1975 में भारत में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा (25 जून 1975 से 21 मार्च 1977) भारतीय राजनीति के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विवादास्पद घटना थी। यह आपातकाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत लगाया गया था। सरकार ने इस कदम को “आंतरिक अशांति” के आधार पर सही ठहराया। इस निर्णय के पीछे दिए गए कारणों का विश्लेषण निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है:
1. आंतरिक अशांति का दावा
- तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने “आंतरिक अशांति” (Internal Disturbance) को आपातकाल लागू करने का आधिकारिक कारण बताया।
- सरकार का दावा था कि देश भर में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों, और राजनीतिक अस्थिरता से राष्ट्रीय एकता और कानून-व्यवस्था को खतरा था।
- बड़े पैमाने पर जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में चल रहे विरोध आंदोलनों ने सरकार पर दबाव बनाया, जिसे “संवैधानिक व्यवस्था के लिए खतरा” कहा गया।
2. अर्थव्यवस्था और औद्योगिक अशांति
- 1970 के दशक में भारत गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा था, जिनमें शामिल थे:
- तेल संकट (1973): जिससे ईंधन और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ गईं।
- बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी।
- औद्योगिक हड़तालें और श्रमिक असंतोष।
- इन आर्थिक चुनौतियों के कारण सरकार को देशव्यापी असंतोष का सामना करना पड़ा। सरकार ने दावा किया कि इन समस्याओं के कारण देश में “सामाजिक अस्थिरता” फैल रही थी।
3. जयप्रकाश नारायण आंदोलन और विरोध प्रदर्शन
- जेपी आंदोलन का उद्देश्य “संपूर्ण क्रांति” था, जिसमें भ्रष्टाचार, महंगाई, और गैर-जवाबदेह शासन के खिलाफ आवाज उठाई गई।
- 1974-75 के दौरान छात्र आंदोलन, मजदूर संगठन और विपक्षी दल इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए।
- 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित किए जाने के बाद, उनकी वैधता पर सवाल खड़े हुए।
- जयप्रकाश नारायण ने सेना और पुलिस से भी “गैर-कानूनी आदेशों” को न मानने का आह्वान किया, जिसे सरकार ने लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए खतरा माना।
4. न्यायिक चुनौती और राजनीतिक अस्तित्व का संकट
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद छोड़ने की स्थिति में डाल दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की सीमित अनुमति दी, लेकिन उनके अधिकारों को सीमित कर दिया।
- इस स्थिति में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने का प्रयास किया।
5. राजनीतिक अस्थिरता और विपक्ष का दबाव
- कई विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की।
- देश भर में विरोध प्रदर्शन तेज हो रहे थे, जो कभी-कभी हिंसक भी हो जाते थे।
- सरकार ने इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” के लिए खतरा करार दिया।
6. संविधान और सत्ता का दुरुपयोग
- संविधान का अनुच्छेद 352, जो आपातकाल की घोषणा की अनुमति देता है, का दुरुपयोग कर सरकार ने इसे अपने राजनीतिक हितों के लिए लागू किया।
- आलोचकों का मानना है कि “आंतरिक अशांति” का कारण उतना बड़ा नहीं था कि आपातकाल लगाया जाए।
वास्तविक कारणों की आलोचनात्मक व्याख्या
- लोकतांत्रिक मूल्यों पर संकट: कई इतिहासकार और विश्लेषक मानते हैं कि आपातकाल लगाने का वास्तविक उद्देश्य इंदिरा गांधी की राजनीतिक शक्ति को बनाए रखना और विपक्ष को दबाना था।
- सत्तावादी प्रवृत्ति: इंदिरा गांधी के नेतृत्व को सत्तावादी प्रवृत्ति के रूप में देखा गया, जहां व्यक्तिगत सत्ता और पार्टी के भीतर नियंत्रण को प्राथमिकता दी गई।
- विरोध का दमन: आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकार, और विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर असहमति को दबाया गया।
निष्कर्ष
सरकार द्वारा 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के लिए “आंतरिक अशांति” और “राष्ट्रीय सुरक्षा” जैसे तर्क दिए गए थे। लेकिन यह स्पष्ट है कि इसका मुख्य उद्देश्य इंदिरा गांधी के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करना और विपक्षी आंदोलनों को कुचलना था। आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय साबित हुआ, जिसने नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों को गंभीर चुनौती दी।