।