T Solution Class 11th Home Science Chapter – 13 वस्त्रों की देखभाल एवं रखरखाव (Care and Maintenance of Fabrics)
Textbook | NCERT |
class | 11th |
Subject | Home Science |
Chapter | 13th |
Chapter Name | वित्तीय प्रबंधन एवं योजना |
Category | Class 11th Home Science Notes in hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 13 वस्त्रों की देखभाल एवं रखरखाव (Care and Maintenance of Fabrics) Notes In Hindi इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप निम्न को समझ पाएँगे- वित्तीय प्रबंधन का अर्थ एवं संकल्पना, विभिन्न प्रकार की आय, पारिवारिक बजट बनाने में सम्मिलित चरणों की व्याख्या, बचत एवं निवेशों के अर्थ का वर्णन तथा सुदृढ़ निवेश के सिद्धांत। |
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 13 वित्तीय प्रबंधन एवं योजना (Financial Management and Planning)
Chapter – 13
वित्तीय प्रबंधन एवं योजना
Notes
भूमिका ( Introduction) वस्त्र हमारी मूल आवश्यकताओं में से एक हैं तथा यह हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न अंग भी है। सुव्यवस्थित व ढंग से पहने गए वस्त्र व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं। यदि इन वस्त्रों की उचित देखभाल न की जाए तो यह मूल्यवान होते हुए भी अपना आकर्षण खो बैठते हैं। वस्त्रों की उचित देख-रेख से ही उनको अधिक समय तक पहनने योग्य बनाया जा सकता है। पिछले अध्ययों में हम पढ़ चुके है कि- किसी भी वस्त्र का चयन उस वस्त्र के रूप-रंग, उसकी बनावट, गुणवत्ता तथा उसकी उपयोगिता पर निर्भर करता है। अत: यह जरूरी है कि वस्त्रों में पहले वाली चमक, रूप-रंग तथा गुणवत्ता बनी रहे, ताकि उन्हें लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सके। आमतौर पर वस्त्रों की देखरेख में निम्न विधियाँ व चरण शामिल होते है- वस्त्र को किसी भी प्रकार के भौतिक नुकसान (physical damage) जैसे कि- कटने, फटने, उधड़ने से बचाना उसका रूप-रंग नए जैसा बनाए रखना। इसके लिए- (i) बिना कपड़े के रंग को नुकसान पहुँचाए दाग-धब्बे तथा धूल-मिट्टी को हटाना। (ii) कपड़े की चमक तथा कपड़े की नरमाहट अथवा कड़कपन को विभिन्न विधियों द्वारा बनाए रखना । (iii) कपड़े की क्रीज बनाए रखना तथा उस पर सिलवटे न पड़ने देना। |
वस्त्रों की देखरेख की विभिन्न विधियाँ एवं चरण (Steps and Procedures for Care and Maintenance of Fabrics) वस्त्रों की देखरेख के लिए आमतौर पर निम्न विधियाँ एवं चरण अपनाए जाते है- I. वस्त्रों की मरम्मत (Mending of Clothes) वस्त्रों की मरम्मत अर्थात् ‘मेन्डींग’ एक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग कपड़ों को प्रयोग के दौरान या किसी दुर्घटना के कारण हुए नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है। अधिकतर वस्त्रों की मरम्मत की आवश्यकता तब होती है जब वस्त्रों का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा हो या किसी दुर्घटना की स्थिति में वस्त्र खराब या कट-फट गए हो। वस्त्रों की मरम्मत निम्न प्रकार से की जा सकती है- • कटे-फटे अथवा छेद युक्त वस्त्रों को सिलकर या उन्हें रफू करवाकर। • किसी प्रकार के टूटे हुए बटन या फास्टनर को बदलकर या उधड़ी हुई लेस, रिब्बन या अन्य परिसज्जा को टांक कर। • उधड़ी हुई सीम या हेम को पुनः सिल कर। जहाँ तक संभव हो सके वस्त्रों की मरम्मत उनमें किसी भी प्रकार की क्षति उत्पन्न होते ही जल्द-से-जल्द कर लेनी चाहिए। इसके अतिरिक्त वस्त्रों की मरम्मत उन्हें धोने से पहले ही कर लेनी चाहिए अन्यथा धुलाई के दौरान वस्त्र और अधिक फट सकते है। |
II. धुलाई (Laundry) धुलाई का तात्पर्य उस प्रक्रिया से जिसमें वस्त्रों को साफ रखने के लिए उन्हें धोया जाता है तथा सिलवट रहित दिखाई देने के लिए इस्तरी किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, कपड़ों को मैल तथा दाग रहित रखने के लिए उन्हें धोने तथा सिलवट रहित दिखाई देने के लिए इस्तरी करने की प्रक्रिया को धुलाई कहते है। अक्सर कपड़ों को अकस्मात् लगे दाग-धब्बे हटाने के लिए, बार-बार कपड़े के धुलने के कारण उनके मटमैले या पीलेपन को हटाने के लिए तथा उसमें कड़ापन या चरचरापन लाने के लिए विशेष उपचार की आवश्यकता होती है। धुलाई प्रक्रिया के चरण (Steps of Laundering Process) सामान्यतः कपड़ों की धुलाई प्रक्रिया निम्न चरणों में होती है- • दाग-धब्बे हटाना (Stain removal), • धुलाई के लिए कपड़ों को तैयार करना (Preparation of fabric for washing), • धुलाई द्वारा कपड़ों से गंदगी हटाना (Removing dirt from clothes by washing), • सुंदर दिखने के लिए अंतिम रूप देना (नील लगाना तथा स्टार्च लगाना) [Finishing for its appearance (blueing and starching) and finally, • अंततः आकर्षक रूप देने के लिए उन पर इस्तरी करना ताकि उन्हें प्रयोग में लाने के लिए तैयार करके रखा जा सके (Pressing or ironing for a neat appearance). दाग-धब्बे हटाना (Stain Removal) दाग-धब्बे को एक ऐसे अवांछित चिह्न या रंग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कपड़े पर बाहरी पदार्थ के सम्पर्क में आने पर लग जाता है। सरल शब्दों में कहें तो, दाग-धब्बे ऐसे अवांछित चिह्न या रंग होते है जो किसी सतह पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते है तथा वस्त्रों की सतह के गंदा होने का आभास देते है। दाग-धब्बों को सामान्य धुलाई प्रक्रिया द्वारा नहीं हटाया जा सकता अर्थात् इन्हें हटाने के लिए विशेष अभिकर्मकों एवं प्रक्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है। प्रायः वस्त्रों पर खाने-पीने की वस्तुओं तथा अन्य चीजों के दाग लग ही जाते हैं। वस्त्रों पर लगे दाग को यदि शीघ्र उतार दिया जाए तो वे जल्दी छूट जाते हैं और अपना निशान कपड़े पर नहीं छोड़ते। परंतु यदि दाग को तुरन्त साफ न किया जाए तो उनको उतारना कठिन हो जाता है और वे अपना धब्बा भी छोड़ जाते हैं इससे वस्त्र पुराने तथा आकर्षणहीन लगने लगते हैं। वस्त्रों पर लगने वाले दाग कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे कि- विभिन्न प्रकार के दाग-धब्बे • वनस्पतिक दाग • प्राणिज दाग • चिकनाई युक्त दाग • खनिज युक्त दाग • रंग के धब्बे (a) वनस्पतिक दाग (Vegetable Stains) : चाय-कॉफी, कोको, फल-सब्जियाँ इत्यादि के धब्बे वनस्पतिक धब्बे कहलाते हैं। ये धब्बे अम्लयुक्त होते हैं इसलिए इन धब्बों को हटाने के लिए क्षार का प्रयोग किया जाता है। (b) प्राणिज दाग (Animal Stains) : इस श्रेणी में खून, अंडे, माँस तथा दूध आदि के धब्बे आते हैं। ऐसे धब्बों में प्रोटीन होता है, इसलिए इनको दूर करने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करना चाहिए। गर्म पानी के प्रयोग से ये धब्बे और पक्के हो जाते हैं। (c) चिकनाई युक्त दाग (Oil Stains) : इस श्रेणी में घी, मक्खन, रसेदार सब्जी आदि के धब्बे आते हैं। इन धब्बों को उतारने के लिए चूसक या घोलक विधि का प्रयोग किया जाता है। (d) खनिज युक्त दाग (Mineral Stains) : इन धब्बों में स्याही, जंग, दवाईयाँ, कोलतार आदि के धब्बे आते हैं। इन धब्बों को दूर करने के लिए धब्बे को पहले अम्ल में फिर क्षार में धोना चाहिए । (e) रंग के धब्बे (Colour Stains) : ये धब्बे अम्ल अथवा क्षार युक्त होते हैं इसलिए इनको उतारने के लिए इनकी प्रकृति का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके पश्चात रंग की संरचना के अनुसार उपयुक्त विधि द्वारा इन धब्बों को उतारा जाता है। |
दाग-धब्बे हटाने समय ध्यान रखने योग्य बातें (Point to be Considered While Removing Stains) 1. ताजे धब्बे को उतारना आसान होता है। दाग जितना पुराना होता जाता है उसको उतारना उतना ही कठिन हो जाता है। 2. वस्त्रों की संरचना के अनुकूल ही धब्बे छुड़ाने वाले पदार्थ का चयन करना चाहिए। रासायनिक प्रतिकर्मक प्रयोग करते समय पहले उसके तनु घोल का प्रयोग करना चाहिए। 3. सूती तथा लिनन कपड़ों पर से धब्बे छुड़ाने के लिए धब्बे पर प्रतिकर्मक को फैलाकर ऊपर से गर्म पानी की धार बनाकर डालनी चाहिए। 4. ऊनी, सिल्क तथा रेयॉन के वस्त्रों के लिए प्रतिकर्मक के हल्के घोल का प्रयोग करना चाहिए। ऊन व सिल्क के लिए सर्फ, हाइड्रोजन पैरॉक्साइड के हल्के घोल का प्रयोग करना चाहिए। 5. वस्त्र पर प्रतिकर्मक सिर्फ उतनी ही देर रखना चाहिए जितने में धब्बा छूट जाए। धब्बा छूट जाने के बाद उसे पानी में से निकाल लेना चाहिए। वस्त्र पर लगे प्रतिकर्मक को पानी से बिना निकाले यदि ऐसे ही सूखने दिया जाए तो वस्त्र उस स्थान से कमजोर पड़ जाता है। 6. अम्लीय प्रतिकर्मक का क्षार से तथा क्षारीय प्रतिकर्मक का अम्ल से ऑक्सीकरण कर देना चाहिए। इस प्रकार वस्त्र को अम्लीय अथवा क्षारीय प्रतिक्रियाओं से होने वाली हानि से बचाया जा सकता है। 7. अज्ञात धब्बों को छुड़ाने के लिए सबसे कम हानिकारक प्रतिकर्मकों के प्रयोग का प्रयास करना चाहिए। 8. रंगीन वस्त्रों के धब्बे उतारने से पहले इस बात की जाँच कर लेनी चाहिए कि उसका रंग कच्चा है या पक्का। धब्बे छुड़ाने से यदि वस्त्र का रंग बिगड़ जाए तो अमोनिया की वाष्प दिखाने से कभी-कभी वस्त्र का मौलिक रंग वापस भी आ जाता है। 9. ज्वलनशील पदार्थ, जैसे- पैट्रोल, स्प्रिट इत्यादि का प्रयोग करते समय अग्नि से रक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए। 10. वस्त्रों के पुराने धब्बे उतारना कोई आसान कार्य नहीं हैं, न ही इसके लिए कोई लघु विधि है। इसमें बड़े धैर्य की आवश्यकता होती हैं। इसमें एक विधि से सफलता न मिलने पर दूसरी विधि और दूसरी विधि से सफलता न मिलने पर तीसरी विधि का प्रयोग करते रहना चाहिए। |
दाग-धब्बे हटाने की तकनीकें (Techniques of Stain Removal) (a) खुरचना (Scraping) : खुरचने द्वारा उन धब्बों को हटाया जाता है जो कपड़े की सतह पर जम जाते है। ऐसे जमे हुए धब्बों को भोथरे चाकू (blunt nife) द्वारा हल्के से खुरचकर और फिर झाड़कर साफ कर दिया जाता है। (b) डुबोना (Dipping) : दाग-धब्बे हटाने की इस तकनीक में कपड़े के दाग-धब्बे वाले हिस्से को कपड़ों की प्रकृति के अनुरूप लिए गए अभिकर्मक में डुबोया जाता है तथा फिर उसे रगड़ा जाता है। (c) स्पंज से साफ करना (Sponging) : इस तकनीक में कपड़े के दाग-धब्बे वाले भाग को एक समतल सतह पर ब्लॉटिंग पेपर के ऊपर फैलाकर रखा जाता है, फिर दाग-धब्बों वाले भाग पर स्पंज की सहायता से अभिकर्मक लगाया जाता है। कुछ देर में दाग-धब्बे वाले भाग के नीचे रखा ब्लॉटिंग पेपर अभिकर्मक सहित दाग-धब्बों को सोख लेता है। (d) ड्रॉपर विधि (Drop Method) : दाग-धब्बे हटाने की इस विधि में दाग-धब्बे लगे कपड़े को एक कटोरे पर फैला दिया जाता है, फिर उस दाग-धब्बे पर ड्रॉपर की सहायता से बूंद-बूंद करके अभिकर्मक डाला जाता है। कुछ देर में अभिकर्मक कपड़े से होता में एकत्रित हो जाता है और दाग-धब्बे वाले हिस्से को पानी से धो दिया जाता है। |
दाग-धब्बे हटाने के साधन/अभिकर्मक (Stain Removers / Reagents for Stain Removal) विभिन्न प्रकार के कपड़ों से दाग-धब्बे हटाने के लिए कई प्रकार के अभिकर्मकों का प्रयोग द्रव अथवा सांद्र रूप में किया जाता है। ऐसे ही कुछ प्रमुख अभिकर्मक निम्नलिखित है- (a) ग्रीज/चिकनाई सॉल्वेंट घोल (Grease Solvents) : तारपीन, मिट्टी का तेल, सफेद पेट्रोल, मेथीलेटिड स्प्रिट, एसिटोन, कार्बन टेट्राक्लोराइड कुछ प्रमुख ग्रीस / चिकनाई सॉल्वेंट घोल है। (b) ग्रीज/चिकनाई अवशोषक (Grease Absorbents) : भूसा, कुम्हार की मिट्टी / फुलर अर्थ (fuller’s earth), टेलकम पाउडर, स्टार्च, फेंच चॉक इत्यादि प्रमुख ग्रीस / चिकनाई अवशोषक है। (c) पायसीकारक (Emulsifiers) : साबुन तथा डिटर्जेंट सबसे अधिक प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख पायसीकरण पदार्थ हैं। (d) अम्लीय अभिकर्मक (Acidic Reagents) : एसेटिक एसिड अर्थात् सिरका, ऑक्सेलिक एसिड, नींबू, टमाटर, खट्टा दूध, दही आमतौर पर प्रयोग किए जाने वाले कुछ प्रमुख अम्लीय अभिकर्मक है। (e) क्षारीय अभिकर्मक (Alkaline Reagents) : अमोनिया, बोरेक्स, बेकिंग सोडा प्रमुख क्षारीय अभिकर्मक है। (f) विरंजक अभिकर्मक (Bleaching Agents) : विरंजक अभिकर्मक भी निम्न दो प्रकार के होते है- (1) ऑक्सीकारी विरंजक (Bleaching Agents) : इसमें उपस्थित ऑक्सीकरण के कारण धब्बा मिट जाता है। कुछ ऑक्सीकरण विरंजक होते हैं- • सूर्य का प्रकाश (Sunlight) : यह सबसे पुरानी विधि है। इसमें धब्बे को गीला करके घास पर फैला दिया जाता में उपस्थित क्लोरोफिल, नमी और हवा में ऑक्सीजन के कारण धब्बे का विरंजन हो जाता है। • सोडियम हाइपोक्लोराइड (Sodium Hypochlorite) : यह भी ऑक्सीकरण ब्लीच है। इसे जैवल जल भी कहते हैं। इसे वाशिंग सोडा (Na,CO,) और क्लोराइड ऑफ लाइम के पानी में मिलाकर बनाया जाता है। इसे रंगीन बोतल में संग्रह करना चाहिए अन्यथा प्रकाश में यह खराब हो जाता है। • सोडियम परबोरेट (Sodium Perborate) : बोरेक्स, कॉस्टिक सोडा और हाइड्रोजन पैरॉक्साइड को मिलाकर यह ऑक्सीकरण ब्लीच बनाया जाता है। जब इसे गर्म पानी में मिलाया जाता है तब सोडियम परबोरेट से ऑक्सीजन निकलकर धब्बों को मिटा देती है। • हाइड्रोजन पैरॉक्साइड (Hydrogen Peroxide) : यह आसानी से उपलब्ध होता है और ऑक्सीकरण का एक सुरक्षित तरीका भी है। यह ऊनी व रेशमी कपड़ों से धब्बे हटाने के लिए उपयुक्त होता है। (2) अपचयनकारी विरंजक (Reducing Agents) : ये अभिकर्मक धब्बे में से ऑक्सीजन को हटाकर उसे रंगहीन कर देते हैं। कुछ अपचयनकारी विरंजक होते हैं- (i) सोडियम हाइड्रोसल्फेट (Sodium Hydrosulphate) : यह पाउडर रूप में मिलता है। जब इसे पानी में भिगोकर धब्बे पर लगाया जाता है तो यह ऑक्सीजन को सोख जाता है और विरंजन कर देता है। (ii) सोडियम बाइसल्फाइड (Sodium Bisulphite) : सल्फ्यूरिक अम्ल और कास्टिक सोडा मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। ध्यान रहें (a) उपरोक्त सभी विधियाँ केवल सफ़ेद सूती कपड़ों से दाग धब्बे हटाने के लिए हैं। अन्य कपड़ों पर या रंगीन वस्त्रों पर इनका प्रयोग करते समय उपयुक्त सावधानी बरती जानी चाहिए। (b) दाग-धब्बे हटाना धुलाई करने का प्रारंभिक चरण है। इसके पश्चात् कपड़ों को धोना या ड्राइक्लीन किया जाना चाहिए तथा उनमें से प्रयुक्त किए गए रसायन के समस्त अवशेष हटा दिए जाने चाहिए। अनजाने धब्बों को छुड़ाने की विधियाँ : कुछ धब्बे ऐसे भी होते हैं जिनकी प्रकृति का ज्ञान नहीं होता। ऐसे धब्बों को छुड़ाने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती हैं। इसके लिए निम्न क्रम अपनाना चाहिए- (i) घोलक विधि के पदार्थ जैसे- पैट्रोल, बेंजीन का प्रयोग करना। (iii) गर्म पानी व साबुन से धब्बा छुड़ाना। (v) हल्के अम्लीय घोल का प्रयोग करना। (ii) साबुन और पानी से छुड़ाना। (iv) ब्लीच का प्रयोग करना। (v) हल्के क्षारीय घोलों का इस्तेमाल करना। |
III. गंदगी हटाना- सफाई की प्रक्रिया (Removal of Dirt- The Cleaning Process) गंदगी शब्द का प्रयोग किसी ऐसी चीज के लिए किया जाता है जिसके कारण सतह गंदी या मैली दिखाई होती है। कपड़े के संदर्भ में गंदगी का तात्पर्य कपड़े के ताने-बाने के बीच फंसी चिकनाई, कालिख तथा धूल इत्यादि से है जिसके कारण कपड़ा देखने में गंदा या मैला दिखाई देता है। गंदगी के प्रकार (Types of Dirt) कपड़ों में आमतौर पर निम्न दो प्रकार गंदगी पाई जाती है- ऊपरी गंदगी (Loose Dirt) : इस प्रकार की गंदगी कपड़े की ऊपरी सतह पर लगी होती है तथा आसानी से हटाई जा सकती है। ऊपरी गंदगी को केवल ब्रश से या झाड़ कर भी हटाया जा सकता है तथा उसे पानी में खंगाल कर आसानी दूर किया जा सकता है। जमी हुई गंदगी (Tight Dirt) : इस प्रकार की गंदगी पसीने तथा चिकनाई के साथ वस्त्र पर जमी होती है। जमी हुई गंदगी अर्थात्चि कनाई को मात्र कपड़ों के खंगालने द्वारा हटाया नहीं जा सकता अर्थात् जमी हुई गंदगी को हटाने के लिए कुछ विशेष अभिकर्मकों की आवश्यकता होती है जो गंदगी को हटाने के लिए चिकनाई को कम कर देते है। वस्त्रों से चिकनाई हटाने की विधियाँ (Methods of Removing Grease) वस्त्रों से चिकनाई हटाने के लिए मुख्य रूप से निम्न तीन विधियों का प्रयोग किया जाता है- 1. विलायकों के उपयोग द्वारा (By the use of solvents) 2. अवशोषकों के उपयोग द्वारा (By the use of absorbents) 3. पायसीकारकों के उपयोग द्वारा (By the use of emulsifiers) • जब वस्त्रों की सफाई विलायकों या अवशोषकों द्वारा की जाती है तो उसे ड्राइक्लीनिंग (dry-cleaning) कहते हैं। • आमतौर पर वस्त्रों की सामान्य सफाई प्रक्रिया में धुलाई साबुन तथा डिटर्जेंटों की सहायता से पानी में की जाती है। साबुन एवं डिटरजेंट के प्रयोग से चिकनाई अति सूक्ष्म कणों में टूट जाती है जिसके कारण वस्त्र की सतह पर उसकी पकड़ ढीली पड़ जाती है। तब वस्त्र पानी में खंगाल दिया जाता है। |
सफाई अभिकर्मक (Cleansing Agents) 1. पानी (Water) • पानी धुलाई के कार्य के लिए प्रयोग किया जाने वाला सबसे जरूरी एवं महत्वपूर्ण अभिकर्मक है। • कपड़े और पानी के बीच एक प्रकार का जुड़ाव (adhesion) होता है। कपड़ों को पानी में डुबोने से पानी कपड़े में प्रविष्ट हो जाता है तथा उसे गीला कर देता है। फिर पेडेसिस अर्थात् जल कणों का संचलन ( movement) कपड़े में चिकनाई रहित गंदगी को हटाने में मदद करता है। • हाथ या मशीन में संचलन द्वारा केवल पानी में धोने से गंदगी तथा मिट्टी के केवल कुछ ही कण हटते हैं और जैसे-जैसे पानी के तापमान में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे जलकणों की हलचल तथा भेदन शक्ति बढ़ती जाती है। इसी कारण से चिकनाई युक्त गंदगी को हटाने के लिए गर्म पानी का प्रयोग किया जाता है। • पानी केवल उसी गंदगी को दूर कर सकता जो पानी में घुलनशील हों तथा इसमें गंदगी को निलंबित (suspend) रखने का सामर्थ्य भी नहीं है जिसके परिणामस्वरूप हटी हुई गंदगी पुनः कपड़े पर जम जाती है। बार-बार धोने के पश्चात् कपड़े के मटमैले हो जाने का मुख्य कारण गंदगी का पुनः कपड़े पर जम जाना ही है। 2. साबुन तथा डिटर्जेंट (Soap and Detergents) जल के अतिरिक्त संभवतः साबुन तथा डिटर्जेंट ही धुलाई के कार्य में प्रयुक्त होने वाले सबसे महत्वपूर्ण तथा आवश्यक सफाई अभिकर्मक हैं। साबुन (Soap) साबुन प्राकृतिक तेलों या वसा एवं क्षार से बनाया जाता है। साबुन बनाने के लिए प्राणिज तथा वनस्पतिक दोनों ही प्रकार की वसा का प्रयोग किया जाता है। साबुन में वस्त्र को साफ करने के सभी गुण होते हैं। साबुन बनाने की प्रक्रिया को साबुनीकरण (saponification) कहते है। इस विधि में क्षार, प्राणिज अथवा वनस्पतिक वसा के साथ अभिक्रिया कर असंतृप्त अम्ल तथा ग्लिसरीन (fatty acids and glycerine) बनाते है। असंतृप्त अम्ल तथा ग्लिसरीन पुनः क्षार के साथ अभिक्रिया कर साबुन का निर्माण करते है। यदि साबुन बनाने की प्रक्रिया के दौरान क्षार का अधिक प्रयोग किया जाए तो कपड़े पर साबुन का प्रयोग करते समय वह निकल जाता है। साबुन के लाभ (Benefits of Soaps) : साबुन में ऐसे अनेक गुण होते हैं जिनके कारण वे डिटर्जेंट की अपेक्षा अधिक पसंद किए जाते हैं, जैसे कि- (a) साबुन एक प्राकृतिक उत्पाद हैं तथा यह त्वचा एवं पर्यावरण के लिए कम हानिकारक हैं। (b) साबुन, जैव-अपघटनीय (biodegradable) होते हैं तथा हमारी नदियों तथा अन्य जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करते। साबुन की सीमाएँ (Limitations of Soaps) : (a) साबुन कठोर जल में प्रभावी नहीं होते इसी कारण से कठोर जल के साथ इनका उपयोग किए जाने पर यह काफी मात्रा में व्यर्थ (waste) चले जाते है। (b) साबुन, संश्लिष्ट डिटर्जेंट की तुलना में कम सक्षम ( less effective) होता है। (c) कुछ समय बाद इसकी साफ़ करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। (d) सभी प्रकार के वस्त्रों/कपड़ों को साबुन द्वारा नहीं धोया जा सकता है। एक अच्छे साबुन में निन्न गुण होने चाहिए (Qualities of a Good Soap ) (a) साबुन का रंग साफ, हल्के पीलेपन में या सफेद होना चाहिए। गहरे रंग के साबुन में अशुद्धियाँ होती हैं। (b) उंगली से दबाने पर साबुन दृढ़ होना चाहिए। नरम साबुन में पानी की मात्रा अधिक होती है। (c) उत्तम साबुन पर कोई चित्ती नहीं पड़ती और न ही उसमें से सफेद कण दिखाई देते हैं। यदि साबुन पर सफेद दाने दिखाई दें तो उन्हें अल्कली की मात्रा अधिक होती है जो वस्त्र को नुकसान पहुँचाती है। (d) उत्तम साबुन तोड़ने पर दानेदार दिखाई देना चाहिए। यदि उसमें धारीदार तथा पट्टियों वाली रचना हो तो साबुन अच्छा नहीं है। (e) साबुन की किस्म जानने के लिए उसका एक बहुत छोटा टुकड़ा जीभ पर रखकर भी देखा जा सकता है। यदि वह स्वाद में मृदु है तो ठीक है अन्यथा साबुन निम्न स्तर का है। |
डिटर्जेंट (Detergents) डिटर्जेंट, विशेषकर संश्लिष्ट डिटर्जेंट रसायनों द्वारा बनाए जाते है। डिटर्जेंट बनाने के लिए किसी भी तेल अथवा वसा अम्ल को हाइड्रोजन गैस द्वारा एक कैटेलिस्ट (catalyst) की उपस्थिति में वसा एल्कोहल में बदल दिया जाता है। इस वसा एल्कोहल को फिर सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ क्रिया करवाकर सल्फरयुक्त वसा एल्कोहल में बदलते हैं तथा इसके पश्चात् इसमें कास्टिक सोडा अथवा कास्टिड पोटाश की क्रिया द्वारा डिटर्जेंट तैयार किया जाता है। आधुनिक युग में वस्त्रों की धुलाई के लिए साबुन की अपेक्षा डिटरजेन्ट का प्रचलन अधिक हो गया है क्योंकि इनमें साबुन के सभी गुण विद्यमान होते हैं तथा यह साबुन की तरह वसा तथा क्षार से नहीं बनाए जाते है। डिटर्जेंट के लाभ (Benefits of Detergents) : (a) ये साबुन की अपेक्षा कम मात्रा में प्रयुक्त होते हैं तथा श्रम और समय की बचत होती है। डिटरजेंट महंगे होने के बावजूद साबुन की तुलना में सस्ते पड़ते हैं। (b) साबुन वस्त्रों की सूक्ष्म रचना को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं परन्तु डिटरजेन्ट वस्त्रों को क्षतिग्रस्त नहीं करते। (c) डिटरजेंट पानी में तुरंत झाग बनाता है जिससे वस्त्र धोने में आसानी होती है। यह ठंडे तथा गर्म दोनों ही प्रकार के पानी में बाग है तथा वस्त्रों को सफाई से धोता है। (d) डिटरजेन्ट में प्रायः विरंजक तथा उज्जवलकारी (optical whiteners) तत्व भी मिलाए जाते हैं जिससे वस्त्रों को धोने के पश्चात् अलग से ब्लीच नहीं लगाना पड़ता। (e) ये सभी प्रकार के वस्त्रों को धोने की क्षमता रखते हैं तथा इनको खंगालना आसान होता है (f) यह धुलाई के समय हाथों, पात्रों, वाशिंग मशीन के भागों इत्यादि को हानि भी नहीं पहुँचाते। (g) डिटर्जेंट को सफाई के प्रत्येक कार्य के लिए तथा विभिन्न प्रकार की मशीनों में प्रयोग हेतु विशिष्ट रूप से अनुकूलित किया जा सकता है। साबुन तथा डिटर्जेंट की सफाई की प्रक्रिया (Cleaning Action of Soaps and Detergents) साबुन तथा डिटर्जेंट दोनों में एक जैसी रासायनिक विशिष्टता पाई जाती है अर्थात् वे धुलाई के दौरान कपड़े की सतह पर क्रिया करने वाले अभिकर्मक होते हैं और सरफेक्टेंट (surfactants) कहलाते हैं। धुलाई के दौरान ये दोनों अभिकर्मक पानी के पृष्ठीय तनाव (surface tension) को कम कर देते हैं। इससे कपड़े पानी को अधिक सहजता से सोख लेते है तथा गंदगी और धब्बे वस्त्र की सतह पर अपनी पकड़ छोड़ देते है। डिटर्जेंट में कुछ ऐसे तत्व भी होते जो धुलाई के पानी में हटाई गई मिट्टी/गंदगी को निलम्बित रखने का कार्य भी करते हैं जिससे वह पुन: साफ कपड़ों पर नहीं जमती । इससे कपड़ों के मटमैलेपन को भी रोका जा सकता है। आजकल साबुन तथा डिटर्जेंट दोनों को पाउडर, फ्लेक, बार (चक्की) तथा तरल स्वरूपों में बेचा जाता है। प्रयुक्त किए जाने वाले साबुन या डिटर्जेंट की किस्म, कपड़े की किस्म, रंग तथा कपड़े पर जमी गंदगी की किस्म पर निर्भर करती है। |
साबुन व डिटरजेंट्स में अन्तर (Difference between Soap and Detergents) साबुन (a) साबुन वसा व अलकली के मिश्रण से बनता है। (b) यह कठोर जल में झाग नहीं देते और ठीक प्रकार से साफ नहीं करते। (c) कपड़ों से साबुन जल्दी से नहीं निकलता। (d) साबुन नाजुक रेशमी कपड़ों के लिए उपयुक्त नहीं है। (e) यह गर्म पानी में अच्छा साफ करते हैं। (f) साबुन सस्ते होते हैं। (g) इनके लम्बे प्रयोग से सफेद कपड़े पीले पड़ जाते है। (h) धोने के बाद यदि साबुन पूरी तरह से कपड़ों से न निकले तो कपड़े कमजोर हो जाते है। डिटरजेंट्स (a) यह कार्बनिक यौगिक (compound) होते हैं जो खनिज तेल से रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनाए जाते हैं। (b) यह कठोर व कोमल जल दोनों में ही कपड़ा साफ करते हैं। (c) डिटरजेंट्स आसानी से कपड़ों से धोने से निकल जाते हैं। (d) यह नाजुक रेशमी कपड़ों को अच्छा साफ करते हैं। (e) यह गर्म और ठंडे पानी दोनों में अच्छा साफ करते हैं। (f) डिटरजेंट्स महँगे होते हैं। (g) इनके अन्दर उपस्थित ब्लीचिंग तत्व कपड़ों की सफेदी बनाए रखते हैं। (h) धोने के बाद यदि डिटरजेन्ट की कुछ मात्रा कपड़ों में रह भी जाए तो वस्त्र कमजोर नहीं पड़ता। |
धुलाई की विधियाँ (Methods of Washing) अक्सर वस्त्र को साबुन या डिटर्जेंट के घोल में कुछ देर के लिए छोड़ देने पर उस पर लगी चिकनाई युक्त गंदगी छोटे-छोटे कणों में टूटकर खंगालने पर आसानी से निकल जाती है। परंतु कई बार वस्त्र के कुछ हिस्सों पर ऐसी गंदगी लग जाती है जो मात्र साबुन या डिटर्जेंट के घोल में डालने पर भी नहीं निकलती। ऐसी स्थिति में वस्त्रों को साफ करने के लिए धुलाई की विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है। वस्त्रों की धुलाई के लिए प्रयुक्त की गई विभिन्न विधियाँ निम्न दो कार्यों में सहायक होती हैं- (a) वस्त्र के साथ चिपकी मैल को अलग करती है, तथा (b) गंदगी एवं मैल को पानी में ही निलंबित (suspended) रखती है। वस्त्रों की धुलाई के लिए चयनित विधि वस्त्र के रेशे के अंश, धागे की किस्म तथा वस्त्र निर्माण एवं धुलाई की जाने वाली आकार तथा भार पर निर्भर करती है। वस्त्रों की धुलाई की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित है- धुलाई की विधियाँ (Methods of Washing) (i) घिसकर रगड़ना (Friction) (ii) मलना तथा निचोड़ना (Kneading and Squeezing) (iii) चूषण-पंप (Application of Suction) (iv) मशीनों द्वारा धुलाई (Suction Washing) (i) रगड़ने द्वारा (fraction) : यह धुलाई की सबसे प्राचीन एवं प्रचलित विधि है जो मज़बूत सूती वस्त्रों के लिए अधिक उपयुक्त होती है। इस विधि में वस्त्र के एक भाग को वस्त्र के दूसरे भाग के साथ हाथ से रगड़कर साफ किया जाता है। अधिक मैले वस्त्र ब्रश से या बड़े लकड़ी के पट्टे पर रगड़ कर साफ किए जाते हैं। सूती वस्त्र, पर्दे, चादर आदि इस विधि द्वारा साफ किए जाते है। यह विधि रेशम तथा ऊन जैसे नाजुक कपड़ों के लिए तथा पाइल छल्लेदार वस्त्र अथवा कढ़ाई किए गए वस्त्रों की धुलाई के लिए उपयुक्त नहीं होती है। (ii) मलना तथा निचोड़ना (Kneading and Squeezing) : इस विधि में कपड़े को साबुन के घोल में हाथों से धीरे-धीरे मला तथा मसला जाता है। चूँकि इस विधि में कपड़ों की धुलाई के लिए बहुत कम ज़ोर लगाया जाता है, अतः यह कपड़े के तंतुओं, रंग या बुनाई को हानि नहीं पहुँचाती। यह विधि ऊन, रेशम, रेयॉन तथा रंगदार वस्त्रों जैसे नाजुक कपड़ों को साफ़ करने के लिए उपयुक्त होती है। अत्यधिक गंदे कपड़ों के लिए यह विधि प्रभावपूर्ण नहीं होती। (iii) चूषक-पंप द्वारा धुलाई ( Suction Washing) : इस विधि द्वारा ऐसे कपड़ों और वस्त्रों को धोया जाता है जिन्हें ब्रश द्वारा रगड़कर नहीं धोया जा सकता, जैसे कि– रोएदार तौलिया इत्यादि। इसके अतिरिक्त यह विधि ऐसे वस्त्रों को धोने के लिए भी उपयुक्त होती है जो इतने बड़े तथा भारी होते है जिन्हें हाथ द्वारा मसला या दबाया नहीं जा सकता। इस विधि द्वारा कपड़ों की धुलाई के लिए कपड़े को एक टब में साबुन/डिटर्जेंट के घोल में डाला जाता है तथा चूषक – पंप को बार-बार दबाया तथा उठाया जाता है। चूषक-पंप को दबाने के कारण उत्पन्न हुआ निर्वात (vaccum) गंदगी के कणों को ढीला कर देता है। (iv) मशीन से धुलाई (Machine Washing) : टेलीविजन और रेफ्रिजरेटर के बाद भारतीय घरों में वॉशिंग मशीन संभवतः तीसरा सबसे लोकप्रिय बिजली उपकरण हैं। वर्तमान समय में लगभग हर महिला कपड़े धोने के लिए वॉशिंग मशीन के प्रयोग को ही प्राथमिकता देती है, क्योंकि यह समय तथा श्रम की बचत के साथ-साथ कपड़ों को भी ज्यादा बेहतर ढंग से साफ करती है। वैसे तो आजकल बाज़ार में कई कंपनियों की अलग-अलग प्रकार की वॉशिंग मशीनें उपलब्ध हैं परंतु इन सभी मशीनों का कार्य सिद्धांत समान है, अर्थात् गंदगी को ढीला करने के लिए कपड़ों में हलचल पैदा करना। इन मशीनों में धुलाई के लिए, दबाव या तो मशीन में टब के घूमने से उत्पन्न किया जाता है या मशीन के साथ जुड़ी केंद्रीय छड़ के तीव्र गति से धूमने से उत्पन्न होता है। धुलाई का समय, वस्त्र की प्रकृति तथा गंदगी की मात्रा के अनुसार अलग-अलग होता है। आजकल कई बड़े संस्थान जैसे कि- अस्पताल, होटल इत्यादि भी अधिक क्षमता वाली धुलाई मशीनों का बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे है। धुलाई मशीनें हस्तचालित, अर्द्ध स्वचालित तथा पूर्णतया स्वचालित हो सकती है। |
IV. परिसज्जा (Finishing) परिसज्जा का अर्थ है- सजाना । वस्त्रों की धुलाई के सन्दर्भ में परिसज्जा का अर्थ है- धुलाई की क्रिया को पूर्ण करने से पूर्व उन्हें कुछ ऐसी प्रक्रियाओं से गुजारना, जिसमें वस्त्र का अन्तिम रूप (सूखा हुआ) साफ, स्वच्छ तथा सुन्दर लगे। धोने के पश्चात् कुछ वस्त्र पीले एवं ढीले हो जाते है। उन्हें उनके प्राकृतिक स्वरूप में दिखाने के लिए उन पर निम्न परिसज्जाएँ की जाती है। नील तथा चमक पैदा करने वाले पदार्थ (Blues and Optical Brighteners) आपने देखा होगा कि बार-बार उपयोग और धोने से सफेद सूती वस्त्र ढीले पड़ जाते हैं तथा उनकी सफेदी और रंग भी पीला पड़ जाता है। सिंथेटिक वस्त्रों तथा मानव निर्मित तंतुओं से बने वस्त्र बार-बार धोने के कारण ग्रे पड़ने लगते है। ऐसे में वस्त्रों में पुनः सफेदी व चमक लाने के लिए नील या ऑप्टिकल ब्राइटनर्स का प्रयोग किया जाता है। (a) नील (Blue/Neel) : नील का प्रयोग सामान्यतः सफेद सूती एवं लिनन के वस्त्रों पर किया जाता हैं। बार-बार धोने पर इन वस्त्रों का रंग फीका एवं पीला पड़ जाता है। नील के प्रयोग से वस्त्र पुनः सफेद एवं ताजगी से भरे दिखने लगते हैं। बाजार में नील अल्ट्रमरीन नीला (बारीक पाउडर के रूप में) तथा तरल डाई (liquid dye) के रूप में उपलब्ध होता है। नील का प्रयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए- • वस्त्र को अंतिम बार खंगालते समय नील का सही मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए। • पाउडर वाले नील को पहले पानी की थोड़ी-सी मात्रा में मिलाकर पेस्ट बना लेना चाहिए तथा फिर उसे और अधिक पानी में मिलाया जाना चाहिए। इस घोल का प्रयोग तत्काल किया चाहिए अन्यथा रखे रहने से यह पाउडर तल पर जम जाता है तथा इसके परिणामस्वरूप कपड़े पर धब्बे पड़ सकते हैं। • तरल नील का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि नील का प्रयोग वस्त्र पर पूर्णतया गीली स्थिति में (किंतु टपकती हुई नहीं) किया जाए जो निचोड़ने की सलवटों से मुक्त हो। वस्त्र को कुछ समय के लिए नील के घोल में घुमाएँ, अधिक नमी को निकाल दें तथा उसे सूखने डाल दें। • नील लगे वस्त्रों को एक बार साफ पानी से खंगाल एवं भली-भांति निचोड़कर सूखने के लिए धूप में फैलाना चाहिए। (b) ऑप्टिकल ब्राइटनर्स (Optical Brighteners) : ऑप्टिकल ब्राइटनिंग एजेंट या फ्लोरसेंट ब्राइटनिंग एजेंट ऐसे यौगिक होते हैं जिनमें प्रतिदीप्ति (brightenss) करने की क्षमता होती है। ये यौगिक एक छोटी तरंग पर प्रकाश को अवशोषित कर सकते हैं और उन्हें लम्बी तरंग पर पुनः उत्सर्जित कर सकते हैं। ऑप्टिकल फ्लोरोसेंट ब्राइटनर कपड़े के पीलेपन और ग्रेनेस को हटा कर उसे तीव्र उज्ज्वल सफेदी प्रदान करते है। इन्हें रंगीन प्रिंट वाले कपड़ों पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ऑप्टिकल ब्राइटनर को व्हाइटनर भी कहा जाता है। लेकिन ये ब्लीच की श्रेणी में नहीं आते, इनके प्रयोग से रंगीन वस्त्रों का रंग धूमिल नहीं पड़ता। 2. स्टार्च तथा कड़ा करने वाले अभिकर्मक (Starches and Stiffening Agents) कपड़ों को बार-बार धोने के कारण उनकी चमक में कमी आती हैं तथा उनके रंग फीके पड़ने लगते है। कपड़ो को पुनः नए जैसा चमकदार, चिकना तथा कड़ापन लाने के लिए उन पर विभिन्न प्रकार के स्टार्च तथा कड़ा करने वाले अभिकर्मकों का प्रयोग किया जाता हैं। स्टार्च को मांड तथा कलफ भी कहा जाता है। स्टार्च के प्रयोग से कपड़ों के छिद्र भर जाते हैं, जिससे वस्त्रों में मैल आसानी से नहीं पहुँचती तथा वस्त्र लम्बे समय तक साफ रहते हैं। मांड/स्टार्च लगे कपड़े पहनने में रोबीले लगते हैं तथा धोने पर आसानी से साफ हो जाते है। वस्त्र को कड़ा/स्टार्च करने वाले अभिकर्मक पशुओं तथा पौधों से प्राप्त होते हैं। वस्त्रों को कड़ा/स्टार्च करने वाले कुछ प्रमुख अभिकर्मकों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं- (a) मांड/स्टार्च (Starch) : मांड, गेहूँ (मैदा), चावल, अरारोट, टेपियोका (कसावा) इत्यादि से प्राप्त होती हैं। मांड का गाढ़ापन स्टार्च किए जाने वाले वस्त्र की मोटाई पर निर्भर करता है। कड़ा करने वाले अभिकर्मक के रूप में इसका प्रयोग केवल सूती या लिनन के कपड़ों पर किया जाता है। मोटे सूती कपड़ों पर हल्का स्टार्च लगाने की आवश्यकता होती है जबकि पतले वस्त्रों पर अधिक स्टार्च लगाया जाना चाहिए। आमतौर पर मांड पाउडर के रूप में उपलब्ध होती हैं तथा प्रयोग से पूर्व इन्हें पकाना पड़ता है, परंतु आजकल बाजारों में व्यापारिक रूप से तैयार की गई मांड भी आसानी से उपलब्ध होती है जो प्रयोग करने में काफी आसान होती है तथा उसे पकाने की भी आवश्यकता नहीं होती है। (b) बबूल का गोंद या अरेबिक गोंद (Gum Acacia or Gum Arabic) : बबूल के पौधे से प्राप्त गोंद प्राकृतिक होती है जो दानेदार गाँठों में उपलब्ध होती है। किसी वस्त्र को कड़ा करने का घोल बनाने के लिए इसे रात भर पानी में भिगो दिया जाता है और फिर उसे एक गाँठ रहित घोल प्राप्त करने के लिए छान लिया जाता है। हालांकि इस प्रकार की गोंद से वस्त्र में केवल हल्का कड़ापन ही आता है जो अधिकतर चरचरेपन के स्वरूप में होता है। रेशमी वस्त्रों, अत्यधिक महीन सूती वस्त्रों, रेयान तथा रेशमी एवं सूती मिश्रित वस्त्रों को कड़ापन प्रदान करने के लिए गोंद का प्रयोग किया जाता है। (c) जिलेटिन (Gelatin) : इसे बनाना तथा प्रयोग करना काफी आसान है परंतु घर पर बनी मांड की अपेक्षा यह काफी महंगा होता है। (d) बोरेक्स (Borax) : वैसे तो बोरेक्स, स्टार्च अभिकर्मक नहीं है किंतु इसे स्टार्च के घोल में थोड़ी-सी मात्रा में मिला देने पर वस्त्र की कढ़ाई की प्रक्रिया में काफी सुधार आता है। बोरेक्स युक्त स्टार्च वाले वस्त्र को जब इस्तरी किया जाता है तो बोरेक्स स्वतः ही पिघल जाता है तथा वस्त्र की सतह पर एक पतली-सी परत बन जाती है। यह जलरोधी प्रकृति का होता है जिसके कारण इसके प्रयोग से नम जलवाय में भी कपड़े में कड़ापन बना रहता है। स्टार्च तथा कड़ा करने वाले अभिकर्मकों को प्रयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए- • कड़ा करने वाले अभिकर्मक का प्रयोग वस्त्र के रेशे की प्रकृति तथा वस्त्र के प्रयोग के अनुरूप करना चाहिए। • स्टार्च का प्रयोग करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि स्टार्च सही मात्रा में लिया गया हों तथा वस्त्र पूरी तरह गीला हो किंतु उससे पानी न टपका रहा हो। • वस्त्र को स्टार्च के घोल में अच्छी तरह मला जाना चाहिए तथा अतिरिक्त पानी को दबाकर निकालने के बाद ही वस्त्र को सुखाने के लिए लटकाया जाना चाहिए। • गहरे रंग के सूती वस्त्रों को स्टार्च लगाते समय घोल में थोड़ा-सा नील डाल लेना चाहिए ताकि वस्त्र पर सफेद धब्बे न पड़े। |
V. वस्त्रों को सुखाना (Drying) कपड़े को धोने तथा उन पर परिसज्जा के उपरांत उन्हें इस्त्री करने से पहले सुखाया जाता हैं। अधिकतर भारतीय परिवारों में कपड़ों को सूखाने के लिए नायलॉन की रस्सी, स्टैण्ड या ड्राईंग कैबिनेट का प्रयोग किया जाता हैं। • कपड़ों को सुखाने का सबसे अच्छा तरीका उन्हें बाहर धूप में उल्टी साइड करके लटकाकर सुखाना होता है। • सूरज की रोशनी में कपड़ा न केवल तेजी से सूखता है, बल्कि सूरज की रोशनी कपड़े के लिए एक एंटीसेप्टिक का भी कार्य करती है। • सूरज की रोशनी विशेषकर सफेद कपड़ों के लिए एक विरंजन एजेंट (bleaching agent) के रूप में भी कार्य करती है। • रेशमी और ऊनी जैसे नाजुक कपड़ों को धूप में ज्यादा देर तक नहीं सुखाया जाना चाहिए, क्योंकि तेज धूप इन कपड़ों को नुकसान पहुंचाती है। • धूप के संपर्क में आने पर गीले सिंथेटिक फाइबर अपनी ताकत खो देते हैं तथा उनका रंग अपरिवर्तनीय पीले रंग में बदल जाता हैं, इसलिए सिंथेटिक फाइबर से बने वस्त्रों को घर के अंदर ही सुखाया जाना चाहिए। |
VI. इस्त्री करना (Ironing) कपड़ों की धुलाई एवं उनके सुखने के बाद, कपड़े पर झुरियाँ ( wrinkle) पड़ जाती हैं तथा कपड़ों की क्रीज भी बिगड़ जाती है। ऐसी स्थिति में कपड़ों को दोबारा पहनने योग्य बनाने के लिए उन पर इस्त्री की जाती है। इस्तरी करने से कपड़ें पर पड़ी सलवटों दूर किया जा सकता है तथा वस्त्र की इच्छानुसार तह बनाने में सहायता मिलती है। किसी भी वस्त्र को अच्छी तरह से इस्तरी करने के लिए निम्न तीन चीज़ों की आवश्यकता होती है- 1. उच्च तापमान (High Temperature) : इस्तरी एक ऐसा उपकरण होता है जो कपड़े को इस्तरी / प्रेस करने के लिए आवश्यकतानुसार तापमान प्रदान करता आमतौर पर बाजार में दो प्रकार की इस्तरियाँ उपलब्ध होती है- • कोयले की इस्तरी (Charcoal Iron) : हालांकि कोयले की इस्तरी सस्ती होती है, परंतु इसमें कुछ कमियाँ भी होती हैं, जैसे कि- ताप को उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले कोयले से इस्तरी किए जाने वाले कपड़े पर दाग लग सकता है तथा इस प्रकार की इस्तरी में तापमान को भी तुरंत नियंत्रित नहीं किया जा सकता। • वैद्युत/बिजली से चलने वाली इस्तरी (Electric Iron) : लगभग सभी रेशों की अपनी-अपनी तापीय विशेषताएँ होती हैं। इसके कारण उन पर उनके विशिष्ट तापमानों के अनुसार इस्तरी किया जाना जरूरी है। ऐसा बिजली की इस्तरी का प्रयोग करके किया जा सकता है जिसमें तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए, यदि बिजली की समस्या न हो तो स्वचालित वैद्युत इस्तरी सर्वोत्तम विकल्प है। आजकल लगभग सभी विद्युत इस्तरियों पर तापमान नियंत्रित करने के लिए रेगुलेटर लगा होता है ताकि अच्छी प्रेस के लिए कपड़े की प्रकृति के अनुरूप तापमान सेट करा जा सके। सूती कपड़ों को उच्च तापमान पर प्रेस करने की आवश्यकता होती है, जबकि सिल्क और ऊनी कपड़ों के लिए अधिक गर्म इस्त्री की जरूरत नहीं होती है। संश्लेषित रेयॉन से बने वस्त्रों पर कम तापमान पर हल्के से इस्तरी करनी चाहिए। 2. नमी (Moisture) : अच्छी इस्तरी करने के लिए नमी भी बहुत जरूरी होती है। वस्त्रों को धोने के बाद पूरी तरह सूखने से पहले ही यदि इस्तरी किया जाए तो उनमें नमी स्वतः ही मौजूद होती है। अगर वस्त्र अच्छी तरह सूख चुके हैं तो उन पर पानी का छिड़काव करके तौलिए में लपेट कर रख सकते हैं ताकि पानी पूरे कपड़े में समान रूप से फैल जाए। स्प्रे करने वाली बोतल से भी पानी छिड़का जा सकता है। 3. दबाव (Pressure) : वस्त्रों को अच्छी तरह से इस्तरी करने के लिए पर्याप्त दबाव की भी आवश्यकता होती हैं। वस्त्रों पर इस्तरी करते समय हाथ द्वारा आवश्यकता अनुरूप दबाव बनाया जा सकता है। आमतौर पर इस्तरी कपड़ों की लंबाई की दिशा में चलाई जाती है। ऐसे हिस्से जो इस्तरी चलाने से खिंच सकते हैं या आकार में ढीले पड़ सकते हैं पर इस्तरी नहीं चलानी चाहिए, जैसे कि– लेस इत्यादि। ऐसे हिस्सों पर इस्तरी को केवल दबाया जाना चाहिए अर्थात् गर्म इस्तरी को कपड़े पर एक स्थान पर रखना और फिर उसे उठाकर कपड़े पर दूसरे स्थान पर रखना। वस्त्र की तह, तुरपाई किए गए मोड़, जेब, प्लैकेट तथा चुन्नटों को सेट करने के लिए भी दबाने की विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए। बहुत बारीक और सूक्ष्म कपड़ों पर अधिक दबाव डालने की जरूरत नहीं होती है। कपड़ों पर अच्छे ढंग से इस्तरी करने के लिए प्रेस टेबल की भी आवश्यकता होती है। हालांकि प्रेस टेबल न होने की स्थिति में किसी समतल स्थान या टेबल पर एक-दो मोटी चादरें या कम्बल बिछाकर भी आसानी से इस्तरी की जा सकती है। इस्तरी करने के पश्चात्, कपड़ों को रखने के स्थान की उपलब्धता के अनुसार विशिष्ट प्रकार से तह करके रखा जाता है या उन्हें हैंगरों में टाँग दिया जाता है। |
VII. ड्राईक्लीनिंग (Dry Cleaning) गैर-जलीय (Non-aqueous) माध्यम में कपड़े की सफाई की प्रक्रिया को ड्राईक्लीनिंग कहते है। दूसरों शब्दों में कहें तो, जल का प्रयोग किए बिना कपड़ों को गैर-जलीय माध्यम द्वारा साफ करना ड्राईक्लीनिंग कहलाता है। वस्त्रों की सफाई के लिए धुलाई की अपेक्षा ड्राईक्लीनिंग बेहतर क्यों है? (How is dry cleaning better than washing?) घर पर वस्त्रों की सामान्य धुलाई तथा फैक्ट्री में वस्त्रों की ड्राईक्लीन में प्रमुख अंतर दोनों जगह पर प्रयोग किए जाने वाले रसायनों का होता है। घरों में जहाँ अधिकतर जलीय विलायकों (wet-solvents) का प्रयोग किया जाता है तो वहीं ड्राईक्लीन यूनिट पर सूखे विलायकों (dry-solvents) का प्रयोग किया जाता है। जलीय विलायकों में धोने के कारण वस्त्र जल का अवशोषण करते है जिसके कारण वह सिकुड़ते है तथा उन पर झुर्रियाँ भी आ जाती है। इसके अतिरिक्त कपड़ों का रंग बिगड़ने की भी संभावना बनी रहती है, जबकि सूखे विलायकों से धोने पर कपड़ों को बिना किसी नुकसान की आंशका के आसानी से साफ किया जा सकता है। इसलिए ड्राईक्लीनिंग थोड़ा महँगा परंतु मुलायम तथा नाजुक कपड़ों की देखरेख का विश्वसनीय साधन है। ड्राईक्लीनिंग के लिए निम्न रसायनों का प्रयोग किया जाता है- • परक्लोरोथिलीन (Perchloro-ethylene)। • चिकनाई – अवशोषक, ये प्रायः पाउडर के रूप में होते हैं, जैसे कि- फ्रेंच चॉक, टेलकम पाउडर, फुलर अर्थ इत्यादि। इनसे केवल छोटे-छोटे दाग धब्बे छुड़ाये जा सकते है। • चिकनाई विलायक, जैसे कि- ईथर, बेन्जोरल, एसीटोन, बेन्जीन (benzene), कार्बन टेरा क्लोराइड आदि। आमतौर पर ड्राई-क्लीनिंग व्यवसायिक स्तर पर औद्योगिक इकाईयों में ही की जाती है, ना की घरेलू स्तर पर। जब भी कोई वस्त्र ड्राईक्लीनिंग के लिए ड्राई क्लीनर के पास ले जाया जाता हैं तो वहाँ सबसे पहले उस पर पहचान के लिए एक टैग लगाया जाता है जिसमें ड्राईक्लीनिंग संबंधी विशेष अनुदेश लिखे होते हैं। फिर वस्त्रों का निरीक्षण किया जाता है तथा उन्हें स्पॉट बोर्ड पर रखकर जल में घुलनशील दाग-धब्बों को हटाया जाता है। ग्राहक द्वारा ड्राईक्लीनिंग के लिए कपड़े देते समय ड्राईक्लीनर को दाग-धब्बे पहले से ही दिखा देने से उन्हें साफ करना आसान हो जाता हैं तथा ड्राइक्लीनिंग भी अधिक संतोषजनक रूप से हो जाती है। आजकल कई ड्राइक्लीनर अतिरिक्त सेवाएँ जैसे कि- बटन बदलना, वस्त्रों में छोटी-मोटी मरम्मत करना, आकार को बदलना, करना तथा अन्य फिनिशिंग जैसे स्थायी क्रीज़, कीड़ा रोधन तथा फर एवं चमड़े की सफाई इत्यादि जैसी सेवाएँ भी उपलब्ध कराते है। ड्राइक्लीनर फेदर के तकियों, कंबलों, रज़ाइयों तथा कारपेटों की सफाई तथा स्वच्छता भी करते हैं, तथा पर्दों आदि को साफ और प्रेस भी करते हैं। |
वस्त्र उत्पादों का भंडारण (Storage of Textile Products) भारत के अधिकतर हिस्सों में पूरे साल एक जैसा मौसम नहीं रहता अर्थात् कुछ महीने सर्दी रहती है तो कुछ महीने गर्मी रहती है। इसी कारण से हम सबके पास अलग-अलग मौसमों के अनुरूप विभिन्न प्रकार के वस्त्र होते है। किसी एक विशिष्ट मौसम के दौरान पहने जाने वाले वस्त्रों की आवश्यकता के कारण यह जरूरी हो जाता है कि हम उन वस्त्रों को अच्छी तरह संभाल कर रखे जिनका उपयोग दूसरे विशिष्ट मौसम में किया जाना होगा, वस्त्र उत्पादों का सही ढंग से भण्डारण करने के कारण वह लम्बे समय तक प्रयोग के लायक बने रहते है। वस्त्र उत्पादों का भंडारण करते समय निम्न नियमों का पालन करना चाहिए- वस्त्रों के संरक्षण से पूर्व कुछ नियम (General Rules Before Storing Clothes) • वस्त्र रखने से पूर्व यदि आवश्यकता हो तो उनकी मरम्मत कर लें। • वस्त्रों को अलमारी में न रखें क्योंकि उनसे पसीने की गंध आ सकती है। उन्हें पहले अच्छी तरह हवा लगवा लें ताकि पसीने पहने हुए वस्त्रों को अलमारी की गंध खत्म हो जाए। • कपड़ों में यदि कोई पिन लगे हों तो उन्हें निकाल देना चाहिए अन्यथा जंग के निशान पड़ सकते हैं। • रेशमी कपड़ों को सूर्य की रोशनी से बचाना चाहिए। • गीले वस्त्रों को अलमारी में न रखें अन्यथा फफूंदी लग सकती है। • चमड़े के वस्त्रों को साफ कर, पोंछकर तथा सूखने से बचाने के लिए हल्का तेल लगाकर रखना चाहिए। • वस्त्रों को कीड़ों से बचाने के लिए कीड़े मारने की दवा छिड़कनी चाहिए। • वस्त्र को समाचार-पत्र के कागज से लपेट कर भी रख सकते हैं क्योंकि काली स्याही से वस्त्रों पर कीड़े नहीं लगते। • कपड़े कैसे भी हों, उन्हें पैक करके संभाल कर रखने से पूर्व यह आवश्यक है कि वे साफ़ तथा सूखे हों। • ऊनी कपड़ों को रखने से पहले उन्हें भली-भांति ब्रश करना और ड्राइक्लीन कराना आवश्यक है उसमें से सभी दाग-धब्बे हटा दिए गए हों तथा सभी फटे हुए स्थानों की मरम्मत की गई हो। • जेबों को अंदर से बाहर उल्टा किया जाना चाहिए, ट्राउज़र तथा बाजू को भी उल्टा किया जाना चाहिए, उनकी जाँच की जानी चाहिए तथा उनमें से समस्त धूल, गंदगी इत्यादि झाड़ दी जानी चाहिए। • सभी वस्त्रों को झाड़ना, ब्रश किया जाना, धोना, प्रेस करना तथा तह लगाया जाना आवश्यक है। • अलमारियों या ट्रंकों में उन्हें खुला खुला पैक करें। अत्यधिक कस कर पैक किए गए वस्त्रों में उनकी तह पर स्थायी सलवटें पड़ सकती हैं। • कपड़े रखने के लिए चुनी गई शेल्फ़, बक्से या अलमारियाँ साफ़, सूखी तथा कीटमुक्त होनी चाहिए, उनमें धूल तथा गंदगी नहीं होनी चाहिए। • यह आवश्यक है कि पैकिंग अत्यंत कम नमी वाले वातावरण में की जाए। • विभिन्न प्रकार के कपड़ों के लिए भंडारण के समय भिन्न प्रकार की देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि प्रत्येक प्रकार के वस्त्र अलग-अलग सूक्ष्म जीवाणुओं से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जैसे कि- सूती वस्त्रों का संग्रह ( Storage of Cotton Clothes) : (a) वस्त्रों को छांट कर अलग-अलग खानों में रखें। गीले कपड़े कभी-भी अलमारी में न रखें इससे फफूँदी लगने का भय रहता है। (b) वस्त्रों को सुखाकर हैंगर में टांगना चाहिए। पहने हुए वस्त्रों का पसीना सुखाकर व झाड़कर ही अलमारी में रखना चाहिए। (c) सूती कपड़ों को रखने से पूर्व धोकर इस्त्री करके रखना चाहिए। (d) यदि आवश्यकता हो तो वस्त्रों की मरम्मत करके उनमें नीम के पत्ते या मौथबाल्स रखकर ही संदूक में रखना चाहिए ताकि फफूँदी न लगे। (e) सूती कपड़े को कभी भी मांड लगा कर संग्रहित नहीं करना चाहिए क्योंकि मांड कीड़ों को आकर्षित करता है। |
ऊनी कपड़ों का संग्रह (Storage of Woolen Clothes) : ऊनी कपड़ों को सर्दियों के मौसम में प्रयोग किया जाता है। ऊनी वस्त्रों का संग्रह ऐसा करना चाहिए ताकि फफूंदी या कीड़ा न लग सके। (a) ऊनी कपड़ों की अलमारी ऐसी होनी चाहिए कि इसमें कीड़ा प्रवेश न कर सके। (b) ऊनी वस्त्र को संग्रहित करने से पूर्व ड्राईक्लीन करवा लेनी चाहिए। (c) ऊनी कपड़ों में कीड़े न लगे इसके लिए मौथबाल्स का प्रयोग करना चाहिए। (d) मलमल के कपड़े या कागज में लपेट कर रखने से भी वस्त्र ठीक रहते हैं। (e) ऊनी वस्त्रों को रखने से पूर्व धूप लगवानी चाहिए। रेशमी व जरी के वस्त्रों का संग्रह (Storage of Silk and Brocade Clothes) (a) रेशमी व जरी के वस्त्रों का संग्रह करने से पूर्व उन्हें ड्राईक्लीन करवा लेना चाहिए। (b) वस्त्र को मलमल के कपड़े में लपेट कर रखना चाहिए तथा वस्त्र में लौंग व नीम के पत्ते रखने चाहिए ताकि उनमें कीड़े व फफूँदी न लग सकें। (c) कभी भी गंदे अथवा पसीने-युक्त वस्त्रों का संग्रह नहीं करना चाहिए। (d) जरी के वस्त्रों में मौथबाल्स नहीं रखनी चाहिए क्योंकि इससे जरी काली हो जाती है। (e) वस्त्रों को संग्रहित करने से पूर्व धूप लगवानी चाहिए ताकि उनमें नमी न रहे। (f) रेशमी वस्त्रों में संग्रह करने से पूर्व मांड नहीं लगानी चाहिए क्योंकि मांड लगाने से कीड़े लगने का भय रहता है। ऊनी व सिल्क के कपड़ों पर मौथ प्रूफ फिनिश करवाने से कीड़ों का भय नहीं रहता। |
2. धागे की संरचना (Yarn Structure) धागे की संरचना अर्थात् धागे की किस्म तथा उसे किस प्रकार के मोड़ दिए गए हैं भी वस्त्र के रखरखाव को प्रभावित करते हैं, जैसे कि- अधिक मुड़े हुए धागे सिकुड़ जाएँगे अथवा नये तथा जटिल धागे उलझ या खुल सकते हैं। यदि वस्त्र मिश्रित धागों से निर्मित है तो दोनों रेशों की देखभाल की जानी आवश्यक है, जैसे कि – यदि सूत के साथ पोलिएस्टर को मिश्रित किया गया है तो अधिक गर्म जल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, अन्यथा वस्त्र सिकुड़ जाएगा इसके अतिरिक्त उसमें अधिक सलवटें भी नहीं पड़ेंगी जिसके कारण उसे इस्तरी करना आसान होगा। 3. वस्त्र निर्माण (Fabric Construction) वस्त्र निर्माण की विधि का वस्त्र के रखरखाव के साथ गहरा संबंध है, जैसे कि- सादा महीन बुने हुए वस्त्रों का रखरखाव करना आसान है जबकि फैंसी बुनाइयों (साटिन, पाइल इत्यादि) वाले वस्त्र धुलाई के दौरान उलझ सकते हैं। उसी प्रकार धुलाई के दौरान बुने हुए वस्त्रों का आकार बिगड़ जाता है जिसके कारण उन्हें पुनः आकार दिया जाना जरूरी हो जाता है। लेस तथा जालियों जैसे वस्त्र के प्रति विशेष सावधानी बरतनी जरूरी होती है। 4. रंग तथा अंतिम रूप (Colour and Finishes) वस्त्रों के रंग भी उनकी देखभाल को प्रभावित करते है, जैसे कि – रंगे हुए तथा प्रिंटेड वस्त्रों का धुलाई के दौरान रंग निकल सकता है तथा उनके रंग का दाग अन्य वस्त्रों पर लग सकता है। इसलिए प्रयोग किए जाने से पूर्व वस्त्र के रंग का परीक्षण कर लेना चाहिए तथा इसके प्रयोग के दौरान उचित देखभाल की जानी आवश्यक है। अनेक प्रकार की परिसज्जाएँ भी वस्त्रों की रंगत को बदल सकती हैं जिससे कि वस्त्र बेहतर या खराब हो सकते हैं। इसी तरह कई परिसज्जाएँ ऐसी भी होती है जिन्हें प्रत्येक लाई के बाद फिर से किया जाना जरूरी होता है, जैसे कि- सफेद वस्त्रों को नील लगाना। |
वस्त्रों की देखभाल के लिए लेबल (Care Label) वस्त्र पर लगा लेबल एक स्थाई टैग होता है जिसमें वस्त्र की देखभाल संबंधी दिशा-निर्देश दिए गए होते है। वस्त्र की देखभाल के लिए उस पर लेबल लगाए जाते है। वस्त्र में लगे लेबल पर उस वस्त्र की देखभाल (चमक व प्रकृति बनाए रखने हेतु) संबंधित जरूरी दिशा-निर्देश दिए होते है। इन लेबलों पर कुछ चिह्न दिए जाते है जो कि पोशाक की साफ-सफाई व रख-रखाव संबंधी निर्देशों को दर्शाता है। वस्त्रों के लेबल पर छपे ऐसे ही कुछ आवश्यक चिह्न निम्न है- धुलाई अनुदेश ठंडे जल का प्रयोग करें या मशीन का तापमान ठंडे पर सेट करें। गुनगुने पानी का प्रयोग करें या मशीन के तापमान को हल्के गर्म पर सेट करें। गर्म पानी का प्रयोग करें या मशीन का तापमान गर्म पर सेट करें। मशीन में धुलाई की जा सकती है। टम्बल ड्राई। छाया में सुखाएँ। इस्तरी का तापमान 210०C (गर्म) पर सेट करें। इस्तरी का तापमान 160०C (गर्म) पर सेट करें। इस्तरी न करें। इस्तरी का तापमान 120०C (गर्म) पर सेट करें। क्लोरीन ब्लीच। ब्लीच न करें। सभी विद्यायकों का प्रयोग कर सकते है। केवल श्वेत स्पिरिट या क्लोरीन ईथीलीन से ड्राइक्लीन करें। ड्राइक्लीन करते समय विशेष सावधानी बरतें क्योंकि वे ड्राइक्लीन के प्रति सवेंदनशील है। केवल श्वेत स्पिरिट का प्रयोग करे। ड्राइक्लीन न करें। |
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