NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 11 स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य कल्याण (Health and Wellness) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 11 स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य कल्याणन (Health and Wellness) Notes In Hindi

TextbookNCERT
class11th
SubjectHome Science
Chapter11th
Chapter Nameस्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य कल्याण
CategoryClass 11th Home Science Notes in hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 11 स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य कल्याणन (Health and Wellness) Notes In Hindi इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप निम्न को समझ पाएँगे- स्वास्थ्य एवं स्वस्थता का महत्त्व, वयस्कों की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और चुनौतियाँ, स्वास्थ्य कल्याण की संकल्पना तथा वयस्कों में अच्छे स्वास्थ्य और स्वास्थ्य कल्याण को बढ़ावा देने और उसे बनाए रखने के उपाय।

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 11 स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य कल्याणन (Health and Wellness) Notes In Hindi

Chapter – 11

हमारे परिधान

Notes

भारत में स्वास्थ्य का परिदृश्य (Health Scenario in India)

आजादी के बाद से भारत ने स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र (health sector) में जबरदस्त तरक्की की है। भारतीयों की कुछ प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए सरकार ने कई राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किए जिनके चलते जन्म दर (birth rate), मृत्यु दर (death rate) तथा शिशु मृत्यु दर (infant mortality rate) में कमी आई है और साथ-ही-साथ जीवन प्रत्याशा दर (life expectancy rate) में वृद्धि हुई है।

हालांकि भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का लगभग 5 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रहा है, इसके बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2008 में जारी की गई एक रिपोर्ट में भारत के बारे में जो निम्नलिखित स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े जारी किए गए है उनसे यह सिद्ध होता है कि देश की स्वास्थ्य सेवाओं में अभी भी बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है।

• कुल जनसंख्या (Total Population) : 1,151,751,0001
• जीवन- प्रत्याशा (Life Expectancy) : पुरुष 62 वर्ष तथा महिला 64 वर्ष।
• स्वस्थ जीवन- प्रत्याशा (Healthy Life Expectancy) : पुरुष 53 वर्ष तथा महिला 54 वर्ष।
• पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु की संभावना (Probability of Dying Under Five) : 76 (प्रति 1000 जीवित जन्मों पर)।
• 15 से 60 वर्ष की आयु के बीच मृत्यु की संभावना (Probability of Dying Between 15-60 years) : पुरुष 276 तथा महिला 203 (प्रति 1000 जनसंख्या)।

भारतीयों की स्वास्थ्य स्थिति के संदर्भ में दिए गए उपरोक्त आँकड़े बहुत ही चौंकाने वाले तथा चिंताजनक हैं। एक शोध के अनुसार, 2025 तक हर पाँच भारतीयों में से एक भारतीय मधुमेह से पीड़ित होगा। इसके अतिरिक्त हृदय रोग, अस्थि रोगों और हेपेटाइटिस, क्षय रोग, एड्स जैसे संक्रामक/संचारी रोग भी तेजी से विकराल रूप धारण करते जा रहे है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह जरूरी है कि हर व्यक्ति : स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के प्रति विशेष रूप से जागरूक हों।

वर्तमान समय में असंक्रामक रोग जैसे कि- मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर इत्यादि के कारण होने वाली मृत्यु दर संक्रामक और संचारी रोग के कारण होने वाली मृत्यु दर की अपेक्षा कहीं अधिक हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में यह स्थिति और भी गंभीर होती जाएगी। जिसके कारण राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर इस समस्या का निवारण करने की तत्काल आवश्यकता है।

आज से कुछ वर्षों पहले तक मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, कैंसर जैसे रोग केवल वृद्ध व्यक्तियों में ही देखे जाते थे, जबकि आज वहीं रोग युवाओं और कम उम्र के वयस्कों में भी पाए जाने लगे हैं। उसी प्रकार मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापे संबंधी स्वास्थ्य समस्याएँ पहले केवल उच्च आय वर्ग वाले व्यक्तियों तक ही सीमित थे जबकि आज यहीं रोग निम्न आय वर्ग वाले लोगों को भी अपना शिकार बना रहे है। हालांकि आज भी यह स्वास्थ्य समस्याएँ ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें से अधिकांश स्वास्थ्य समस्याएँ अस्वस्थ खान-पान और शारीरिक परिश्रम की कमी के कारण ही उत्पन्न होती हैं।

यदि किसी देश के नागरिकों को जीवनशैली संबंधी विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़े तो ऐसी स्थिति में सरकार पर भी बहुत अधिक आर्थिक दबाव पड़ता है-

• बीमारी के कारण व्यक्ति तथा उसके परिवार के साथ-साथ सरकार पर भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है, क्योंकि अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करना सरकार का ही कर्त्तव्य होता है।
• बीमारियों के कारण पीड़ित व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता तथा उसकी उत्पादकता (quality and productivity) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जोकि अंतः राष्ट्र की आर्थिक प्रगति को भी प्रभावित करता है।
भारतीय जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति के संकेतक (Indicators of Health Status of the Indian Population)

• हमारे देश में विभिन्न प्रकार के नेत्र रोगों के कारण अंधे होने वाले कुल लोगों में से लगभग 80 प्रतिशत लोग मोतियाबिंद के कारण अंधे होते है। भारत में मोतियाबिंद के वार्षिक मामले 3.8 मिलियन हैं, और यह संख्या हर साल तेजी से बढ़ती जा रही है।

• एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2018 में लगभग 784,821 लोगों की कैंसर से मृत्यु हुई थी और वर्ष 2021 तक यह संख्या 15,51,800 तक बढ़ जाने की संभावना है।

• एक रिर्पोट के अनुसार भारत में वर्ष 2016 में अनुमानत: 54.5 मिलियन लोगों की विभिन्न प्रकार से हृदय रोगों के कारण मृत्यु हुई थी। वर्तमान समय में आधुनिक जीवनशैली के कारण हृदय समस्याओं के कारण होने वाली मृत्यु दर में तेजी से वृद्धि हो रही है।

• भारत में वर्ष 2001 में मलेरिया के 2.03 मिलियन मामले थे जोकि वर्ष 2021 में बढ़कर 2.62 मिलियन होने का अनुमान है।

• तनावग्रस्त और आधुनिक जीवनशैली के कारण उच्च रक्तचाप, मधुमेह और वृक्क रोग (Hypertension, Diabetes and Renal Diseases) जैसे विकार तेजी से बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान समय में भारत में लगभग 77 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च रक्तचाप की समस्या कम है, किंतु शहरी क्षेत्रों में यह तेजी से बढ़ रही है।
स्वस्थ व्यक्ति (Healthy Person)

स्वस्थ्य व्यक्ति का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो सभी प्रकार के रोगों एवं चोटों से सुरक्षित हो।

दूसरे शब्दों में कहें तो, स्वस्थ व्यक्ति का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अपने जीवन में आने वाली शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक तथा नैतिक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम हों तथा सही समय पर सही निर्णय लेते हुए सुखी तथा खुशहाल जीवन जीने की क्षमता रखता हों।

स्वस्थ व्यक्ति के गुण (Qualities of a Healthy Person)

• एक स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों का प्रभावी ढंग से सामना करने व उन्हें सुलझाने की क्षमता रखता हैं।
• स्वस्थ व्यक्ति अपनी शारीरिक तथा मानसिक सुयोग्यता को बढ़ाने एवं बनाए रखने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करते है, उचित आहार लेते है एवं आध्यात्मिक चिन्तन के द्वारा शारीरिक एवं मानसिक सुदृढ़ता उत्पन्न करते है जो उन्हें संक्रमण, चोटों एवं अवसाद से सुरक्षा प्रदान करती है।
• स्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वयं एवं परिवार के लिए बेहतर गुणवत्ता का जीवन चुनते हैं, बल्कि समाज एवं समुदाय की जीवन गुणवत्ता बढ़ाने में भी विशेष रूप से सहायक होते हैं।
शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body Mass Index – BMI)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य का मापन उसके शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body Mass Index – BMI) की गणना द्वारा आसानी से किया जा सकता है। शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body Mass Index – BMI) की गणना द्वारा शरीर में ग्रहण भोजन के चयापचय की दर का अनुमान लगाया जाता है।

• शरीर में भोजन द्वारा ग्रहण किए गए खाद्य पदार्थों के टूटने/अपचय (catabolism) तथा नए घटकों के निर्माण-उपचय (anabolism) को सम्मिलित रूप से चयापचय (metabolism) कहते है।
• जिस दर से शरीर में चयापचय प्रक्रिया सम्पन्न होती है, उसे चयापचय की दर (metabolic rate) कहते हैं।
• किसी व्यक्ति का शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body Mass Index – BMI) यह बताता है कि उस व्यक्ति का शारीरिक भार उसकी लम्बाई अनुपात में है या नहीं।
• किसी व्यक्ति का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) निम्न सूत्र के द्वारा मापा जाता है-
बॉडी मास इंडेक्स (बी.एम. आई.) = (शरीर का भार/ऊँचाई x ऊँचाई (मीटर में))
• बी.एम.आई. मानक का आयु से कोई संबंध नहीं है तथा यह पुरुष और स्त्री दोनों लिंगों के लिए समान है। हालांकि • आनुवांशिक, जातीय और नस्लीय कारकों के कारण यह अलग-अलग हो सकते हैं।
• बी. एम.आई. बढ़ने के साथ स्वास्थ्य जोखिम अधिक हैं।
• अन्य देशों की तुलना में एशियाई लोगों में बी.एम.आई. अधिक होता है जिसके कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी अधिक जोखिम होते है।
ऊर्जा संतुलन तथा स्वस्थ शारीरिक भार प्राप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव-

अच्छे स्वास्थ्य और आदर्श शारीरिक भार को बनाए रखने के लिए, विभिन्न स्वास्थ्य विशेषज्ञ निम्न का सुझाव देते है-

क्या करें-
• फलों और सब्ज़ियों का अधिक-से-अधिक उपभोग करें।
• फलीदार सब्ज़ियों, संपूर्ण खाद्यान्नों और गिरियों का अधिक सेवन करें।
• ग्रहण की जाने वाली ऊर्जा का खपत होने वाली ऊर्जा में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करें।
• केवल आयोडीनयुक्त नमक का ही प्रयोग करें।
• प्रचुर मात्रा में पानी पिएँ।

क्या न करें-
• अधिक वसा/तेलयुक्त (ब्रेड के ऊपर मक्खन, पराठों पर घी) या तले हुए खाद्य-पदार्थों जैसे कि- पकौड़े, भठूरे, समोसे आदि का न के बराबर ही उपभोग करें।
• संतृप्त वसा और ट्रांस वसा जैसे कि वनस्पति घी इत्यादि का कम-से-कम प्रयोग करें।
• नमक विशेषकर कच्चे नमक का कम-से-कम उपभोग करें।
• संसाधित खाद्य पदार्थों जैसे कि- वेफर्स, केचप्स्, सॉस, बिस्कुट, अचार, पापड़ इत्यादि का कम उपयोग करें, क्योंकि उनमें अत्यधिक मात्रा में नमक, चीनी तथा वसा होती है।
• पके हुए भोज्य पदार्थों या सलाद पर ऊपर से नमक छिड़कने से परहेज करें।
• मिठाइयाँ, चॉकलेट, पेय पदार्थों का अति सेवन न करें।
स्वस्थता/सुयोग्यता (Fitness)

शारीरिक रूप से तंदुरस्त और निरोगी होने की स्थिति को स्वस्थता अथवा शारीरिक सुयोग्यता कहते है।

किसी भी व्यक्ति की स्वस्थता केवल उचित एवं संतुलित आहार का ही परिणाम नहीं होती बल्कि यह उचित प्रकार के आहार के साथ-साथ नियमित रूप से किए जाने वाले व्यायामों तथा स्वास्थ्य संबंधी रखरखाव के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। आयु बढ़ने के अनुरूप व्यक्ति के शरीर में कई परिवर्तन आते हैं। इनमें से कुछ परिवर्तन ऐसे भी होते है जिनके कारण व्यक्ति की क्षमताओं और शारीरिक क्रियाकलापों में कमी आती है।

आयु बढ़ने के अनुरूप शारीरिक स्वस्थता को बनाए रखने के लिए तथा स्वस्थ जीवन-यापन के लिए नियमित रूप से व्यायाम और शारीरिक क्रियाकलाप करते रहना चाहिए। नियमित व्यायाम करने से उपभोग की गई अधिक कैलोरीज़ खर्च होती है जिसके कारण अतिरिक्त कैलोरीज की शरीर में वसा के रूप में जमने की संभावना कम होती है।

• नियमित व्यायाम व्यक्ति को चुस्त बनाता है।
• जो व्यक्ति नियमित रूप से व्यायाम करते हैं, स्वयं ही अच्छा महसूस करते हैं और बेहतर रूप से सो पाते हैं।
• व्यायाम से हृदय और फेफड़े भी अधिक प्रभावी रूप से कार्य करते हैं, जिससे रक्त परिसंचरण सुधरता है तथा श्वसन तंत्र मजबूत होता है। इसके लिए सप्ताह में तीन बार कम-से-कम 20 मिनट के लिए किया गया व्यायाम लाभदायक सिद्ध होता है।
• बुजुर्गों को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए ताकि वे मोटापे, उच्च रक्तदाब, और मधुमेह जैसे कई रोगों से बच सकें और उन्हें नियंत्रित कर सकें।
वयस्कावस्था में व्यायाम के लाभ (Benefits/Importance of Exercise in Adulthood)

व्यायाम और बीमारी (Exercise and Illness) :

• नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर के संघटन, उपपाचय दर, हृदय तथा श्वसन संबंधी स्वस्थता में सुधार आता है जिसके कारण गंभीर और दीर्घकालिक बीमारियों की संभावना में कमी आती है।
• व्यायाम के कारण शारीरिक ढाँचे, सहनशक्ति, पेशीय बल तथा लचक में सुधार होता है जिसके कारण व्यक्ति लम्बे समय तक शारीरिक रूप से क्रियाशील रह सकता है अर्थात् अशक्तता की संभावना को कम करता है।
• विभिन्न प्रकार के व्यायाम तथा शारीरिक क्रियाकलाप बुजुगों में आमतौर पर परंतु मुश्किल से ठीक होने वाली समस्याओं, जैसे कि- तनाव और अवसाद, अनिद्रा, क्षुधा-अभाव, कब्ज इत्यादि को रोकने और उनका उपचार करने में सहायक होते है।
• नियमित शारीरिक व्यायाम कई वर्षों के लिए अशक्तता को दूर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यदि कोई आलसी व्यक्ति भी थोड़ा बहुत व्यायाम करें तो भी उसे कई महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं।
• शरीर के निचले भाग के व्यायाम विशेष रूप से वृद्धों में शारीरिक संतुलन बनाए रखने में सहायक
होते है।
• व्यायाम शारीरिक भार को कम करने तथा आदर्श भार को बनाए रखने के लिए जरूरी होते है।
• व्यायाम शारीरिक भार को कम करने तथा आदर्श भार को बनाए रखने के लिए जरूरी होते है।
• नियमित व्यायाम शरीर में शर्करा के स्तर और रक्तदाब को नियंत्रित करने में सहायक होते है।
• व्यायाम हड्डियों में खनिजों की सघनता को बनाए रखने में सहायक होते है जिसके कारण हड्डियों के टूटने और टूटने के कारण होने वाली अशक्तता का जोखिम भी कम होता हैं।
• विभिन्न प्रकार के व्यायामों द्वारा शरीर के ऊपरी और निचले भाग की पेशीय ताकत को बढ़ाया जा सकता है।
व्यायामों का वर्गीकरण (Classification of Exercises) :

व्यायामों को तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-

(a) सहनशक्ति निर्माण/वातापेक्षी (एरोबिक्स) व्यायाम (Endurance Building / Aerobic Exercise) : टहलना, साइकिल चलाना, तैराकी, फुटबाल, टेनिस, बैडमिंटन शामिल इस प्रकार के व्यायाम के उदाहरण है। इन व्यायामों को करने से निम्न लाभ प्राप्त होते है-

• शारीरिक सहनशीलता में वृद्धि,
• स्वस्थता में सुधार,
• वज़न कम करने तथा नियंत्रित करने में सहायक,
• हृदय तथा श्वसन तंत्र की कार्यक्षमता में सुधार,
• रक्त में शर्करा को नियंत्रित करने में सहायक,
• कब्ज की समस्या को दूर करते है,
• अच्छी नींद आती है,
• सकारात्मक सोच विकसित करने में सहायक होते।
उपरोक्त लाभ नियमित रूप से प्रतिदिन 30 मिनट तक व्यायाम के कुछ ही सप्ताहों के पश्चात् नजर आने लगेंगे, हालांकि यदि व्यायाम के नियम को तोड़ा जाएगा तो स्वस्थता का स्तर शीघ्र ही घटने लगेगा।

(b) शक्ति निर्माण / प्रतिरोध व्यायाम (Strength Building/Resistance Exercise) : भारोत्तोलन, दंड-बैठक/प्रोत्थान तथा जिम में विशिष्ट रूप से निर्मित उपकरणों द्वारा व्यायाम करना शक्ति निर्माण/प्रतिरोध व्यायाम के उदाहरण है। इन व्यायामों को करने से निम्न लाभ प्राप्त होते है-
• पेशियों की ताकत और हड्डी के भार को बढ़ाते हैं,
• आसन (posture) को सुधारते हैं।
• शरीर को गठीला बनाते है,

(c) संतुलन बढ़ाने के लिए/लचक वाले व्यायाम (Promoting Balance / Flexibility Exercise) : इस प्रकार के व्यायामों में योग और सीढ़ी चढ़ना शामिल होता है जिनमें शरीर के अंगों को ताना, ढीला छोड़ा और झुकाया जाता है। इन व्यायामों को करने से निम्न लाभ प्राप्त होते है-
• पेशियों और जोड़ों को अधिक-से-अधिक कोण तक घुमाने के योग्य बनाते है।
• शरीर की जकड़न को कम करते है तथा जोड़ों को अधिक लचीला बनाते हैं।
• शरीर के संतुलन, लचीलेपन तथा गतिशीलता में सुधार करते है।

उपरोक्त व्यायाम/व्यायामों को प्रतिदिन कम-से-कम 30 मिनट तक करने से प्रौढ़ावस्था के दौरान स्वास्थ्य में काफी सुधार होता है।

2. व्यायाम, मानसिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य कल्याण (Exercise, Mental Health and Well-being) : विभिन्न शोध कार्यों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि, नियमित रूप से व्यायाम के कारण होने वाले शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी लाभों के साथ-साथ व्यक्ति के स्वास्थ्य कल्याण (Wellbeing) और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए,

• एक विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अवसादग्रस्त व्यक्तियों का 4 महीनों तक अध्ययन किया और पाया कि जिन व्यक्तियों ने सप्ताह में तीन बार तीस मिनट के लिए व्यायाम किया था, उनमें से 60 प्रतिशत व्यक्ति बिना किसी दवाई के अवसाद पर काबू पा सके।

• विभिन्न शोध कार्यों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि, प्रतिदिन केवल 8 मिनट तक व्यायाम करने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार आता है और साथ-ही-साथ उसकी उदासी, तनाव और क्रोध में कमी आती है।

उपरोक्त उदाहरणों से यह सिद्ध होता है कि, नियमित रूप से व्यायाम व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और कुशलता में विशेष योगदान करता है। अतः, व्यायाम को जीवन के एक ऐसे अनिवार्य क्रियाकलाप के रूप में समझा जाना चाहिए कि जो विभिन्न प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं की रोकथाम करता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि, व्यायाम को कभी भी किसी प्रकार की मजबूरी या सजा समझकर नहीं किया जाना चाहिए ऐसा करने से व्यक्ति व्यायाम के वास्तविक लाभों से वंचित रह सकता है। इसलिए व्यायाम को सजा समझने की उसे पूरे आनंद के साथ करना चाहिए, ऐसा करने से कई प्रकार के शारीरिक दर्द और तकलीफे तथा विभिन्न प्रकार की मानसिक परेशानियाँ धीरे-धीरे स्वतः ही गायब हो जाती है।

आदिकाल से ही भारत में विभिन्न प्रकार के व्यायामों के अतिरिक्त योग और ध्यान-मनन करने की भी प्रथा रही है। योग्य तथा ध्यान लगाने से मानसिक स्वास्थ्य और कुशलता में वृद्धि होती है। योग शरीर को और अधिक लचीला बनाता है। विभिन्न शोध कार्यों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि, नियमित रूप से योग करने से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, तनाव इत्यादि जैसी विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है तथा उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।

नियमित रूप से व्यायाम करने से मस्तिष्क ऐंडोर्फिन्स नामक द्रव्य निष्कासित करता है, जोकि प्राकृतिक दर्द निवारक हैं और प्रसन्नता तथा कुशलता की भावनाओं को बढ़ाता हैं। आधुनिक जीवनशैली के कारण आज लगभग हर व्यक्ति किसी-न-किसी प्रकार के तनाव से ग्रस्त है। ऐसे में यह जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान दे।

2002 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ‘शारीरिक क्रियाकलाप’ (physical activity) विषय को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मान्यता दी। तब से, विश्व भर में 6 अप्रैल को शारीरिक क्रियाकलाप दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पहला ऐसा वैश्विक उदाहरण है जिसका लक्ष्य है- शारीरिक क्रियाकलाप के माध्यम से स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
स्वास्थ्य कल्याण/स्वस्थता/सुयोग्यता क्या है? (What is Wellness ?)

स्वास्थ्य कल्याण/सुयोग्यता का तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है, जिसके द्वारा वह एक अच्छा संतुलित जीवन व्यतीत कर सकता है।

दूसरे शब्दों में कहे तो- स्वस्थता पूर्ण रूप से स्वस्थ होने की स्थिति है अर्थात् अपने जीवन के सभी पहलुओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करना। किसी व्यक्ति की सुयोग्यता या स्वस्थता उसकी शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक, बौद्धिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के एकीकरण का परिणाम होती है। पूर्ण रूप से स्वस्थ या सुयोग्य व्यक्ति ही कार्य निष्पादन के उच्चतम स्तरों को प्राप्त कर सकता है। ‘स्वस्थता’ की संकल्पना व्यक्ति के स्वास्थ्य और कार्य-कुशलता को बेहतर बनाने के लिए व्यक्ति की समस्याओं, आवश्यकताओं या कमजोरियों पर केंद्रित होने अपेक्षा उसके गुणों और शक्तियों पर केन्द्रित होती है। स्वस्थता/सुयोग्यता पर विशेष ध्यान देने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों, चिकित्सीय खर्ची से तथा शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से बचा जा सकता है।
स्वस्थता / सुयोग्यता का दृष्टिकोण हमारे लिए किस प्रकार सहायक होता है? (How Does the Wellness Approach Help?)

स्वस्थता, संपूर्ण जीवन अवधि के दौरान विभिन्न प्रकार के रोगों, शारीरिक और मानसिक अशक्तता तथा समस्याओं एवं परेशानियों को कम करके ‘जीवन की गुणवत्ता’ को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वस्थता मनुष्य की उन सकारात्मक मानवीय शक्तियों को बढ़ावा देने के लिए परमावश्यक है जो सामंजस्य और स्वस्थता को बनाए रखने तथा विकसित करने में सहायता प्रदान करती है। हर व्यक्ति अपने स्वयं के जीवन की गुणवत्ता के लिए स्वयं उतरदायी होता है। इसलिए हर व्यक्ति को यह प्रयास करना चाहिए कि वह एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाए ताकि वह एक स्वस्थ एवं संतुष्ट जीवन व्यतीत कर सके। स्वस्थता के दृष्टिकोण को निम्न द्वारा और अच्छी तरह से समझा जा सकता है-

स्वस्थता एक पसंद है (Wellness is a choice) अर्थात् यह एक व्यक्तिगत निर्णय हैं जो बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए लिख जाता है।
स्वस्थता जीने का एक तरीका है (Wellness is a way of life) अर्थात् यह एक ऐसी जीवनशैली जो एक व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने में और अपनी क्षमता पहचानने में सहायक होती है।
स्वस्थता एक प्रक्रिया है (Wellness is a dynamic process) अर्थात् यह ऐसे निर्णयों और व्यवहारों का एक क्रम है जो स्वास्थ्य, कुशलता और प्रसन्नता प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनाया जाता है।
स्वस्थता समग्र दृष्टिकोण है (Wellness is holistic approach) अर्थात् यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो व्यक्ति के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को इस सोच के साथ एकीकृत करता है कि हमारे सभी विश्वास, विचार, भाव और कार्य हमें किसी-न-किसी प्रकार से जरूर प्रभावित करते हैं।
स्वस्थता अपनी स्थितियों एवं परिस्थितियों को सहर्ष स्वीकार करना है (Wellness is wholehearted acceptance of self situations and circumstances) अर्थात् यह व्यक्ति को उसकी सभी कमजोरियों, शक्तियों और चुनौतियों को समझने में सहायता प्रदान करती है।
स्वस्थ जीवनशैली के आयाम (Dimensions of Healthy Lifesytle)

एक स्वस्थ जीवन शैली के विभिन्न आयाम निम्न चित्र में दर्शाए गए है-

उच्च श्रेणी की स्वस्थता/सुयोग्यता वाले व्यक्ति के गुण (Qualities of a Person Who is Rated High on Wellness) अच्छी स्वस्थता/सुयोग्यता वाले व्यक्ति में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-

• उच्च आत्मसम्मान (high self esteem)।
• सकारात्मक दृष्टिकोण (positive outlook/approach)।
• ज़िम्मेदार और वचनबद्ध (responsible and commited)।
• हँसमुख स्वभाव (pleasant nature)।
• दूसरों के प्रति चिंता का भाव (concern for others)।
• पर्यावरण के प्रति सम्मान (repect for nature/environment) |
• शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ (physically and mentally healthy)।
• स्वस्थ जीवन-शैली का अनुसरण करते हैं (follow a healthy lifestyle)।
• नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करते (do not conusme any drugs) ।
• जीवन की चुनौतियों का समाना करने की क्षमता (capacity to face challenge of life)।
• कुछ भी नया सीखने में शर्माते नहीं हैं (never feel ashamed of learning something new)।
• दूसरों से प्यार एवं उनकी की देखभाल करने में समर्थ (capacity to love and take care of others) |
• प्रभावी संप्रेषण में समर्थ (can communicate effectively)।
स्वस्थता /सुयोग्यता के आयाम (Dimensions of Wellness)

‘स्वस्थ जीवन शैली’ अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता, परिवार, मित्रों और साथियों के साथ अच्छे संबंध और साथ ही अपने कार्य और कार्यस्थल में उत्पादकता और संतुष्टि से संबंधित है। प्रत्येक व्यक्ति की स्वस्थता/सुयोग्यता निम्न आयामों पर निर्भर करती हैं-

स्वस्थता/सुयोग्यता के आयाम

1. सामाजिक स्वस्थता,
2. शारीरिक स्वस्थता
3. बौद्धिक स्वस्थता
4. व्यावसायिक स्वस्थता
5. भावनात्मक स्वस्थता
6. आध्यात्मिक स्वस्थता
7. पर्यावरणीय स्वस्थता
8. आर्थिक स्वस्थता
1. सामाजिक स्वस्थता (Social Wellness) : सामाजिक सुयोग्यता का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा समाज के अन्य लोगों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की उसकी योग्यता से है। सामाजिक सुयोग्यता को विकसित करने तथा उसे बनाए रखने के लिए व्यक्ति को दूसरो पर अपना सकारात्मक प्रभाव (positive impression) बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उसे दूसरो के साथ मधुर/शालीन भाषा में वार्तालाप, लोगों के प्रति सहयोग और सम्मान का भाव तथा दूसरों की भावनाओं का आदर करने का प्रयास करना चाहिए।

2. शारीरिक स्वस्थता (Physical Wellness) : शारीरिक सुयोग्यता या पुष्टि का अर्थ मनुष्य के उन गुणों से है जो उसे कठिन कार्यों को पुरा करने में समर्थ बनाती है। मनुष्य के शारीरिक अंगों की कार्यक्षमता को ही ‘शारीरिक पुष्टि’ कहते हैं। सामान्य व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि का अर्थ उसकी दैनिक कार्य करने की क्षमता से है, जिसे वह थकावट अनुभव किए बिना करता है। इसके साथ-साथ कार्य समाप्त करने के पश्चात् भी उसमें अतिरिक्त कार्य करने की शक्ति होनी चाहिए और पुनः शक्ति प्राप्ति की क्षमता भी होनी चाहिए।
शारीरिक पुष्टि के फलस्वरूप वह प्रतिदिन के कार्य भी करता है, मनोरंजन क्रियाओं में भाग लेता है और किसी आकस्मिक घटना या समस्या का सामना करने के लिए तैयार रहता है। प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि उसकी शक्ति, सहनक्षमता, लचक तथा समन्वय योग्यता पर निर्भर करती है।

3. बौद्धिक स्वस्थता (Intellectual Wellness) : बौद्धिक स्वस्थता का तात्पर्य व्यक्ति की उस क्षमता से हैं जिसके द्वारा वह खुले दिमाग से नए-नए विचारों के विषय में हर प्रकार से सोच-विचार करता हैं और नए कौशलों को सीखने के लिए तैयार रहता है। “बौद्धिक रूप से स्वस्थ” व्यक्ति उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग अपने ज्ञानवर्धन, कौशलों में सुधार तथा समाज की भलाई के लिए करता है। बौद्धिक स्वस्थता के कारण ही कोई व्यक्ति बेहतर कार्य निष्पादन तथा बेहतर रूप से समस्याओं का निदान कर पाता हैं।

4. व्यावसायिक स्वस्थता (Occupational Wellness) : व्यावसायिक स्वस्थता का तात्पर्य व्यक्ति की उस क्षमता से हैं जिसके द्वारा वह अपने कार्य से संतोष एवं समृद्धि प्राप्त करता है। यहाँ संतोष का तात्पर्य व्यक्ति की उपलब्धि की अनुभूति से है। हर व्यक्ति चाहता हैं कि वह अपने कार्य के माध्यम से अपने जीवन में व्यक्तिगत संतोष और समृद्धि प्राप्त करें ताकि उसे आराम और संतोष की अनुभूति हो।

व्यावसायिक स्वस्थता के महत्व को समझते हुए आजकल हर छोटी-बड़ी कंपनी में कार्यस्थल पर स्वस्थता पर अत्यधिक बल दिया जा रहा है ताकि कर्मचारियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य, सकुशलता और उत्पादकता सुनिश्चित की जा सके।

5. भावनात्मक स्वस्थता (Emotional Wellness) : भावनात्मक सुयोग्यता का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा अपने दैनिक जीवनयापन के दौरान हर दिन हँसी-खुशी तथा मौज-मस्ती के साथ-साथ तनाव तथा मानसिक दबाव रहित जीवन व्यतीत करने से होता है। भावनात्मक सुयोग्यता की प्राप्ति तथा उसे बढ़ाने के लिए, व्यक्ति को अनावश्यक मानसिक दबाव से बचना चाहिए, इसके लिए मनोरंजक कार्यक्रमों तथा क्रियाकलापों में भाग लेना एक अच्छा विकल्प है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति को ऐसे लोगों की संगति से दूर रहना चाहिए जिनके कारण वह दु:खी, क्रोधी तथा तनावग्रस्त महसूस करें।

6. आध्यात्मिक स्वस्थता (Spiritual Wellness) : आध्यात्मिक सुयोग्यता से तात्पर्य व्यक्ति के आध्यात्मिक तथा आन्तरिक या आत्मिक रूप से शान्त होने से है। आध्यात्मिक सुयोग्यता की प्राप्ति तथा उसे और अधिक विकसित करने के लिए व्यक्ति को स्वयं के प्रति सच्चा रहना चाहिए, इसके अतिरिक्त उसे एक ऐसे आदर्श चरित्र का निर्माण करना चाहिए जो विभिन्न प्रकार के सद्गुणों से युक्त हो तथा जो दूसरों के लिए एक आदर्श बन सके। आध्यात्मिक तथा आंतरिक शांति के लिए नियमित रूप से ध्यान लगाना, योग करना, आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना तथा ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए। व्यक्ति को सभी धर्मों के प्रति भी आदर-सम्मान का भाव रखना चाहिए।

7. पर्यावरणीय स्वस्थता (Environemental Wellness) : प्रत्येक जीव अपने सम्पूर्ण जीवनकाल के दौरान जल, भूमि, वायु का निरन्तर प्रयोग करता हैं। इस दौरान वह बिना सोच-विचार ऐसे बहुत से क्रियाकलाप करता है जो हमारे पर्यावरण को निरन्तर नष्ट एवं दूषित कर रहे हैं। एक सजग व्यक्ति इस पर विचार करते हुए ऐसे उपाय अपनाने की चेष्टा करता है जिसमें उसके द्वारा इन प्राकृतिक संसाधनों का कम-से-कम ह्यास हो क्योंकि यह एक मानवीय आवश्यकता है कि व्यक्ति यह समझे कि वायु, जल, धरती केवल एक के लिए नहीं बल्कि सर्व उपयोग के लिए है एवं उसका बुद्धिमानीपूर्वक पुनः निर्माण एवं प्रयोग ही भावी पीढ़ी के लिए इनकी उपलब्धता सुनिश्चित कर सकता है।

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। हर पाँच वर्ष में विश्व का तापमान 1°C बढ़ रहा है। वातावरण की सुरक्षा के लिए आप क्या कर सकते है? अंतर्राष्ट्रीय संगठन (International Organization) की पर्यावरण रिपोर्ट में विभिन्न देशों में प्रतिव्यक्ति पेड़ों की संख्या बतायी गई है। जहाँ कनाडा, एशिया जैसे देशों में यह संख्या 5000-8000 पेड़ प्रति व्यक्ति है वहीं भारत में प्रतिव्यक्ति पेड़ों की संख्या मात्र 28 है। हमारे देश में प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष लाखों व्यक्ति बीमारियों एवं मृत्यु के शिकार होते हैं। भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रति वर्ष 5 पौधों को लगाने व उनकी देखभाल करने का उत्तरदायित्व लेना चाहिए।

8. आर्थिक स्वस्थता (Economic Wellness) : आर्थिक सुयोग्यता का अभिप्राय व्यक्ति द्वारा न केवल धन अर्जित करने की क्षमता से है, बल्कि नीतिपूर्वक अर्जित किए हुए धन को विवेकपूर्ण व्यय एवं बचत करने की प्रवृत्ति से भी है। ऋण मुक्त व्यक्तिमुक्त जीवन जीने में सक्षम होता है।
दबाव और दबाव से जूझना (Stress and Coping with Stress)

तनाव वह मानसिक स्थिति है जो के मन पर शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक दबाव द्वारा बनती है। प्रत्येक व्यक्ति को बाल्यावस्था से ही अनेक प्रकार के तनावों से गुजरना पड़ना पड़ता है। विभिन्न शोधों से ज्ञात हुआ है कि आजकल बहुत से शहरी इलाकों में 4 वर्ष तक के छोटे बच्चे भी तनाव से ग्रस्त पाए जाते हैं। अत्याधिक प्रतिस्पर्द्धा और अधिक पाने की होड़, आर्थिक कठिनाइयाँ, व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक सम्बन्धों में कटुता, रूग्णावस्था आदि बहुत-सी स्थितियाँ है जिनमें व्यक्ति दबाव तथा तनाव का अनुभव करते हैं।

तनाव निम्न दो प्रकार के हो सकते हैं-
• जिस दबाव का प्रभाव सकारात्मक होता है उसे ‘अनुकूल दबाव’ कहते हैं।
• जिस दबाव का प्रभाव निष्पादन, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रतिकूल होता है उसे ‘प्रतिकूल दबाव’ कहते हैं।

हर व्यक्ति अपनी-अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करने के लिए कोई-न-कोई तरीका अपनाता है। इसे तनाव से निपटने की रणनीति (defence mechanism) कहते हैं। मनोवैज्ञानिकों के कथनासुर चेतन रूप से, सोच-समझ कर यदि तनाव से निपटने के कुछ उपाय अपनाए जाए तो व्यक्ति आसानी से तनावमुक्त रहा सकता है।
तनाव प्रबंधन की कुछ युक्तियाँ (Some Tips for Stress Management)

1. तनाव उत्पन्न करने वाली स्थितियों एवं उनके समाधान के विषय में अपने मित्रों एवं परिवारजनों से बातचीत करने से अक्सर तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

2. नियमित रूप से कुछ विशेष प्रकार के योगासनों द्वारा भी तनाव को कम किया जा सकता है।

3. कोई ऐसी अभिरुचि (hobby) विकसित करे जिसके चलते आप खाली समय में भी वयस्त रहे। ऐसा करने से अक्सर तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों पर ध्यान नहीं जाता।

4. अपनी पसंद का संगीत सुनने से भी तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

5. असहज परिस्थितियों में शांत रहने के लिए अध्यात्म का सहारा लें। ध्यान, व श्वसन तकनीकें क्रोध सहित कई मानसिक व शारीरिक कष्टों का निवारण करने में सहायक होती हैं।

6. ज्ञानवर्धक तथा प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ने की आदत विकसित करें। ऐसा करने से व्यक्ति की मनोवृत्ति में काफी सकारात्मक परिवर्तन आता है जिससे तनाव भी कम हो जाता है।

7. शरीर एवं मस्तिष्क को पर्याप्त आराम देना चाहिए, ऐसा करने से भी तनाव को भी काफी कम किया जा सकता है।
तनाव प्रबंधन की उपरोक्त सभी तकनीकों के अतिरिक्त निम्न उपाय भी तनाव प्रबंधन के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होते है-

• ईमानदारी से आत्म विश्लेषण करें अर्थात् स्वयं से पूछें कि समस्या कहा है? कारण समझ आने पर ऐसी परिस्थितियों, लोगों तथा मुद्दों से बचें।
• इस बात को समझें कि सभी समस्याओं का समाधान तत्काल नहीं हो सकता। इस समस्या से निपटने के लिए सहनशीलता व धैर्य विकसित करें।
• परानुभूति (Empathy) विकसित करें- अर्थात् लोगों की भावनाओं को समझें व महसूस करें क्योंकि
(a) परानुभूति भावात्मक परिपक्वता की सूचक है।
(b) दूसरों के प्रति परानुभूति की भावना स्वयं के तनाव नियंत्रण में सहायक है।
• तनाव का पहला लक्षण महसूस करते ही स्वयं को सचेत करें ताकि अपने व्यवहार को नियंत्रित कर सकें।
दूसरों को क्षमा करना सीखें।
• लोगों की इन्सानियत व अच्छाई पर भरोसा रखें।
• लोगों से मिलते समय सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाकर रखें।
• जिन समस्याओं व परिस्थितियों पर आपका वश नहीं है उन पर उत्तेजित न हों।
• स्वयं से तथा दूसरों से प्रेम करें।
• हकीकत जाने बिना दूसरों से न उलझें।
• यदि परिस्थितियों को अपने अनुसर बदला नहीं जा सकता तो स्वयं को परिस्थिति के अनुसार ढालने की कोशिश करें।
• अतीत में की गई गलतियों से सबक लें।
• जो अपेक्षा दूसरों से करते हैं उस पर स्वयं भी अमल करें।
• यदि इन सबके बाद भी तनाव पर नियंत्रण न रहे तो किसी मनोवैज्ञानिक की सलाह लें।

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