अंग्रेजों द्वारा भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत और उसके प्रभाव का वर्णन कीजिए।

अंग्रेजों द्वारा भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत और उसके प्रभाव का वर्णन कीजिए।

उत्तर- परिचय

ब्रिटिश अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए आधुनिक पश्चिमी शिक्षा को लागू करना चाहते थे क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों को मशीन से बनी ब्रिटिश वस्तुओं की श्रेष्ठता के बारे में आश्वस्त करेगी, यह भारतीयों को व्यापार और वाणिज्य के लाभों को पहचानने के लिए प्रेरित करेगी।

अंग्रेजों द्वारा भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत

1835 में, अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया विलियम बेटिक, भारत के गवर्नर-जनरत और लॉर्ड मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शुरू करने का फैसला किया। अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 लॉर्ड विलियम बेटिक द्वारा बनाया गया एक विधायी अधिनियम था।

लॉर्ड मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का जनक कहा जाता है। उनका यह सोचना था कि भारत में उच्च तथा माध्यम वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा में तैयार कर एक ऐसा वर्ग तैयार किया जाए जो रंग और जाति से तो भारतीय हो लेकिन सोच पक्षात्य हो

भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव

अंग्रेजी भाषा का प्रभाव भारत पर लाभ और हानि दोनों ही रूपों में पड़ा है:

भारत में अंग्रेजी शिक्षा के लाभ

1. पाश्चात्य ज्ञान एवं अज्ञान के सम्पर्क –  भारत समय गुजरने पर अपनी प्राचीन संस्कृति तथा सभ्यता को भूलता जा रहा था। अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को अपनाकर पाश्चात्य साहित्य एवं विज्ञानों से भारतवासियों ने परिचय प्राप्त किया और उन्नति के पथ पर
अग्रसर हुआ।

2. भारतीय समाज का आधुनीकरण – अंग्रेजी शासन की स्थापना के समय भारतीय समाज की दशा बहुत ही शोचनीय थी यहाँ पर सतीप्रथा शिशुहत्या बाल विवाह, अस्पृश्यता आदि हानिप्रद कुरीतियाँ प्रचलित थी अंग्रेजी शिक्षा तथा सभ्यता से प्रभावित होकर भारतीयों ने समाज को एक नया रूप प्रदान किया।

3. साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जागृति – देश में बौद्धिक जागरण प्रारम्भ हुआ प्रान्तीय भाषाओं का भी विकास हुआ।

4. वैज्ञानिक पद्धति – अंग्रेजी के द्वारा भारत में वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा दी जाने लगी। 1897 में जगदीशचन्द्र बोस ने भौतिक विषयक अपनी खोजों से यूरोप के विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया। फलतः भारतीयों में यह आत्मविश्वास जात हुआ कि वैज्ञानिक क्षेत्र में भी प्रगति कर सकते हैं।

5. ललित कलाओं की उन्नति – भारत सरकार ने मुम्बई मद्रास कोलकाता और लाहौर में कला विद्यालय स्थापित करके भारतीय कलाओं को पुनर्जीवित किया।

6. शिक्षा प्रसार के नवीन साधन – अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत मुद्रणालयों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, रेडियो, चलचित्रों आदि को महत्वपूर्ण स्थान दिया।

7. भारतीय पुनर्जागरण – अंग्रेजी शिक्षा द्वारा भारतीयों के विचारों तथा दृष्टिकोणों में अमूल परिवर्तन आया। परिणामस्वरूप भारत में उसी प्रकार की मानसिक प्रगति हुई जैसे कि यूरोप में पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दियों में पुनर्जागरण के समय हुई थी।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा की हानियाँ

1. अंग्रेजों द्वारा चलाई गई शिक्षा पद्धति भारतीय नहीं है-

श्री अरविन्द ने लिखा है कि दुर्भाग्यवश भारत में सौ वर्ष से अधिक समय से वह शिक्षा चल रही है जो भारतीय नहीं है। यह शिक्षा पश्चिमी ढंग की है और इसे भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप भी नहीं बताया गया है। वास्तव में अंग्रेजी शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि इसमें कोई अर्थ सिद्ध नहीं होता है। यह हमारी भौतिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है इसलिए हमें इससे कोई लाभ नहीं हो पाता है।

अंग्रेजी शिक्षा ने विभाजित भारत को भी विभाजित किया है जहाँ बहुत सी जाति प्रथा है वहाँ एक और जाति को जन्म दिया है।

2. अंग्रेजी केन्द्रित पाठ्यक्रम –  अंग्रेजी माध्यम ने हमारे बच्चों के मस्तिष्क को निष्क्रिय बना दिया है और इतना बोझ डाला है कि वे रहने के अतिरिक्त कोई अनुसन्धान कार्य करने योग्य नहीं रहे हैं और इस प्रकार वे अपने ज्ञान को अपने समाज और परिवार के लिए उपयोगी नहीं बना पाते हैं।

3. पुस्तकों पर आधारित शिक्षा प्रणाली – वर्तमान शिक्षा प्रणाली पुस्तकों पर आधारित है। इसके द्वारा बालक ग्रामीण जीवन के लिए उपयुक्त नहीं बन पाता है। इसके द्वारा उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं होता है।

4. शिक्षा प्रणाली में नागरिकता का अभाव – वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बालकों के भाव और शारीरिक विकास के प्रशिक्षण का अभाव है। यह उनमें नागरिकता के गुण उत्पन्न करने में पूर्णतया असफल रही है।

5. महंगी शिक्षा – परम्परागत शिक्षा प्रणाली महंगी है। शिक्षा आत्मनिर्भर नहीं, अतः लाखों लोगों को शिक्षा देने का कार्य बहुत महंगा पड़ता है।

6. शिक्षा में भारी व्यर्थता

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से बहुत थोड़े ही बच्चे हाई स्कूल पास कर पाते हैं। प्रत्येक कक्षा में बहुत से बच्चे असफल हो जाते हैं। प्रतिवर्ष सामाजिक धन का भारी अपव्यय होता है। इतना ही नहीं, धन के अपव्यय के साथ-साथ विद्यार्थियों की शक्ति तथा समय की भी हानि होती है और माता-पिता को भी भारी असन्तोष होता है।

निष्कर्ष

ब्रिटिश कालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भारतीयों का बौद्धिक तथा नैतिक विकास करना था। लॉर्ड मेकाले के द्वारा 1835 में जारी विवरण पत्र और चाल्लर्स वुड के 1854 के घोषणा-पत्र से स्पष्ट है कि अंग्रेजी शिक्षा द्वारा भारत में रहने वाले व्यक्तियों को बौद्धिक और नैतिक दृष्टि से शिक्षा प्रदान करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना गया।

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