NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 7 (B) विविध संदर्भों में सरोकार और आवश्यकताएँ- संसाधन उपलब्धता और प्रबंधन (Concerns and Needs In Diverse Contexts- Resource Availability and Management) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 7 (B) विविध संदर्भों में सरोकार और आवश्यकताएँ- संसाधन उपलब्धता और प्रबंधन (Concerns and Needs In Diverse Contexts- Resource Availability and Management)

TextbookNCERT
class11th
SubjectHome Science
Chapter7th
Chapter Nameसंचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी
CategoryClass 11th Home Science Notes in hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 7 (B) विविध संदर्भों में सरोकार और आवश्यकताएँ- पोषण, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञान (Concern and Needs in Diverse Contexts Nutrition, Health and Hygiene) Notes In Hindi इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप निम्न को समझ पाएँगे- स्वास्थ्य के महत्त्व और इसके आयाम, पोषण और स्वास्थ्य के बीच के परस्पर-संबंध, अल्पपोषण और अतिपोषण के परिणाम, उपयुक्त और स्वास्थ्यप्रद भोजन के विकल्पों का चुनाव, पोषण और रोग के बीच परस्पर-संबंध, तथा आहार-जनित रोगों की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य सिद्धांत का महत्त्व ।

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 7 (B) विविध संदर्भों में सरोकार और आवश्यकताएँ- संसाधन उपलब्धता और प्रबंधन (Concerns and Needs In Diverse Contexts- Resource Availability and Management)

Chapter – 7 (B)

विविध संदर्भों में सरोकार और आवश्यकताएँ – संसाधन उपलब्धता और प्रबंधन

Notes

भूमिका (Introduction)

हम सब इस बात से भली-भाँति परिचित है कि, विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ती में संसाधन कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धन, समय, स्थान तथा ऊर्जा इत्यादि महत्त्वपूर्ण संसाधनों के कुछ उदाहरण है, सही मायने में तो यह सब किसी मूल्यवान संपत्ति की भाँति हैं। यह सभी संसाधन सभी के पास न बराबर मात्रा में और न ही प्रचूर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।

हालांकि समय ही एक मात्र ऐसा संसाधन हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के पास बराबर मात्रा में उपलब्ध होता है। इसलिए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए इन सभी संसाधनों का ठीक ढंग से प्रबंधन करना जरूरी हो जाता है। यदि इन संसाधनों का उचित प्रकार से उपयोग न किया जाए या इन्हें व्यर्थ जाने दिया जाए तो इस बात की पूरी संभावना है कि हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में पिछड़ जाएँगे। संसाधनों का सामयिक और कुशल प्रबंधन (timely and efficient management) इनके इष्टतम उपयोग को बढ़ता है।
समय प्रबंधन (Time Management)

“कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य सम्पन्न करना समय व्यवस्था कहलाता है।” सरल शब्दों में कहा जाए तो समय का सर्वोत्तम उपयोग ही समय व्यवस्था है। समय एक मात्र ऐसा सीमित संसाधन है जो सभी पास बराबर मात्रा में उपलब्ध होता है तथा एक बार बीत जाने के बाद दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। हर व्यक्ति को प्रतिदिन 24 घंटों का बराबर समय मिलता है।

हालांकि हर व्यक्ति इसका प्रयोग अपने-अपने ढंग से ही करता है। यदि समय का सही प्रबंधन न किया जाए तो यह हर संभव प्रयास के बावजूद भी यह व्यर्थ ही बीत जाता है। व्यक्ति चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हों वह समय को न ही रोक सकता है और न ही उसकी गति को तेज या धीमा कर सकता है।

आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में जहाँ सीमित समय के अंदर ही कई जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ता हैं। ऐसी स्थिति में समय का प्रबंधन और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। हर व्यक्ति को चाहे वह कोई विद्यार्थी हो, ग्रहणी हो, व्यवसायी हो, नौकरी पेशा हो, नेता या अभिनेता हो इत्यादि सभी को अपने-अपने क्षेत्र में सफल होने के लिए समय प्रबंधन कौशल विकसित करना जरूरी होता है। समय प्रबंधन व्यक्ति को कार्य के साथ-साथ पर्याप्त विश्राम और मनोरंजन के अवसर भी प्रदान करता हैं।
समय प्रबंधन का मूल सिद्धांत है-

व्यस्त होने की अपेक्षा परिणाम पर ध्यान केंद्रित करना अक्सर लोग अधूरे कामों के विषय में सोचते हुए ही अपना समय बर्बाद कर देते हैं, समय की ओर ध्यान न देने से वह न ही अपना काम समय पर पूरा कर पाते हैं बल्कि अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी काफी पिछड़ जाते हैं।

जैसे कि- अक्सर कई छात्र परीक्षा के लिए पढ़ने की अपेक्षा केवल परीक्षा के विषय में चिंता करने में ही अपना अधिकतर समय व्यर्थ कर देते है। समय प्रबंधन के शुरूआत एक व्यवस्थित समय योजना (Time plan) निर्धारित करने से होती है। तय अवधि ने निष्पादित कि जाने वाली गतिविधियों की अग्रिम सूची तैयार करने की प्रक्रिया को समय योजना कहते है।
समय और गतिविधि योजना के विविध चरण

(a) जल्दी शुरूआत करें (Start Early) : अपना कार्य जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी शुरू कर दें। काम को टालने या उससे बचने के उपाय करने में समय नष्ट न करें। जैसे कि यदि किसी विद्यार्थी को गर्मी की छुट्टियों के दौरान गृह कार्य मिला हो तो, उसे यह कार्य छुट्टियों की शुरूआत में ही कर देना चाहिए। यदि वह कार्य को छुट्टियाँ खत्म होने से कुछ समय पहले पूरा करने की सोचेगा तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह अपना कार्य समय पर पूरा नहीं कर पाएगा।

(b) नियमित दिनचर्या बनाए (Set a Routine) : नियमित दिनचर्या के अनुरूप कार्य करने का प्रयास करें। हर काम को करने के लिए एक निश्चित समय निर्धारित करें, और फिर निर्धारित समय के अनुरूप ही उस कार्य को पूरा करें। जैसे कि स्कूल का काम पूरा करन घर का कामकाज करना और फिर अन्य कार्य करना। छात्रों को प्रतिदिन का नियम बना लेना चाहिए कि बिना विलंब किए समय में काम पूरा करना है।

(c) प्राथमिकताएँ तय करे (Set Prioritises) : सभी के पास सीमित समय होता है इसलिए किये जाने वाले कामों की प्राथमिकता तप करना अच्छा रहता हैं। अनिवार्य कार्यों को पहले निपटाना चाहिए और फिर गैर जरूरी कार्यों को समय की उपलब्धता के अनुरूप निपटाय जाना चाहिए। जैसे कि- यदि किसी छात्र की अगले दिन किसी विषय की परीक्षा हो तो छात्र को घर पर पहले उस विषय की तैयारी करनी चाहिए। और फिर बाद में अन्य विषयों का अध्ययन करना चाहिए।

(d) ‘नहीं’ कहना सीखे (Learn to Say ‘No’) : हर कार्य की ज़िम्मेदारी नही लेनी चाहिए, अर्थात् ‘नहीं’ कहना सीखें। यदि आपके पास कम समय हो और कई जिम्मेदारियों हो तो ऐसे में गैर जरूरी जिम्मेदारियों को मना करना हीं बेहतर होता हैं। जैसे कि यदि किसी छात्र को विद्यालय में अगले दिन के लिए कोई जरूरी प्रोजेक्ट जमा करना हो तो वह उस दिन टेलीविज़न देखना या खेलना टाल सकता है।

(e) बड़े लक्ष्यों को छोटे-छोटे लक्ष्यों में विभाजित करें (Divide Big Tasks into Small Tasks) : बड़े लक्ष्यों/कार्यों को छोटे-छोटे तथा सुविधाजनक गतिविधियों की एक श्रृंखला में विभाजित कर लेना चाहिए। ऐसा करने से बड़े से बड़े लक्ष्य भी आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं जैसे कि- दिन भर के स्कूल के कार्य (बड़े काम) को विषयों के अनुसार छोटे छोटे कार्यों में बाँटा जा सकता है।

(f) ऊर्जा की बचत करें (Save Energy) : ऐसे कामों पर ऊर्जा तथा समय नष्ट न करें जिन पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत न हो।

(g) एक समय में एक काम (One at a Time) : जहाँ तक संभव हो एक समय में एक ही कार्य करें अर्थात् पहले एक कार्य को निपटाएँ फिर दूसरा कार्य शुरू करें।

(h) समय निर्धारित करें (Fix Time Limit) : गतिविधियों के निर्धारण के दौरान उन्हें ‘शुरू करने’ और ‘खत्म करने’ का समय जरूर निर्धारित करें। जैसे कि एक छात्र को हर विषय के अध्ययन के लिए पर्याप्त समय निर्धारित करना चाहिए न की किसी एक विषय पर आवश्यकता से अधिक समय लगाना चाहिए।

(i) गतिविधियों की सूची बनाए (Schedule Your Activities) : अपनी गतिविधियों और कामों की एक सूची बनाएँ। इससे हर कार्य के लिए समय प्रबंधन करने में सहायता मिलेगी। पूरे दिन के दौरान किये जाने वाले कार्यों की एक उपयुक्त समय सारणी बना ली जानी चाहिए हालांकि इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की समय सारणी में आराम तथा मनोरंजन के लिए भी समय निर्धारित हो।
गतिविधियों के प्रकार

(1) अनिवार्य गतिविधियाँ

(i) दैनिक गतिविधियाँ,
जैसे कि-
• प्रतिदिन स्नान करना
• घर की सफाई करना
• विद्यालय में दिए गए गृह कार्य को पूरा करना
• खाना पकाना
• आराम करना

(ii) साप्ताहिक गतिविधियाँ,
जैसे कि-
• कपड़े धोना
• बाजार से वस्तुओं की खरीददारी करना
• बहार घूमने जाना

(iii) मासिक गतिविधियाँ,
जैसे कि-
• बिजली, पानी, फोन इत्यादि के बिल भरना
• अलमारियों को पुनः व्यवस्थित करना
• राशन की खरीदारी करना

(iv) वार्षिक गतिविधियाँ,
जैसे कि-
• स्वास्थ्य जाँच करना।
• वार्षिक परीक्षा।
• विद्यालय का वार्षिक आयोजन

(2) ऐच्छिक/वैकल्पिक गतिविधियाँ
जैसे कि-
• ग्रीष्म अवकाश के दौरान यात्रा पर जाना
• किसी उत्सव/समारोह में भाग लेना
• सफाई अभियान में हिस्सा लेना

हर व्यक्ति के लक्ष्य तथा आवश्यकताएँ दूसरों से अलग होती हैं, इसलिए समय योजना व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं लक्ष्यों के अनुरूप ही बनाई जानी चाहिए। जैसे कि एक छात्र के लिए समय योजना उस व्यक्ति से बहुत भिन्न होगी जो किसी दफ्तर में नौकरी करता है।
कारगर समय-प्रबंधन के लिए सुझाव (Tips for Effective Time Management)

(1) किए जाने वाले कार्यों की सूची बनाएँ (Create a Simple “To Do” List) : किए जाने वाले कार्यों की सूची बना लेने से गतिविधियों के करने के कारणों और उन्हें पूरा करने के लिए अनुमानित समय-सीमा का अंदाजा लगाने में आसानी होती है। किए जाने वाले कार्यों की सूची का प्रारूप नीचे दर्शाया गया है-

(2) दैनिक/साप्ताहिक योजना सारणी (Daily / Weekly Planner) : दैनिक या साप्ताहिक योजना सारणी बनाने से प्रतिदिन या पूरे सप्ताह दौरान किये जाने वाले कार्यों की योजना बनाने में आसानी होती है। दैनिक या साप्ताहिक योजना सारणी प्रारूप नीचे दर्शाया गया है।

(3) दीर्घावधि योजना-सारणी (Long Term Planner) : लम्बे समय के लिए योजना सारणी बनाते समय आमतौर पर मासिक चार्ट का प्रय किया जाता हैं। लम्बे समय की योजना सारणी, व्यक्ति को विशेष कार्यों एवं उद्देश्यों के लिए रचनात्मक समय योजना बनाने हेतु स्मार पत्र (reminder) का कार्य भी करती हैं। दीर्घावधि योजना सारणी प्रारूप नीचे दर्शाया गया हैं।
समय प्रबंधन की स्थितियाँ (Tools in Time Management)

समय के प्रभावी प्रबंधन में निम्नलिखित स्थितियाँ सहायक सिद्ध होती हैं-

(a) चरम भार अवधि (Peak Load Period) : चरम भार अवधि का तात्पर्य किसी विशिष्ट समय अवधि के दौरान में काम के अधिकतम बोझ से है। जैसे कि प्रातः काल का समय या रात्रि के भोजन का समय।

(b) कार्य वक्र (Work Curve) : कार्य वक्र का तात्पर्य किसी विशिष्ट समय अवधि के दौरान किये गए कार्य के चित्रात्मक निरूपण से हैं। इस प्रकार के चित्रात्मक निरूपण में कार्य के लिए स्फूर्ति पैदा करने की अवधि काम करने की अधिकतम क्षमता की स्थिरता की स्थिति और थकान के कारण अधिकतम गिरावट को चित्रात्मक रूप से दर्शाया जाता है।

(c) विश्राम अथवा अंतराल की अवधि (Rest or Break Periods) : विश्राम अथवा अंतराल अवधि को काम करने के समय के दौरान ‘अनुत्पादक रुकावट’ (time off) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसे अंतराल की अवधि भी कहा जाता हैं। इससे कार्य के दौरान खर्च की गई ऊर्जा के फलस्वरूप हुई थकान को कम करने तथा पुनः चुस्ती प्राप्त करने में सहायता मिलती है। किसी भी कार्य के दौरान विश्राम या अंतराल अवधि की आवृत्ति तथा मियाद बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। यह न तो बहुत लंबी होनी चाहिए और न ही बहुत छोटी।
(4) कार्य का सरलीकरण (Work Simplification) : समय तथा शक्ति दोनों ही सीमित साधन हैं। इन दोनों साधनों का व्यवस्थापन प्रायः एक साथ ही किया जाता है। समय की बचत करने पर शक्ति की बचत अपने आप ही हो जाती है।

कार्य सरलीकरण का अर्थ है- कार्य को व्यवस्थित ढंग से करना ताकि कम से कम समय एवं शक्ति का व्यय करना पड़े। कार्य सरलीकरण का मुख्य उद्देश्य कम से कम समय एवं शक्ति में अधिक से अधिक कार्य सम्पूर्ण करना होता है। यह निम्न परिवर्तनों द्वारा किया जा सकता है-

(a) हाथ तथा शारीरिक अंगों की गतिविधियों में परिवर्तन करना (Change in hand and body motion) : हाय तथा शारीरिक अंगों की अनावश्यक क्रियाओं को कम करके समय एवं शक्ति की बचत की जा सकती है। यह निम्न प्रकार की जाती है-

(i) व्यर्थ क्रियाओं को कम करना, जैसे कि-
• बाजार से खरीदारी के लिए पहले से ही सूची तैयार करना तथा योजना बनाना।
• एक जैसे कपड़ों को एक साथ धोना । जैसे हल्के रंग की सूती शटें।
• फ्रिज में से आवश्यक वस्तुएं एक साथ निकालना अथवा रखना।
• खाना परोसते समय ट्रे या ट्रॉली में एक ही बार बर्तन, खाना आदि रखकर लाना एवं ले जाना।

(ii) कार्य को क्रमानुसार करना,
जैसे-
• एक जैसे बर्तन (ग्लास, कटोरियाँ एवं प्लेट) एक साथ धोना।
• कार्य शुरू होने से पूर्व सारा आवश्यक सामान एक जगह पर एकत्रित करना।
• दो क्रियाएं एक साथ करना जैसे- सलाद काटना तथा सब्जी बनाना।
• सभी कमरों में पहले झाडू लगाना फिर एक साथ पोंछा लगाना।
• कपड़े धोते समय धोने सभी क्रियाएं जैसे- साबुन लागाना, रगड़ना, खंगालना, सुखाना इत्यादि एक ही बार में करें।

(iii) कार्य में कुशलता लाना : पहली बार कोई काम करने पर उसमें अधिक समय तथा शक्ति व्यय होती है। उसी कार्य को बार-बार करने से कार्य में निपुणता आ जाती है तथा कम शक्ति व समय लगता है। कार्यों को कुशलतापूर्वक करने से कार्य करने की लय बन जाती है। इससे कार्य में शीघ्रता व निपुणता आ जाती है।

(iv) शारीरिक अंगों का उचित मुद्रा में होना : शारीरिक अंगों का उचित मुद्रा में होने से कार्य सरल हो जाता है, ऊर्जा कम लगती है तथा थकान भी नहीं होती, जैसे-

• जमीन पर रखी किसी भारी वस्तु को उठाने के लिए घुटने मोड़ कर पैरों के बल बैठकर उसे उठाना सरल होता है। वहीं खड़े होकर या झुक कर वस्तु उठाने से अधिक श्रम लगेगा जिससे अधिक थकान होगी।

खड़े होने की उत्तम मुद्रा (Good Standing Posture) : खड़े होने की उत्तम मुद्रा वह होती है। जिसमें सिर, गर्दन, वक्ष तथा उदर एक-दूसरे के ऊपर संतुलित हो ताकि बोझ मुख्यतः अस्थियों के ढाँचे द्वारा उठाया जाए और पेशियों तथा स्नायुओं पर न्यूनतम तनाव पड़े।

बैठने की उत्तम मुद्रा (Good Sitting Posture) : बैठने की उत्तम मुद्रा एक संतुलित सधी हुई स्थिति हैं। शारीरिक भार कंकाल की अस्थियों के समर्थन द्वारा वहन किया जाता है और पेशियाँ तथा तंत्रिकाएँ तनाव से पूरी तरह मुक्त रहती हैं। इस प्रकार संतुलन का उतना ही समायोजन किया जाता है जितना काम के लिए जरूरी हो।

• भारी सामान हिलाने के लिए थोड़ा झुक कर खिसकाने से टांगों की मांसपेशियों का प्रयोग होता है जिससे थकान कम होती है।

• बैठ कर खाना बनाने या प्रेस करने की अपेक्षा खड़े होकर कार्य करने में कम शक्ति लगती है तथा जिससे कम थकान होती है।
(b) कार्य, साधनों के संग्रहीकरण तथा उपकरणों में परिवर्तन करके (Change in Storage Place and Appliances) : कार्य स्थल की उचित व्यवस्था, उचित लम्बाई एवं चौड़ाई तथा कार्य में प्रयुक्त होने वाले सामान व उपकरणों में परिवर्तन लाकर भी कार्य करना सरल हो सकता है। यह निम्न प्रकार से हो सकता है-

(i) कार्य स्थल में परिवर्तन : शारीरिक लम्बाई व चौड़ाई के अनुसार कार्य स्थल न होने पर कार्यकुशलता होते हुए भी कार्य क्षमता में कमी आ जाती है, जैसे- कार्य स्थल ऊँचा होने से कार्य करने वाले व्यक्ति को बार-बार ऊँचा उठकर कार्य करना पड़ेगा जिससे अधिक थकान होगी। दूसरी ओर कार्य स्थल व्यक्ति के अनुसार नीचा होने पर बार-बार झुकने के कारण व्यक्ति की कार्य की गति धीमी हो जाएगी। बैठ कर कार्य करने के लिए कुर्सी की ऊँचाई उचित होनी चाहिए, न कम न ही अधिक शारीरिक अंगों के अनुसार कार्य स्थल पर सुविधाएँ होने से कार्य आरामदायक स्थिति में सम्पूर्ण हो सकता है।

(ii) कार्य करने के लिए विभिन्न साधनों का संग्रहीकरण : कार्य में प्रयुक्त होने वाले सभी साधनों को यदि कार्य करने से पहले ही संग्रहित कर लिया जाए तो कार्य करना सरल हो जाता है और शक्ति का व्यय भी कम होता है क्योंकि प्रयोग होने वाले साधनों को बार-बार लेने के लिए जाना नहीं पड़ता। इसके साथ-साथ कार्य से सम्बन्धित वस्तुओं की जहाँ आवश्यकता होती है उन्हें वहीं रखने से भी कार्य करना सरल हो जाता है जैसे-मिक्सी तथा ओवन को रसोईघर में रखना, चाकू एवं चम्मच आदि को रसोई में यथास्थान पर रखना, वस्त्र धोने के स्थान पर नील, साबुन, ब्रश, डिटर्जेंट आदि रखना।

(iii) कार्य करने वाले उपकरणों में परिवर्तन : कार्य में प्रयुक्त होने वाले बर्तन एवं उपकरण उचित स्थान पर रखने से समय एवं शक्ति की बचत होती है तथा कार्य क्षमता भी बढ़ती हैं। कार्य करने वाले व्यक्ति को भी कम थकान होती है। इन समय व शक्ति बचत के उपकरणों के प्रयोग से शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। ये उपकरण श्रम बचाने में सहायक होते हैं। जैसे कि मिक्सी द्वारा सब्जियाँ काटना, मसाला पीसना, आटा गूँथना आदि कार्य करके समय तथा श्रम की बचत की जा सकती है।
(c) उत्पादन में परिवर्तन तथा नए उत्पादनों का प्रयोग करके (By Changing Production and Using New Products) : वस्तु के उत्पादन तथा अंतिम रूप में परिवर्तन करने से भी कार्य को सरल किया जा सकता है। वस्तु के अंतिम रूप व उत्पादन में परिवर्तन के लिए व्यक्ति की सूझबूझ, पारिवारिक स्तर तथा परिवार के अन्य सदस्यों का सहयोग आवश्यक होता है।

जैसे कि-
(i) वस्त्र के नैपकिन के स्थान पर पेपर नैपकिन प्रयोग करना।
(ii) वस्त्र के टेबलमैट के स्थान पर प्लास्टिक के टेबलमैट प्रयोग करना।
(ii) सूती तंतुओं के स्थान पर मिश्रित तंतुओं का उपयोग, जिसका रखरखाव सरल होता है।
(iv) पैकेटबन्द सब्जियाँ प्रयोग करना जिन्हें छीलना एवं काटना नहीं पड़ता।
(v) कांच के स्थान पर स्टील के बर्तनों का प्रयोग ।
(vi) दही के लिए उसे जमाने की क्रिया के स्थान पर बाजार से जमा हुआ दही खरीद लेना।

सामाजीकरण व आधुनिकीकरण के कारण हमारी जीवन शैली में परिवर्तन आ रहे हैं। कार्य सरलीकरण की विभिन्न विधियाँ जीवनशैली के परिवर्तनों के अनुरूप होने से कार्य को सरल व सुनियोजित बनाती हैं। इससे कार्य में लगने वाले समय, श्रम तथा थकान को कम किया जा सकता है और विश्राम, मनोरंजन आदि के लिए अधिक समय निकाला जा सकता है।
स्थान प्रबंधन (Space Management)

अपने ज्ञान तथा कौशलों का प्रयोग करते हुए उपलब्ध स्थान का सर्वोत्तम प्रयोग करना ही स्थान प्रबंधन कहलाता है। हर व्यक्ति अपने घर में, घर से बाहर तथा कार्यस्थल इत्यादि पर विभिन्न गतिविधियों के लिए उपलब्ध स्थान का अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार उपयोग करते हैं। एक अच्छे ढंग से व्यवस्थित किया गया कमरा खुलेपन का आभास देता हैं,

जबकि यदि उसी आकार का कमरा सही प्रकार से व्यवस्थित न किया गया हो वह देखने में छोटा तथा अस्त-व्यस्त सा प्रतीत होता हैं। स्थान भी एक ऐसा संसाधन हैं जो सभी के पास बहुत सीमित मात्रा में उपलब्ध होता हैं।

ऐसे में उपलब्ध स्थान का उचित प्रबंधन करना जरूरी हो जाता हैं, ताकि विभिन्न क्रियाओं को आसानी से किया जा सके। स्थान प्रबंधन के लिए निम्न बातों का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

• स्थान का नियोजन
• योजनानुसार स्थान की उचित व्यवस्था,
• स्थान के उपयोग के अनुसार योजना का क्रियान्वयन और कार्यकारिता
• सौंदर्यबोध की दृष्टि से उसका मूल्यांकन
• अच्छे ढंग से व्यवस्थित किया गया स्थान अर्थात् सुप्रबंधित स्थान न केवल काम करते समय आरामदायक रहता हैं, बल्कि देखने में भी आकर्षक होता है।
स्थान और घर (Space and The Home)

हम सब घर में विभिन्न प्रकार गतिविधियाँ करते हैं जैसे कि बैठना, सोना, पढ़ना, पकाना, नहाना, धोना, मनोरंजन इत्यादि। घर में की जाने वाली प्रत्येक गतिविधि और उनसे संबंधित क्रियाओं के लिए घर में अक्सर विशिष्ट क्षेत्र निर्धारित किए जाते हैं।

यदि किसी घर में पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो तो कई गतिविधियों के लिए विशिष्ट क्षेत्र/कमरों का निर्माण किया जाता है। अधिकांश शहरी मध्यवर्गीय घरों में एक बैठक, एक या उससे अधिक शयनकक्ष, रसोईघर, भंडारघर, स्नानागार, शौचालय और यदि अतिरिक्त स्थान हो तो बरामदा या आँगन होते हैं।

यदि घर में अधिक स्थान उपलब्ध हो तो उपरोक्त के अतिरिक्त कई अतिरिक्त कमरे भी हो सकते हैं जैसे कि भोजन कक्ष, अध्ययन कक्ष, मनोरंजन कक्ष, श्रृंगार कक्ष, अतिथि कक्ष, बाल कक्ष, गैराज (स्कूटर या कार के लिए), सीढ़ियाँ, गलियारे, पूजा घर, बगीचा, बालकनी
आदि।
घर के स्थान प्रबंधन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Space Management of a Family)

किसी घर का स्थान प्रबंधन निम्न कारकों पर निर्भर करता हैं-

• परिवार के पास उपलब्ध कुल स्थान,
• परिवार में सदस्यों की संख्या,
• परिवार का सामाजिक तथा आर्थिक स्तर

घर में विभिन्न गतिविधियों के लिए स्थान का निर्धारण करने के लिए निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए-

• परिवार के सदस्यों की निजीता / एकांतता (privacy) का विशेष ध्यान रखना चाहिए,
• स्थान का निर्धारण ऐसे होना चाहिए ताकि स्वास्थ वातावरण उपलब्ध हो सकें,
• विभिन्न गतिविधियों के लिए निर्धारित किये गए कमरे / स्थान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं,
• उपलब्ध स्थान का इष्टतम प्रयोग,
• कमरों का आकार,
• सुसंगठित कार्यक्षेत्र (well organised working space)।
स्थान नियोजन के सिद्धांत (Principles of Space Planning)

स्थान नियोजन के सिद्धांत

(i) स्वरूप
(ii) प्रभाव
(iii) एकांतता
(iv) विभिन्न कमरों की स्थिति
(v) खुलापन
(vi) फर्नीचर की आवश्यकताएँ
(vii) स्वच्छता वायु का
(viii) व्यावहारिक बातें
(ix) रमणीयता
(x) परिसंचरण

घर में उपलब्ध स्थान के इष्टतम उपयोग के लिए परिवार एवं उसके सदस्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप एक अच्छी स्थान प्रबंधन योजना बनाना जरूरी होता है। घर में विभिन्न गतिविधियों के लिए कार्य क्षेत्र का निर्धारण एवं उसका डिज़ाइन तैयार करने के समय निम्न सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए-
(1) स्वरूप (Aspect) : किसी घर के ‘स्वरूप’ का तात्पर्य घर के भवन की बाहरी दीवारों में दरवाजों तथा खिड़कियों की व्यवस्था है। घर का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिसके की उसमें रहने वाले लोगों को पर्याप्त धूप/प्राकृतिक रोशनी, हवा तथा बाहरी दृश्य का आनंद
प्राप्त हो सकें।

(2) प्रभाव (Prospect) : घर के संदर्भ में ‘प्रभाव’ का तात्पर्य उस मानसिक छाप/प्रभाव से हैं जो घर को बाहर से देखने वाले व्यक्ति पर पड़ता है। इसमें प्राकृतिक सौंदर्य का सही इस्तेमाल, दरवाज़ों तथा खिड़कियों की सही स्थिति तथा किसी भी प्रकार के अप्रिय दृश्यों को ढँक कर मनोहर आकृति प्राप्त करने जैसी विशेषताएँ समलित होती हैं।

(3) एकांतता (Privacy) : ‘एकांतता’ स्थान नियोजन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिसका घर के लिए डिजाइन तैयार करते समय विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। घर के संदर्भ में एकांतता के निम्न दो पहलुओं पर विशेष रूप से विचार करना होता है-

(a) भीतरी एकांतता (Internal Privacy) : भीतरी एकांतता का तात्पर्य, घर के एक कमरे से दूसरे कमरे की एकांतता से हैं। घरो में भीतरी एकांतता विभिन्न कमरों की स्थिति, दरवाजों की स्थिति, छोटे गलियारे या लॉबी की विवेकपूर्ण तथा सुविचारित निज द्वारा बनाई जाती है। स्क्रीन तथा परदे के प्रयोग द्वारा भी भीतरी एकांतता बनाई जा सकती है। कई समुदायों तथा बड़े परिवार वाले घरों में स्त्रियों की एकांतता को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उनके लिए बैठने का अलग क्षेत्र भी निर्धारित किया जाता है।

(b) बाहरी एकांतता (External Privacy) : बाहरी एकांतता का अर्थ हैं- आस-पड़ोस के घरों, सड़कों से तथा उप-मार्गों से घर के सभी भागों की एकांतता। बाहरी एकांतता सुनिश्चित करने के लिए सुविचारित नियोजन द्वारा मुख्य प्रवेश द्वार बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी प्रकार के शेड, पेड़ या लताओं के प्रयोग द्वारा भी बाहरी एकांतता सुनिश्चित की जा सकती हैं।

(4) विभिन्न कमरों की स्थिति (Grouping) : घर में कमरों की स्थिति ऐसी होनी चाहिए ताकि एक कमरे का दूसरे के साथ भीतरी संबंध बना रहे, जैसे कि- किसी घर भवन में भोजन क्षेत्र, रसोईघर से सटकर होना चाहिए जबकि शौचालय रसोईघर से दूर होना चाहिए।

(5) खुलापन (Roominess) : घर/भवन के संदर्भ में खुलेपन का तात्पर्य, विभिन्न कमरों द्वारा दिये जाने वाले खुलेपन के आभास से है। कमरों में उपलब्ध हर स्थान का इष्टतम उपयोग करना चाहिए, जैसे कि- दीवारों में अलमारियाँ, शेल्फ तथा भंडारण क्षेत्र बनाए जा सकते हैं, ताकि कमरे का फर्श विभिन्न गतिविधियों के लिए खाली रहे।
इसके अतिरिक्त, कमरे के आकार तथा आकृति, उसमें रखे फर्नीचर की व्यवस्था और प्रयुक्त रंगों का भी कमरे के खुलेपन पर प्रभाव है। आमतौर पर, सही अनुपात वाला आयताकार कमरा उसी आयाम के वर्गाकार कमरे की अपेक्षा अधिक खुला दिखाई देता है। इसके पड़ता अतिरिक्त गहरे रंगों की अपेक्षा हल्के रंगों के प्रयोग से भी कमरा बड़ा और खुला होने का आभास देता है। बड़े शीशों के प्रयोग द्वारा भी स्थान खुला दिखता है।

(6) फ़र्नीचर की आवश्यकताएँ (Furniture Requirements) : विभिन्न गतिविधियों हेतु कमरों की योजना बनाते समय वहाँ रखे जाने वाले फर्नीचर के विषय में भी विशेष रूप से विचार किया जाना चाहिए। घर भवन के हर कमरे में रखे जाने वाले फर्नीचर की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए ताकि वह कमरे के उद्देश्य को अच्छी तरह पूरा करें। कमरों में केवल अपेक्षित फर्नीचर ही रखा जाना चाहिए और यह भी इस प्रकार से रखना जाना चाहिए ताकि कमरें में चलने-फिरने के लिए खुली जगह उपलब्ध रहे। यदि स्थान सीमित है तो फोल्डिंग फनीचर उत्तम रहता है।

(7) स्वच्छता (Sanitation) : घर अथवा भवन के संदर्भ में स्वच्छता का तात्पर्य पूरे मकान/भवन में भरपूर प्राकृतिक रोशनी, हवादारी, और सफाई तथा स्वच्छता की सुविधाएँ से हैं। जैसे कि-

(i) रोशनी (Light) : भवनों में समुचित प्रकाश व्यवस्था का दोहरा महत्त्व है। प्रकाश देने के साथ-साथ यह वातावरण को भी स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है। भवनों में रोशनी प्राकृतिक या कृत्रिम स्रोतों द्वारा उपलब्ध करायी जा सकती है। खिड़कियों, बल्ब, ट्यूबलाइट इत्यादि रोशनी के कुछ महत्वपूर्ण साधन हैं।

(ii) वायु-संचार (Ventilation) : भवन के प्रत्येक हिस्से में पर्याप्त वायु संचार सारे क्षेत्र को आरामदायक तथा खुशनुमा बना देता है। अच्छे वायु संचार के लिए भवन की खिड़कियों, दरवाजों तथा रोशनदानों को इस प्रकार बनवाया जाता है ताकि अधिक से अधिक हवा का स्वच्छंद आवागमन हो सके। खिड़कियाँ यदि एक-दूसरे के सामने हों तो हवा का आवागमन और भी अच्छा होता है। भवन में स्वच्छ वायु की कमी से सिर दर्द, अनिद्रा, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता आदि की समस्या हो सकती है। हवा का आवागम प्राकृतिक तथा यांत्रिक उपकरणों (एक्जोस्ट पंखे का प्रयोग करके) द्वारा उपलब्ध कराया जा सकता हैं।

(iii) सफाई और स्वच्छता सुविधाएँ (Cleanliness and Sanitary Conveniences) : आमतौर पर घर/भवन की सामान्य साफ-सफाई होता है, फिर भी मकान का डिजाइन तैयार करते समय सफाई की सुविधा और शौचालयों का प्रावधान भी स्वच्छता सुविधाओं में ही शामिल होता है। बहुत-से ग्रामीण घरों में आज भी शौचालय तथा स्नानागार अलग यूनिट के रूप में घर के पिछवाड़े या आगे तथा अन्य कमरों से दूर बनाए जाते हैं, ताकि सफाई व्यवस्था बनी रहे।

(8) वायु का परिसंचरण (Air Circulation) : भवन का डिजाइन ऐसा होना चाहिए ताकि हर कमरे में वायु का पर्याप्त परिसंचरण हो सके। हवा के अच्छे परिसंचरण के लिए घर के प्रत्येक कमरे का स्वतंत्र प्रवेश द्वार होना बेहतर रहता है। इससे सदस्यों की एकांतता भी बनी रहती है।

(9) व्यावहारिक बातें (Practical Considerations ) : स्थानों की योजना बनाते समय कुछ व्यावहारिक बातों का भी ध्यान रखा जाना जरूरी होता है, जैसे कि- संरचना की मजबूती तथा स्थिरता, परिवार के लिए सुविधा और आराम, सरलता, सौंदर्य और8
भविष्य में विस्तार का प्रावधान। कुछ पैसा बचाने के लिए भवन की मजबूती से समझौता नहीं करना चाहिए।

(10) रमणीयता (Elegance) : रमणीयता का तात्पर्य, भवन योजना के उस प्रभाव से हैं जिसमें मितव्ययिता से समझौता किए बिना, स्थान की योजना सुरुचिपूर्ण ढंग से की गई हों।

उपरोक्त सिद्धांतों पर विचार कर प्रयोग किया जाए तो वे स्थान के नियोजन और प्रबंधन और अधिक बेहतर बना सकते हैं।

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