NCERT Solutions Class 9th भूगोल (Social Science) Geography Chapter – 4 जलवायु (Climate) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 9th भूगोल (Social Science) Geography Chapter – 4 जलवायु (Climate)

Text BookNCERT
Class  9th
Subject भूगोल (Social Science)
Chapter4th
Chapter Nameजलवायु (Climate) 
CategoryClass 9th Social Science Geography
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 9th भूगोल (Social Science) Geography Chapter – 4 जलवायु (Climate) Notes In Hindi जिसमें हम जलवायु, जलवायु से आप क्या समझते हैं, भारत में कितने प्रकार की जलवायु है, जलवायु का क्या कारण है, 6 प्रकार की जलवायु क्या है, जलवायु का महत्व क्या है, जलवायु कैसे बनती है, जलवायु क्षेत्र कितने हैं, भारत में 5 जलवायु क्षेत्र कौन से हैं, जलवायु के 4 प्रकार कौन से हैं, भारत की जलवायु का नाम क्या है, भारत में जलवायु का कार्य कौन करता है, मौसम और जलवायु में क्या अंतर होता है, जलवायु के जनक कौन है, जलवायु में कौन से तत्व हैं, भारत की जलवायु क्यों कहा जाता है। आदि इसके बारे में हम Notes  विस्तार से पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 9th भूगोल Social Science Geography Chapter – 4 जलवायु (Climate) 

अध्याय – 4

जलवायु

Notes

जलवायु – एक विशाल क्षेत्र में लंबे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है। मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है मौसम तथा जलवायु के तत्त्व, जैसे तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता तथा वर्षण एक ही होते है।

जलवायवी नियंत्रण – किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छः प्रमुख कारक हैं – अक्षांश, तुंगता (ऊँचाई), वायु द एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण है।

मौसमजलवायु
मौसम हमेशा छोटे समय की वायुमंडलीय दशा को दर्शाता है।जलवायु एक लम्बे समय की वायुमंडलीय दशा को दर्शाती है।
मौसम एक दिन में बहुत बार बदल सकता है।जलवायु बहुत लम्बे समय तक नहीं बदलती
मौसम की पढाई को मौसम विज्ञान कहा जाता है।जलवायु की पढाई को जलवायु विज्ञानं कहा जाता है।

भारत की जलवायु – भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु की अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ है।

मानसून – मानसून शब्द की उत्पति अरबी शब्द ‘मौसिम‘ से हुई है, जिसका मतलब या फिर अर्थ है “मौसम” मानसून का अर्थ, एक वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन से है।

तापमान – गर्मियों में राजस्थान में कुछ जगह 50°C तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20°C तक रहता है और जम्मू के द्रास का तापमान 45°C तक रहता है।

वर्षा – हिमालयी भागों में वर्षा हिम के रूप में होती है तथा अन्य भागो में वर्षा के रूप में मेघालय में लगभग वार्षिक वर्षा 400 सेंटीमीटर तक होती है जबकि राजस्थान जैसे इलाके में 10 सेंटीमीटर तक ही होती है।

महाद्वीपीय अवस्था – (गर्मी में बहुत अधिक गर्म एवं सर्दी में बहुत अधिक ठंडा) इस प्रकिया को महाद्वीपीय अवस्था कहते है।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक – किसी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक – अक्षांश, ऊँचाई, वायुदाब, पवन तन्त्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धारायें तथा उच्चावच है।

अक्षांश – अक्षांश पर किसी भी देश की स्थिति का प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

ऊँचाई – ऊँचाई के बढ़ने पर तापमान में कमी होती जाती है।

समुद्र से दूरी – समुद्र से दूर होने पर विषम जलवायु तथा निकट होने पर सम जलवायु होती है।

महासागरीय धाराएँ – गर्म महासागरीय धाराओं के प्रभाव के कारण जलवायु सम और ठंडी धाराओं के कारण जलवायु विषम होती है।

वायुदाब – किसी भी क्षेत्र का वायुदाब उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करता है। उसे वायुदाब कहा जाता है।

जेट धारा – जेट धारा क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊंचाई वाली पश्चिमी पवने होती है जिनकी गति 110 किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर 180 किलोमीटर प्रतिघंटा तक होती है ये धारा भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिम हिस्से में शीतकालीन वर्षा लाती है।

जेट धारा भारत में गर्मियों को छोड़ कर पूरे साल हिमालय के दक्षिण में बहती हैं ये धारा 270 से 300 उत्तर अक्षांश के बीच होती है।

अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र

ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है यहीं पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है, लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ-साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।

एलनीनो – एलनीनो एक गर्म जलधारा है यह पेरु के तट पर उत्पन्न होती है, और पेरु की शीतधारा को अस्थायी रूप से हटाकर उसका स्थान ले लेती है।

मानसून का आगमन और वापसी

मानसून का समय जून के शुरू से लेकर मध्य सितम्बर तक होता है यह समय लगभग 100 से 120 दिन का होता है। इसके आने से सामान्य वर्षा बढ़ जाती है और कई दिनों तक लगातार होती रहती है इसे मानसून प्रस्फोट भी कहा जाता है।

जून के पहले हफ्ते में मानसून भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर से प्रवेश करता है इसके बाद यह दो भागों में बंट जाता है अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा अरब सागर शाखा लगभग दस दिन बाद 10 जून के आसपास मुंबई में पहुँचती है और बंगाल की खाड़ी शाखा भी तेजी से आगे की ओर बढ़ती है।

जून के पहले हफ्ते में यह असम में पहुँच जाती है और ऊंचे पर्वतों के कारण यह मानसूनी पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की और मुड़ जाती है। मध्य जून तक अरब सागर शाखा सौराष्ट्र, कच्छ एवं देश के मध्य भागों में पहुँच जाती है अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा दोनों गंगा के मैदान के उत्तर पश्चिम भाग में आपस में मिल जाती है।

दिल्ली में मानसूनी वर्षा बंगाल की खाड़ी शाखा से जून के अंतिम हफ्ते में होती है, जुलाई के प्रथम हफ्ते तक मानसून पश्चिमी उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में पहुँच जाती है।

मध्य जुलाई तक मानसून हिमाचल प्रदेश एवं देश के अन्य हिस्सों तक पहुँच जाती है मानसून की वापसी देश के उत्तर पश्चिमी राज्यों से सितम्बर में शुरू हो जाती है और मध्य अक्टूबर तक मानसून प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से पूरी तरह पीछे हट जाती है और दिसंबर के प्रारंभ तक, मानसून की वापसी हो जाती है।

मानसून का फटना – अचानक ही कई दिनों तक वर्षा का लगातार होना और प्रचंड रूप रखना मानसून का फटना कहलाता है।

मानसूनी हवायें – वर्षा ऋतु में भारत में हवायें समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं, जिन्हें हम मानसूनी हवायें कहते है।

मानसूनी हवाओं का विभाजन – मानसूनी हवाओं को दो भागों में बांटा जाता है।

• दक्षिणी – पश्चिमी मानसून
• उत्तरी – पूर्वी मानसून

दक्षिणी पश्चिमी मानसून

• यह मानसून अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उत्तर की ओर बढ़ता है।
• ये मानसूनी पवने जून से सितम्बर माह में बहती है।
• ये पवने देश व्यापी वर्षा करती है।

उत्तरी – पूर्वी मानसून

यह मानसून उत्तर – पूर्व से समुद्र की ओर बढ़ता है।
ये पवनें अक्टूबर – नवम्बर माह में चलती है।
ये पवने तमिलनाडु में वर्षा करती है।

कोरिआलिस बल – पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इसे फेरेल का नियम भी कहा जाता है।

ऋतुएँ – मानसूनी जलवायु की विशेषता एक विशिष्ट मौसमी प्रतिरूप होता है। एक ऋतु से दूसरे ऋतु में मौसम की अवस्थाओं में बहुत अधिक परिवर्तन होता है। भारत में मुख्यतः चार ऋतुओं को पहचाना जा सकता है।

शीत ऋतु – मध्य नवम्बर से फरवरी तक
ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मई तक
वर्षा ऋतु – जून से सितम्बर
लौटते हुए मानसून की ऋतु – अक्टूबर से नवम्बर

शीत ऋतू

यह मध्य नवम्बर से शुरू होकर फरवरी तक रहती है, भारत के उत्तरी भाग में दिसंबर और जनवरी सबसे ठन्डे महीनें होते है।

दक्षिण में औसत तापमान 24°C तक होता है जबकि उत्तर भारत में 10°C से 15°C तक होता है।

इस ऋतु में देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है तथा आसमान साफ़ होता है और तापमान तथा आद्रता कम होती है शीतकाल में वर्षा बहुत कम होती है लेकिन यह वर्षा रबी की फसल के लिए बहुत ज़रूरी होती है।

प्रायद्वीपीय भाग में शीत ऋतु स्पष्ट नहीं होती क्योंकि समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण शीत ऋतू में भी यहाँ तापमान में ज्यादा परिवर्तन नहीं होता।

ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है और मार्च में दक्कन के पठार का उच्च तापमान लगभग 38 डिग्री सेल्सियस होता है और अप्रैल में मध्य प्रदेश और गुजरात का तापमान लगभग 42 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

मई में देश के उत्तर पश्चिमी भागों का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक होता है लेकिन प्रायद्वीपीय भारत में समुद्री प्रभाव के कारण तापमान कम होता है देश के उत्तरी भाग में तापमान में वृद्धि होती है तथा वायुदाब में कमी आती है।

लू – ये धूलभरी, गर्म और शुष्क पवनें होती हैं जो मई जून में दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में चलती है।

ऋतु वर्षा ऋतु – जून के प्रारंभ में उत्तरी भारत में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है यह दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनों को आकर्षित करती है यह पवने गरम महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती है इसलिए यह अपने साथ बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती है यह पवने बहुत तेज गति से चलती है।

इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर पूर्वी भागों में होती है और खासी पहाड़ी के दक्षिण में स्थित मासिनराम में विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा होती है।

राजस्थान और गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है, मानसून से जुड़ी एक और परिघटना है जिसे मानसून का विराम कँहा जाता है इसमें आद्र और शुष्क दोनों अंतराल होते है, मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ ही दिनों तक होती है और इनमें वर्षा रहित अंतराल भी होते है।

जब मानसून के गर्त का अक्ष मैदान के ऊपर होता है तब इन भागों में अच्छी वर्षा होती है तथा जब अक्ष हिमालय के ऊपर चला जाता है तब मैदानों में लंबे समय तक शुष्क अवस्था रहती है तथा हिमालय की नदियों के पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्रों ने भारी बारिश होती है।

विभिन्न कारणों से ये गर्त उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकते रहते हैं, इस भारी वर्षा के कारण मैदानों में विनाशकारी बाढ़ आती हैं और जान माल की हानि होती है।

मानसून का आगमन और वापसी अव्यवस्थित होती है जिसके कारण कभी कभी ये देश के किसानों के कृषि कार्यों को अव्यवस्थित कर देता है।

मानसून की वापसी

अक्टूबर-नवम्बर के दौरान दक्षिण की तरफ सूर्य के आभासी गति के कारण मानसून गर्त यो निम्नदाब वाला गर्त उत्तरी मैदानों के ऊपर शिथिल हो जाता है और धीरे धीरे वहां उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है अक्टूबर के प्रारंभ में मानसूनी पवनें उत्तर के मैदान से पीछे हट जाती है।

अक्टूबर और नवंबर का महीना गर्म वर्षा ऋतु में शीत ऋतु में बदले का काल होता है मानसून की वापसी होने से आसमान साफ़ हो जाता है । दिन का तापमान बढ़ने लगता है और रातें ठंडी और सुहावनी लगने लगती है अक्टूबर के उत्तरार्ध में उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है।

नवम्बर के प्रारंभ में उत्तर पश्चिम भारत के ऊपर निम्नदाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर चली जाती है और यह चक्रवाती निम्नदाब से सम्बंधित होता है जो की अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता ये चक्रवात भारत के पूर्वी तट को पार करता है जिसके कारण भारी वर्षा होती है और यह बहुत ही विनाशकारी भी होता है।

गोदावरी कृष्णा और कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते रहते हैं जिसके कारण बहुत ज्यादा जान माल की हानि होती है कभी कुभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों तक पहुँच जाते है।

वर्षा का वितरण

पश्चिमी तट के भागों एवं उत्तर-पूर्वी भारत में लगभग 400 सें०मी० वार्षिक वर्षा होती है किंतु, पश्चिमी राजस्थान एवं इससे सटे पंजाब, हरियाणा एवं गुजरात के भागों में 60 सें०मी० से भी कम वर्षा होती है। दक्षिणी पठार के आंतरिक भागों एवं सहयाद्री के पूर्व में भी वर्षा की मात्रा समान रूप से कम होती है।

जम्मू-कश्मीर के लेह में भी वर्षण की मात्रा काफी कम होती है। देश के शेष हिस्से में वर्षा की मात्रा मध्यम रहती है। हिमपात हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित होता है।

मानसून की प्रकृति के परिणामस्वरूप एक वर्ष से दूसरे वर्ष होने वाले वार्षिक वर्षा की मात्रा में भिन्नता होती है। वर्षा की विषमता निम्न वर्षा वाले क्षेत्र जैसे राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाटों के वृष्टि छाया प्रदेशों में अधिक पाई जाती है। अतः अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बाढ़ें अधिक आती हैं, जबकि निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखे की आशंका बनी रहती है।

मानसून – एकता का परिचायक

प्रायद्वीप पठार का मानसून – प्रायद्वीपीय पठार में तीनों ओर से समुद्रों के प्रभाव के कारण न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी।

भारतीय पर मानसून की एकता – भारत में आज भी आधे से अधिक आबादी अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर करती है। इसके अलावा कृषि के कारण से ही हर भारतीय को प्रचुर मात्रा में भोजन मिल पाता है। इसलिए भारत के त्योहार, यहाँ की संस्कृति, कृषि-चक्र और यहाँ के जीव और वनस्पति पर मानसून का गहरा असर है। इसलिए मानसून को भारत की एकता का परिचायक माना जाता है।

ऋतु की दशाएँ – ऋतु-चक्रों को एक लय प्रदान करती हैं। वर्षा की अनिश्चितताएँ तथा उसका असमान वितरण मानसून का एक विशिष्ट लक्षण है।

NCERT Solution Class 9th भूगोल Notes in Hindi
Chapter – 1 भारत – आकार और स्थिति
Chapter – 2 भारत का भौतिक स्वरुप
Chapter – 3 अपवाह
Chapter – 4 जलवायु
Chapter – 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी
Chapter – 6 जनसंख्या
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