स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन के योगदान का विश्लेषण कीजिए।

प्रश्न स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन के योगदान का विश्लेषण कीजिए।

अथवा

असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलनों में गांधी की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर- परिचय

अंग्रेजों के अत्याचार से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था अंग्रेजों द्वारा प्रस्तावित अन्यायपूर्ण कानूनों और कार्यों के विरोध में देशव्यापी अहिंसक आंदोलन था। इस आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना बंद कर दिया था। महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक हथियार के रूप में प्रयोग किया था। असहयोग आन्दोलन का संचालन स्वराज की माँग को लेकर किया गया। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग न करके कार्रवाई में बाधा उपस्थित करना था।

असहयोग आन्दोलन

1. अधिवेशन का आयोजन

सितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में ‘कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन का आयोजन किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्रवाई करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग व सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।

कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि, “अंग्रेज़ी सरकार शैतान है, जिसके साथ सहयोग सम्भव नहीं। अंग्रेज़ सरकार को अपनी भूलों पर कोई दुःख नहीं है, अतः हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि नवीन व्यवस्थापिकाएँ हमारे स्वराज्य का मार्ग प्रशस्त करेंगी स्वराज्य की प्राप्ति के लिए हमारे द्वारा प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई जानी चाहिए।”

2. प्रस्ताव का विरोध

गांधी जी के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए ऐनी बेसेन्ट ने कहा कि,”यह प्रस्ताव भारतीय स्वतंत्रता को सबसे बड़ा धक्का है। गांधी जी के इस विरोध तथा समाज और सभ्य जीवन के विरुद्ध संघर्ष की घोषणा का सुरेन्द्रनाथ बनर्जी मदनमोहन मालवीय, देशबन्धु चित्तरंजन दास, विपिनचन्द्र पाल, मुहम्मद अली जिन्ना शंकर नायर, सर नारायण चन्द्रावरकर ने प्रारम्भ में विरोध किया। फिर भी अली बन्धुओं एवं मोतीलाल नेहरू के समर्थन से यह प्रस्ताव कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया। यही वह क्षण था, जहाँ से गाँधी युग की शुरुआत हुई।

3. गवर्नमेन्ट ऑफ इंडिया एक्ट

सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख्तियार किये और 1935 का गवनमिन्ट ऑफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया।

स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन का योगदान

असहयोग आंदोलन की अनिवार्य विशेषता यह थी कि अंग्रेजों की क्रूरताओं के खिलाफ लड़ने के लिए शुरू में केवल अहिंसक साधनों को अपनाया गया था। इस आंदोलन ने अपनी रफ्तार सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को लौटाकर और सिविल सेवाओं, सेना, पुलिस, अदालतों और विधान परिषदों, स्कूलों, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके किया गया।

1. कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों व महाविद्यालयों की स्थापना की जानी थी तथा सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों का बहिष्कार किया जाना था।

2. इसके अलावा, विभिन्न विवादों का निपटान करने के लिए पंचायतों की स्थापना की जानी थी।

3 . इस दौरान यह भी तय किया गया के हाथों से होने वाली कताई बुनाई को प्रोत्साहन दिया जाएगा और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाएगा, ताकि स्वदेशी कपड़ों को अधिक से अधिक प्रसारित किया जा सके।

4. इस आंदोलन के अंतर्गत अस्पृश्यता का अंत करने की बात कही गई तथा हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया ताकि आंदोलन का जनाधार विस्तृत किया जा सके।

5. इसके अंतर्गत यह भी तय किया गया कि विभिन्न सरकारी समारोह का बहिष्कार किया जाएगा तथा सरकारी उपाधियों व सरकारी सम्मान को लौटा दिए जाएंगे। इसी के अंतर्गत महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई केसर ए हिंद की उपाधि, जूलू युद्ध पदक और बोअर पदक अंग्रेजों को लौटा दिए थे।

6. इस आंदोलन के दौरान यह भी अपेक्षा की गई थी कि सरकार के अंतर्गत अनेक अवैतनिक पदों पर काम करने वाले लोग तथा स्थानीय निकायों निकायों में मनोनीत पदाधिकारी अपने अपने पदों से इस्तीफा दे देंगे और ब्रिटिश सरकार का बहिष्कार करेंगे।

7. इस संदर्भ में गांधी जी ने सितंबर 1921 में यह कहा था यदि ये सभी कार्यक्रम सफलतापूर्वक लागू होते हैं, तो 1 वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त हो जाएगा।

असहयोग आंदोलन की वापसी

5 फरवरी, 1922 को वर्तमान गोरखपुर चौरी चौरा नामक स्थान पर एक हिंसक भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला कर दिया और उसे आग के हवाले कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप लगभग 20 पुलिसकर्मी मारे गए। इस घटना को इतिहास में चौरी चौरा कांड के नाम से जाना जाता है।

चूंकि महात्मा गांधी ने अहिंसा के दर्शन के सहारे असहयोग आंदोलन आरंभ किया था, लेकिन चौरी चौरा घटना के कारण व्यापक हिंसा सामने आई। इससे रुष्ट होकर गांधी जी ने 12 फरवरी, 1922 को बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा की और इसके साथ ही असहयोग आंदोलन समाप्त हो गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधी की भूमिका

महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक हथियार के रूप में प्रयोग किया था। इस आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी के प्रसिद्ध दांडी मार्च के कारण हुई थी। दरअसल 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से महात्मा गांधी ने आश्रम के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर दांडी मार्च का आयोजन किया था।

दांडी यात्रा या नमक सत्याग्रह, महात्मा गांधी के नेतृत्व में औपनिवेशिक भारत में अहिंसक सविनय अवज्ञा का एक कार्य था। चौबीस दिवसीय मार्च 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रूप में चला।

12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ एक यात्रा का नेतृत्व किया और 5 अप्रैल 1930 को दांडी में समुद्र पर पहुंचे। उनके द्वारा तय की गई दूरी 241 मील थी गांधीजी ने 6 अप्रैल 1930 को दांडी में नमक कानून तोड़ा।

1. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार की नीतियों का खंडन हुआ था जिससे उनकी कार्यप्रणाली बेहद बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन की सामाजिक जड़ों को मजबूती मिली थी जिसके कारण भारत को आजादी मिली थी। इसके अलावा इस आंदोलन के कारण सामाजिक आधार का भी विस्तार हुआ जिसके कारण देश के विभिन्न वर्ग के लोगों में देश की आजादी के प्रति जागरूकता फैली।

2. इस आंदोलन के द्वारा महात्मा गांधी ने भारतीय जनता के मानवाधिकारों के प्रति संघर्ष करने के नए मार्ग को प्रशस्त किया। इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को नशाबंदी एवं करबंदी जैसे कार्य करने पड़े जिससे भारतीय नागरिकों को लाभ मिला।

3. सविनय अवज्ञा आंदोलन में देश की महिलाओं, किसानों, गरीबों एवं निम्न वर्गीय लोगों की बराबर भागीदारी को देखा गया जिससे महात्मा गांधी को भारत का एकीकरण करने में सहायता प्राप्त हुई। इसके अलावा इस आंदोलन ने नारी शक्ति को संचित करने का कार्य भी किया था जिससे उनका सार्वजनिक जीवन में प्रवेश हुआ एवं भारतीय मूल की महिलाओं को विशेष रूप से लाभ मिला।

4. इस आंदोलन के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण संभव हो सका। सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

5. माना जाता है कि सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण ही ब्रिटिश सरकार को 1935 ई को भारत शासन अधिनियम पारित करना पड़ा था। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है। सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण भारतीय नागरिकों ने अहिंसा के मार्ग को धारण किया जिससे भारतीयों आत्म बल की वृद्धि देखी गई।

निष्कर्ष

असहयोग आंदोलन असहयोग आंदोलन को एक शांति रूप से स्थापित करने में महात्मा गाँधी सफल नहीं हो पाए जिसका परिणाम चौरी-चौरा कांड को जन्म दे दिया जिससे 13 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया तथा न्यायाधीश ब्रूम फ़ील्ड ने गांधी जी को असंतोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष कीकैद की सजा सुनाई।

You Can Join Our Social Account

YoutubeClick here
FacebookClick here
InstagramClick here
TwitterClick here
LinkedinClick here
TelegramClick here
WebsiteClick here