भारत ने 1995 में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty – NPT) को अनिश्चित काल तक बढ़ाने का विरोध किया क्योंकि भारत इस संधि को पक्षपातपूर्ण और असमान मानता था। भारत का मानना था कि यह संधि परमाणु हथियार संपन्न और गैर-परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच भेदभाव करती है और परमाणु हथियार संपन्न देशों के पक्ष में असमानता को संस्थागत रूप देती है। इसके विरोध के कारणों का विश्लेषण निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है:
1. संधि का पक्षपातपूर्ण ढांचा
- एनपीटी (1968) परमाणु हथियार संपन्न देशों (P5: अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन) को विशेष अधिकार देता है, जबकि गैर-परमाणु हथियार संपन्न देशों पर परमाणु हथियार विकसित करने पर रोक लगाता है।
- भारत का तर्क था कि यह संधि केवल कुछ देशों को परमाणु हथियार रखने की अनुमति देती है और अन्य देशों को उनके वैध सुरक्षा हितों की उपेक्षा करते हुए यह अधिकार वंचित करती है।
2. पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का अभाव
- भारत ने यह तर्क दिया कि एनपीटी परमाणु निरस्त्रीकरण के उद्देश्य को प्रभावी ढंग से लागू करने में असफल रही है।
- यह संधि परमाणु हथियार संपन्न देशों को अपने हथियार नष्ट करने के लिए बाध्य नहीं करती, बल्कि उनके हथियारों को बनाए रखने को वैध बनाती है।
- भारत ने कहा कि जब तक सभी देशों के लिए पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण सुनिश्चित नहीं किया जाता, यह संधि केवल असमानता को बढ़ावा देगी।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा
- भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के लिए अनिवार्य बताया।
- भारत का यह भी तर्क था कि पड़ोसी देशों (जैसे चीन और पाकिस्तान) की परमाणु क्षमता को देखते हुए भारत को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए परमाणु विकल्प बनाए रखना होगा।
- चीन, जो परमाणु हथियार संपन्न देशों में शामिल है, भारत के लिए एक प्रमुख सुरक्षा चुनौती है।
4. पाकिस्तान और क्षेत्रीय सुरक्षा
- पाकिस्तान, जो भारत के साथ लंबे समय से विरोध में रहा है, ने अमेरिका और अन्य देशों की मदद से परमाणु कार्यक्रम विकसित किया।
- एनपीटी के तहत पाकिस्तान जैसे देशों को भी अप्रत्यक्ष रूप से मदद मिल रही थी, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताएं और बढ़ गईं।
- भारत का मानना था कि एनपीटी की वर्तमान व्यवस्था उसके क्षेत्रीय शत्रुओं को फायदा पहुंचा सकती है।
5. संधि की अनिश्चित काल के लिए बढ़ाने का विरोध
- भारत ने इस बात का विरोध किया कि एनपीटी को अनिश्चित काल के लिए बढ़ाने का निर्णय परमाणु हथियार संपन्न देशों की शक्ति को स्थायी रूप से वैध बना देगा।
- भारत का विचार था कि यह संधि तब तक स्वीकार्य नहीं हो सकती, जब तक सभी देशों के लिए समान अधिकार और दायित्व सुनिश्चित नहीं किए जाते।
6. परमाणु अप्रसार और तकनीकी सहयोग में भेदभाव
- एनपीटी के तहत गैर-परमाणु हथियार संपन्न देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए तकनीकी सहयोग का आश्वासन दिया गया था।
- लेकिन भारत का मानना था कि यह सहयोग अक्सर भेदभावपूर्ण और राजनीतिक शर्तों के साथ आता है।
- इससे विकासशील देशों के शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम प्रभावित होते हैं।
7. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का अभाव
- भारत ने यह भी तर्क दिया कि एनपीटी सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देने में असफल रही है।
- परमाणु हथियार संपन्न देशों के पास अपने हथियार बनाए रखने का अधिकार है, लेकिन गैर-परमाणु देशों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।
भारत का दृष्टिकोण
- भारत ने हमेशा “सम्पूर्ण और सार्वभौमिक निरस्त्रीकरण” का समर्थन किया है।
- भारत का मानना है कि जब तक सभी देशों के लिए समान और न्यायसंगत व्यवस्था नहीं बनाई जाती, तब तक इस प्रकार की संधियों को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- एनपीटी जैसे समझौतों को केवल परमाणु हथियार संपन्न देशों के पक्ष में शक्ति को केंद्रीकृत करने का माध्यम माना गया।
निष्कर्ष
भारत ने 1995 में एनपीटी की अनिश्चित काल तक बढ़ाने का विरोध इस आधार पर किया कि यह संधि असमान, अन्यायपूर्ण और परमाणु हथियार संपन्न देशों के पक्ष में पक्षपाती है। भारत ने हमेशा यह मांग की कि वैश्विक स्तर पर समानता, न्याय, और पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण को प्राथमिकता दी जाए। इस विरोध के साथ भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और सुरक्षा हितों को सुरक्षित रखा।