1985 में राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौता (जिसे पंजाब समझौता भी कहा जाता है) भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के प्रमुख संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच हुआ। यह समझौता पंजाब में लंबे समय से चल रहे आतंकवाद, अलगाववादी आंदोलन और सिखों की मांगों को लेकर जारी अशांति को समाप्त करने के उद्देश्य से किया गया था। समझौता मुख्य रूप से सिख समुदाय की शिकायतों का समाधान करने और पंजाब में शांति बहाल करने पर केंद्रित था।
मुख्य प्रावधान
राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौते के निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान थे:
- चंडीगढ़ का पंजाब में विलय
- चंडीगढ़, जो केंद्र शासित प्रदेश और पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी थी, को पंजाब को हस्तांतरित करने का वादा किया गया।
- इसके बदले, हरियाणा को एक नई राजधानी बनाने के लिए वित्तीय सहायता और संसाधन दिए जाने की बात कही गई।
- पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारा
- सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर के माध्यम से पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे को लागू करने का वादा किया गया।
- इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करने की बात कही गई।
- धार्मिक और सामाजिक सुरक्षा
- सिखों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा का वादा किया गया।
- “ऑपरेशन ब्लू स्टार” के दौरान स्वर्ण मंदिर को हुए नुकसान की मरम्मत और पवित्रता की बहाली का आश्वासन दिया गया।
- अलगाववादी मांगों पर कार्रवाई
- खालिस्तान समर्थकों और अन्य अलगाववादी तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात की गई।
- गिरफ्तार सिख युवकों को, जो निर्दोष पाए गए, रिहा करने की प्रक्रिया शुरू की गई।
- पंजाब के विकास पर ध्यान
- पंजाब के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए विशेष पैकेज का वादा किया गया।
- कानून और व्यवस्था बहाल करना
- पंजाब में शांति बहाल करने के लिए सभी पक्षों से हिंसा और उग्रवाद को समाप्त करने की अपील की गई।
- केंद्र सरकार ने आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का वादा किया।
पंजाब में शांति बहाली के लिए समझौते की सफलता
राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौते को तत्कालिक समय में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया, लेकिन यह लंबे समय तक शांति स्थापित करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। इसकी सफलता और असफलता का मूल्यांकन निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है:
सफलता के पहलू:
- राजनीतिक संवाद की शुरुआत:
- इस समझौते ने केंद्र सरकार और सिख नेतृत्व के बीच एक संवाद स्थापित किया।
- सिख समुदाय की शिकायतों को सुनने और उनके समाधान की दिशा में एक प्रयास हुआ।
- हिंसा में अस्थायी कमी:
- समझौते के बाद, कुछ समय के लिए आतंकवादी गतिविधियों और हिंसा में कमी आई।
- सिखों में यह विश्वास पैदा हुआ कि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मान्यता दी जाएगी।
- धार्मिक संरचनाओं की बहाली:
- स्वर्ण मंदिर को नुकसान की मरम्मत और पुनर्स्थापना से सिख समुदाय में संतोष की भावना बढ़ी।
असफलता के पहलू:
- लोंगोवाल की हत्या:
- समझौते के कुछ ही महीनों बाद, अगस्त 1985 में संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की हत्या कर दी गई। इससे समझौते का क्रियान्वयन प्रभावित हुआ।
- चंडीगढ़ और जल विवाद:
- चंडीगढ़ का पंजाब को हस्तांतरण और सतलुज-यमुना लिंक नहर पर जल विवाद का समाधान नहीं हो पाया। यह मुद्दा आज भी विवादित है।
- आतंकवाद की वापसी:
- समझौते के बावजूद, पंजाब में आतंकवाद और उग्रवाद पूरी तरह समाप्त नहीं हो सका।
- 1980 और 1990 के दशक में खालिस्तान समर्थक आंदोलन और अधिक उग्र हो गया।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी:
- केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल की कमी के कारण कई वादे अधूरे रह गए।
- राजनीतिक दलों ने अपने लाभ के लिए मुद्दों का इस्तेमाल किया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई।
- सिख समुदाय में विभाजन:
- समझौते को लेकर सिख समुदाय के भीतर ही असहमति थी। कुछ कट्टरपंथी समूहों ने इसे सिखों के हितों के खिलाफ बताया।
निष्कर्ष
राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौता एक साहसिक प्रयास था, जो पंजाब में शांति बहाल करने और सिख समुदाय की मांगों को पूरा करने के उद्देश्य से किया गया। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में चुनौतियां, राजनीतिक अस्थिरता, और आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण यह समझौता अपनी पूरी क्षमता से सफल नहीं हो पाया। फिर भी, इसे एक ऐसा कदम माना जाता है जिसने पंजाब में शांति स्थापना की दिशा में एक संवाद की शुरुआत की।