1997 के बाद संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों द्वारा सुरक्षा परिषद का स्थाई अथवा और अस्थाई सदस्य बनने के लिए प्रस्तावित मापदंडों को स्पष्ट कीजिए

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के स्थायी और अस्थायी सदस्य बनने के लिए 1997 के बाद विभिन्न मापदंडों और सुधार प्रस्तावों पर चर्चा हुई है। ये मापदंड सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व को अधिक न्यायसंगत और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से प्रस्तावित किए गए थे। इनमें से प्रमुख मापदंड इस प्रकार हैं:

1. भौगोलिक प्रतिनिधित्व

  • सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए सदस्य देशों का भौगोलिक प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है।
  • विभिन्न क्षेत्रीय समूहों (जैसे अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, पश्चिमी यूरोप) को ध्यान में रखकर सुधार प्रस्ताव दिए गए।
  • स्थायी और अस्थायी सीटों में वृद्धि के माध्यम से अधिक क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की मांग की गई।

2. आर्थिक और सैन्य योगदान

  • सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्य बनने के लिए देश की वैश्विक अर्थव्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र के कार्यों (जैसे शांति रक्षा अभियानों) में योगदान महत्वपूर्ण मापदंड है।
  • जो देश वैश्विक शांति और सुरक्षा में अधिक भूमिका निभाते हैं, उन्हें सुरक्षा परिषद में शामिल करने की वकालत की गई।

3. लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रणाली

  • नए सदस्यों के चयन में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्राथमिकता देने की बात कही गई।
  • सुरक्षा परिषद को अधिक उत्तरदायी और समावेशी बनाने के लिए सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया गया।

4. स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि

  • स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया, ताकि विकसित और विकासशील देशों के बीच संतुलन बने।
  • भारत, जर्मनी, जापान, और ब्राजील (G4 देश) ने स्थायी सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी पेश की है।

5. अस्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि

  • अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने का सुझाव दिया गया ताकि छोटे और मध्यम आकार के देशों को भी प्रतिनिधित्व का अवसर मिल सके।
  • वर्तमान में 10 अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 15-20 करने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई।

6. वेटो अधिकार का सुधार

  • वेटो अधिकार (सिर्फ स्थायी सदस्यों के पास) को समाप्त करने या सीमित करने का प्रस्ताव रखा गया।
  • यह माना गया कि वेटो का अनुचित उपयोग वैश्विक समस्याओं के समाधान में बाधा डालता है।

7. वैश्विक वास्तविकताओं का प्रतिबिंब

  • 1997 के बाद दुनिया में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव हुए हैं। इन्हें सुरक्षा परिषद की संरचना में शामिल करने की मांग की गई।
  • विकासशील देशों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

सुधार प्रक्रिया में चुनौतियाँ

  • स्थायी सदस्यों (P5) की सहमति आवश्यक है, जो कई बार सुधार प्रस्तावों का विरोध करते हैं।
  • सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण भी सहमति बनाना कठिन है।

इन मापदंडों के आधार पर सुरक्षा परिषद के सुधारों पर लगातार चर्चा हो रही है, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है।