“संचार प्रक्रिया में जितनी अधिक इंद्रियाँ शामिल होंगी, संचार उतना ही प्रभावी और दीर्घ होगा”। औचित्य सहित टिप्पणी कीजिए।

“संचार प्रक्रिया में जितनी अधिक इंद्रियाँ शामिल होंगी, संचार उतना ही प्रभावी और दीर्घ होगा”। औचित्य सहित टिप्पणी कीजिए।

उत्तर –

संचार का अर्थ है विभिन्न लोगों अथवा संस्थाओं तक अपनी बात पहुँचाना तथा उनकी बात को ग्रहण करना। संचार का कोई भी माध्यम ही उसमें हमारी इन्द्रियों का ही प्रयोग होता है जिनके द्वारा हम सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं। पारम्परिक संचार माध्यमों में मेले, रेडिया, कठपुतली, लोक-नृत्य, पोस्टर, पत्र-पत्रिकाओं का प्रयोग किया जाता था जिसमें देखने-सुनने तथा बोलने की क्रियाओं के लिए आँख, कान, जिह्वा इन्द्रियों का प्रयोग आवश्यक है।

आधुनिक प्रौद्योगिकी के विस्तार के फलस्वरूप संचार माध्यमों के प्रयोग में अन्तर आया है। आजकल कम्प्यूटर, इन्टरनेट, मोबाइल, केबल और बेतार प्रौद्योगिकी, वीडियों फिल्म का ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी तथा वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रयोग सामान्य बात है। एक प्रभावी संचार प्रक्रिया में यदि बातचीत के साथ (जिह्वा इन्द्री) देखने (आँखे) सुनने (कान) तथा स्पर्श का भी समावेश हो तो किसी भी जानकारी एवं सूचना की प्रमाणिकता तथ्य में परिवर्तित हो जाती है। देखने, सुनने, छूने में सूचनाएँ मस्तिष्क में स्मृति के रूप में अंकित हो जाती है तथा देर से विस्तृत होती हैं। वहीं अगर हम तक सूचना केवल बोल कर पहुँचायी जाए तो कुछ तथ्य याद नहीं रह पाते। विभिन्न अध्ययन ये प्रमाणित भी करते हैं कि अधिक इन्द्रियों के प्रयोग द्वारा किया किया संचार अधिक प्रभावी होता है। उदाहरण के लिए, लोग जो सुनते है उसका 10% याद रह जाता है लेकिन यदि लोग देखते, सुनते तथा करते है (दृश्य, श्रवण, स्पर्श) तो लगभग 50-60% याद रह जाता है।

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