खाद्य परिरक्षण की उन पुरानी विधियों की उदाहरण सहित सूची बनाइए जो घरों में उपयोग में लाई जाती हैं और वर्तमान में उनकी क्या व्यवहार्यता है।
उत्तर –
खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग इतिहास पूर्व काल से चला आ रहा है फिर चाहे वह कटी हुई फसल हो या कटा हुआ पशु। आमतौर पर खाद्य संरक्षण के लिए जो विधियाँ अपनाई जाती थी, उनमें से प्रमुख विधियाँ थी-धूप में सुखाना, नियंत्रित किण्वन, नमक लगाना/अचार बनाना, सेकना, भूनना, धूमन, चूल्हे में पकाना और मसालों का परिरक्षी के रूप में उपयोग करना ऐसी ही कुछ विधियों का विवरण निम्नलिखित है-
• धूप में सुखाना अथवा निर्जलीकरण (Sun Drying or Dehydration) – भोजन पदार्थों में उपस्थित नमी को सुखाकर भोजन को संरक्षित करना निर्जलीकरण कहलाता है। जीवाणुओं की वृद्धि के लिए नमी की आवश्यकता होती है। खाद्य-पदार्थों को सुखाने पर उनकी नमी समाप्त हो जाने के कारण उन्हें काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। खाद्य-पदार्थों को संरक्षित करने की यह बहुत पुरानी विधि है।
• हिमीकरण (Freezing) – कई खाद्य-पदार्थ ऐसे होते हैं जिन्हें संरक्षित करने के लिए उनमें नमी बनाए रखना आवश्यक होता है। ऐसे खाद्य पदार्थों को कम तापमान पर रखकर संरक्षित किया जाता है। कम तापमान पर जीवाणु एवं एंजाइमों की क्रियाशीलता कम हो जाती है। इस प्रक्रिया द्वारा संरक्षित खाद्य-पदार्थों का तापमान जितना कम किया जाता है उतने ही अधिक समय तक खाद्य-पदार्थ को संरक्षित किया जा सकता है।
• संरक्षित पदार्थों द्वारा खाद्य संरक्षण (Use of Perservatives) – कई खाद्य-पदार्थों को घरेलू/प्राकृतिक संरक्षकों जैसे- नमक, चीनी तथा तेल द्वारा भी संरक्षित किया जा सकता है। इनके प्रयोग द्वारा भोजन के रूप-रंग तथा आकार में होने वाले परिवर्तनों को कम करके उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह विधि मुख्यतः अचार, चटनी, सॉस, जैम, जैली, स्क्वैश, मुरब्बों इत्यादि को संरक्षित करने के लिए अपनाई जाती है।
• पकाना (Cooking) – पकाने की विधि अत्यन्त ही पुरानी है। अधिक ताप से जीवाणु व इन्जाइम्स नष्ट हो जाते हैं तथा भोजन खराब होने से बच जाता है। पकाने की विधि से खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट भी हो जाते हैं परन्तु कुछ पौष्टिक तत्व अधिक ताप पर नष्ट हो जाते हैं।
वर्तमान में इनकी व्यवहार्यता – खाद्य परिरक्षण की उपरोक्त विधियाँ आज भी बहुत ही व्यवहारिक है। हालांकि प्रौद्योगिकी के विकास तथा औद्योगिक क्रांति के कारण अब नई-नई विधियाँ विकसित हो चुकी हैं परंतु ये आजमाई और परखी हुई तकनीकें आज भी उपयोग में लाई जा रही हैं।
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