1989 के बाद भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले, जो देश की राजनीतिक व्यवस्था, समाज, और नीतियों को प्रभावित करते हैं। इनमें चार मुख्य बदलावों का विस्तृत विश्लेषण नीचे प्रस्तुत किया गया है:
1. गठबंधन राजनीति का उदय
1989 के बाद भारत में एकदलीय बहुमत का दौर समाप्त हुआ और गठबंधन सरकारों का युग शुरू हुआ।
पृष्ठभूमि:
- 1984 के आम चुनावों में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला था। लेकिन 1989 के चुनावों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला, और वी.पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा (National Front) की गठबंधन सरकार बनी।
- इसके बाद 1990 और 2000 के दशक में गठबंधन राजनीति भारत की मुख्य धारा बन गई।
प्रमुख घटनाएं:
- 1996 से 1999 के बीच कई अल्पकालिक गठबंधन सरकारें बनीं, जैसे संयुक्त मोर्चा सरकार।
- 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का उदय हुआ।
- 2004 से 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) ने सत्ता संभाली।
प्रभाव:
- क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ, और राष्ट्रीय राजनीति में उनका प्रभाव बढ़ा।
- सरकार बनाने के लिए समझौतों और सहयोग की आवश्यकता बढ़ गई।
- राजनीतिक स्थिरता की कमी ने नीति-निर्माण को प्रभावित किया।
2. आर्थिक उदारीकरण और भूमंडलीकरण
1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की शुरुआत हुई, जिसने भारतीय राजनीति को भी गहराई से प्रभावित किया।
पृष्ठभूमि:
- 1991 में देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था।
- तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में नई आर्थिक नीतियां लागू कीं।
मुख्य विशेषताएं:
- लाइसेंस-परमिट राज की समाप्ति।
- विदेशी निवेश और व्यापार के लिए भारतीय बाजार खोलना।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण।
राजनीतिक प्रभाव:
- राजनीतिक दलों को आर्थिक नीतियों में सुधारों के समर्थन और विरोध के बीच संतुलन बनाना पड़ा।
- वामपंथी दलों और समाजवादी विचारधारा वाले दलों ने इन सुधारों का विरोध किया।
- उदारीकरण के कारण शहरीकरण और औद्योगीकरण तेज हुआ, जिससे राजनीति में मध्यम वर्ग और कॉर्पोरेट जगत का प्रभाव बढ़ा।
3. सामाजिक न्याय और पहचान की राजनीति
1989 के बाद भारतीय राजनीति में जाति और सामाजिक न्याय के मुद्दे प्रमुख बन गए।
पृष्ठभूमि:
- वी.पी. सिंह सरकार द्वारा 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- इसने समाज में गहरे राजनीतिक और सामाजिक बदलाव लाए।
प्रमुख घटनाएं:
- मंडल आयोग के कारण जाति-आधारित राजनीति को नई गति मिली।
- बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दलित और पिछड़े वर्ग की राजनीति का उभार हुआ।
- बहुजन समाज पार्टी (BSP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसे दलों ने सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे बढ़ाया।
प्रभाव:
- राष्ट्रीय राजनीति में सामाजिक न्याय और समता के मुद्दे केंद्र में आ गए।
- जाति और धर्म आधारित ध्रुवीकरण बढ़ा।
- निचले वर्गों को राजनीतिक सशक्तिकरण मिला, लेकिन जातिगत विभाजन भी गहरा हुआ।
4. हिंदुत्व और सांप्रदायिक राजनीति का उभार
1989 के बाद भारत में हिंदुत्व और धार्मिक राजनीति का प्रभाव बढ़ा, जिसने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी।
पृष्ठभूमि:
- 1980 के दशक के अंत में राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू हुआ, जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने समर्थन दिया।
- 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
प्रमुख घटनाएं:
- 1998 में भाजपा के नेतृत्व में NDA सरकार का गठन हुआ।
- 2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई।
- हिंदुत्व की राजनीति ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया।
प्रभाव:
- भाजपा ने खुद को एक मजबूत राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया।
- धर्म और राजनीति का मेल बढ़ा, जिससे सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि हुई।
- इसने सेक्युलर राजनीति को चुनौती दी और भारत के राजनीतिक विमर्श में परिवर्तन लाया।
निष्कर्ष
1989 के बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीति, आर्थिक सुधार, सामाजिक न्याय की राजनीति, और हिंदुत्व के उभार जैसे बदलाव देखने को मिले। इन परिवर्तनों ने न केवल भारतीय राजनीति की दिशा बदली बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला। यह दौर भारत में लोकतंत्र के नए आयामों की शुरुआत का प्रतीक है।