भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता कि नीति पर चर्चा करें।

भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता (Secularism) एक बुनियादी विशेषता है। यह सिद्धांत भारतीय समाज की विविधता को सम्मान देने और सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार सुनिश्चित करने पर आधारित है। भारत की धर्मनिरपेक्षता की नीति पश्चिमी देशों की धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है, क्योंकि भारत धर्म के प्रति तटस्थ रहने के साथ-साथ सभी धर्मों को संरक्षण और समान अधिकार प्रदान करता है।

भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता:

  1. संवैधानिक प्रावधान:
    • प्रीएंबल (उद्देशिका): 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ा गया। इसके अनुसार, भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।
    • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध।
    • अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध।
    • अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (Right to Freedom of Religion) को सुनिश्चित करते हैं।
      • प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, प्रचार और उसका आचरण करने की स्वतंत्रता है।
      • कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
    • अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने की दिशा में राज्य को प्रयास करने का निर्देश।
  2. धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या:
    • राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है।
    • राज्य धर्म और राजनीति को अलग रखता है।
    • राज्य सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और संरक्षण देता है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएँ:

  1. सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता:
    • भारत का राज्य धर्म-विरोधी नहीं है। वह धर्म का सम्मान करता है और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता है।
    • सभी धर्मों को स्वतंत्रता दी गई है कि वे अपनी मान्यताओं और परंपराओं का पालन कर सकें।
  2. सांस्कृतिक विविधता का सम्मान:
    • भारत विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। धर्मनिरपेक्षता इन सभी को संविधान के दायरे में समान मान्यता देती है।
  3. धर्म और राज्य का संबंध:
    • राज्य किसी धर्म का पालन या समर्थन नहीं करता, लेकिन धर्म के अनुयायियों को उनकी आस्थाओं के पालन में सहायता करता है।

धर्मनिरपेक्षता के लाभ:

  1. सांप्रदायिक सद्भाव: यह धार्मिक संघर्षों को कम करता है और विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सौहार्द बनाए रखता है।
  2. समानता: धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त कर सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है।
  3. लोकतंत्र की मजबूती: यह धर्म और राजनीति को अलग रखकर लोकतंत्र को सशक्त बनाता है।

धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियाँ:

  1. सांप्रदायिकता: देश में समय-समय पर सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक संघर्षों से धर्मनिरपेक्षता को खतरा उत्पन्न होता है।
  2. राजनीतिक हस्तक्षेप: कुछ राजनीतिक दल धार्मिक मुद्दों को भड़काकर धर्मनिरपेक्षता की भावना को कमजोर करते हैं।
  3. समान नागरिक संहिता: अनुच्छेद 44 में दिए गए समान नागरिक संहिता को अभी तक पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका है।
  4. धार्मिक असहिष्णुता: समाज में कभी-कभी धार्मिक असहिष्णुता बढ़ती है, जो संविधान के धर्मनिरपेक्षता के आदर्श के विपरीत है।

उपसंहार:

भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता की नीति भारत की विविधता और बहुलतावाद को संरक्षित करने का एक सशक्त माध्यम है। हालांकि इसे पूरी तरह से लागू करने में चुनौतियाँ हैं, लेकिन यह भारतीय समाज में समानता, भाईचारे और न्याय की भावना को बनाए रखने के लिए अपरिहार्य है। धर्मनिरपेक्षता भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और सामाजिक एकता का मुख्य आधार है।