भारत द्वारा अपनाए गए मिले-जुले आर्थिक मॉडल (Mixed Economy) की आलोचना निम्नलिखित तीन प्रमुख बिंदुओं में की जा सकती है:
1. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच असंतुलन
- मिले-जुले मॉडल में सरकार और निजी क्षेत्र के बीच तालमेल की आवश्यकता होती है, लेकिन भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच असंतुलन देखने को मिलता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरशाही, भ्रष्टाचार, और अक्षमता के कारण संसाधनों का दुरुपयोग हुआ।
- निजी क्षेत्र को अपेक्षित स्वतंत्रता और प्रोत्साहन नहीं मिलने से उसकी वृद्धि बाधित हुई।
2. आर्थिक असमानता का बढ़ना
- यह मॉडल समानता की ओर बढ़ने का दावा करता है, लेकिन भारत में आर्थिक असमानता कम करने में यह प्रभावी नहीं रहा।
- अमीर और गरीब के बीच आय और संपत्ति का अंतर बढ़ता गया।
- क्षेत्रीय असमानताएँ भी बढ़ीं, जहाँ कुछ राज्य विकास के केंद्र बने, जबकि अन्य पिछड़े रहे।
3. नीतियों में अस्पष्टता और धीमी प्रगति
- सरकार द्वारा अपनाई गई योजनाओं और नीतियों में अस्पष्टता और अति-नियंत्रण ने विकास की गति को धीमा कर दिया।
- लाइसेंस राज और लालफीताशाही ने निजी क्षेत्र की पहल और नवाचार को बाधित किया।
- केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच तालमेल की कमी से योजनाएँ प्रभावी रूप से लागू नहीं हो सकीं।
निष्कर्ष
हालांकि भारत का मिले-जुला मॉडल सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच संतुलन लाने का प्रयास करता है, लेकिन कार्यान्वयन की खामियों, भ्रष्टाचार, और असमानता के कारण इसकी आलोचना की जाती है। इसे प्रभावी बनाने के लिए शासन में सुधार, नीतियों का सरलीकरण, और समानता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।