भारत छोड़ो आंदोलन
परिचय
भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त सन 1942 को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था।
यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। 8 अगस्त, 2021 को भारत ने भारत छोड़ो आंदोलन के 79 वर्ष पूरे किये, जिसे अगस्त क्रांति भी कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु
• 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया।
• गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में करो या मरो’ का आह्वान किया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।
• स्वतंत्रता आंदोलन की ग्रेड ओल्ड लेडी के रूप में लोकप्रिय अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।
• ‘भारत छोड़ो’ का नारा एक समाजवादी और ट्रेड यूनियनवादी यूसुफ मेहरली द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था। मेहरअली ने “साइमन गो बैक का नारा भी गढ़ा था।
आंदोलन की मांगे
• फासीवाद के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग पाने के लिये भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की मांग की गई।
• भारत से अंग्रेज़ों के जाने के बाद एक अंतरिम सरकार बनाने की मांग
आंदोलन की सफलता
i. भविष्य के नेताओं का उदयः राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों को अंजाम दिया जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे।
ii. महिलाओं की भागीदारी आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिससे आंदोलन के बारे में जागरूकता पैदा हुई।
iii. राष्ट्रवाद का उदय भारत छोड़ो आंदोलन के कारण देश में एकता और भाईचारे की एक विशिष्ट भावना पैदा हुई। कई छात्रों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये और लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी।
iv. स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया गया था और अंग्रेज़ों ने यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि स्वतंत्रता युद्ध समाप्ति के बाद ही दी जाएगी।
आंदोलन की असफलता
क्रूर दमन
• आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा देखी गई, जो कि पूर्व नियोजित नहीं थी।
• आंदोलन को अंग्रेजों द्वारा हिंसक रूप से दबा दिया गया, लोगों पर गोलियाँ चलाई गई लाठीचार्ज किया गया, गाँवों को जला दिया गया और भारी जुर्माना लगाया गया।
• इस तरह सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिये हिंसा का सहारा लिया और 1,00,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
निष्कर्ष
ब्रिटिश इस महत्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचे कि द्वितीय विश्व युद्ध की लागत के परिणामस्वरूप भारत दीर्घावधि में अशासनीय था, भले ही 1944 में भारत छोड़ो अभियान को तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार करने और इसके बजाय उस पर जोर देने के परिणामस्वरूप कुचल दिया गया था। यह युद्ध समाप्त होने के बाद ही हो सकता था।
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