1940 का उपद्रवी दशक भारत के विभाजन का कारण बना। स्पष्ट कीजिये।

1940 का उपद्रवी दशक भारत के विभाजन का कारण बना। स्पष्ट कीजिये।

अथवा

द्वि-राष्ट्र सिद्धांत भारत के विभाजन का कारण बना स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – परिचय

द्वि-राष्ट्र सिद्धांत ने कहा कि भारत में हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग समुदाय है जो एक राज्य के भीतर दूसरे पर हावी और भेदभाव किए बिना या निरंतर संघर्ष के बिना मौजूद नहीं हो सकते। यह 1947 में भारत के विभाजन का मुख्य कारण था। द्वि-राष्ट्र सिद्धांत भारत के विभाजन का कारण /1940 का उपद्रवी दशक भारत के विभाजन का कारण

मुस्लिम लीग स्थापना एवं मुस्लिम साम्प्रदायिकता

मुस्लिम नेताओं ने शिमला प्रतिनिधि मंडल के दौरान एक केंद्रीय मुस्लिम लीग की स्थापना करने का निर्णय लिया 30 दिसंबर, वर्ष 1906 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का गठन किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य मुसलमानों के हित की रक्षा करना दृष्टिकोण साम्प्रदायिकता और हठ धार्मिक करना था। मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की प्राप्ति के लिए सीधी कार्यवाही शुरू करके साम्प्रदायिक दंगों का सहारा लिया गया। इन दंगों को रोकते और बेगुनाहों की हत्याओं को रोकने के लिए विभाजन के अलावा कोई और विकल्प नहीं रहा था।

पाकिस्तान की मांग

वर्ष 1930 में सर मुहम्मद इकबाल जो मुस्लिम लीग के सभापति थे, ने भाषणों में यह कहा की मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए एक पृथक राज्य की स्थापना करना अनिवार्य है। इकबाल ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों को अपने हितों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और साथ मिलकर पाकिस्तान बनाए जाने की मांग की पाकिस्तान शब्द का प्रयोग सबसे पहले लंदन में स्थित केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी जिनका नाम चौधरी रहम अली एवं उनके तीन साथियों ने जनवरी 1933 ई. में प्रकाशित किए गए छोटे पैम्पलेट “अब या फिर कभी नहीं में किया था।

माउंटबेटेन का प्रभाव

माउंटबेटेन ने यह अनुभव किया कि सांप्रदायिक दंगों के कारण स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है। इस स्थिति को देख माउंटबेटेन ने यह विचार किया की भारत को विभाजित करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। इस दौरान अंग्रेजों ने भारत छोड़ने की तिथि जून 1948 की को नहीं बल्कि 15 अगस्त, 1947 घोषित कर दी। जिससे कांग्रेस के सामने केवल दो ही विकल्प रह गए पहला गृहयुद्ध और दूसरा पाकिस्तान, अंतः भारत का विभाजन किया गया ।

कांग्रेस की त्रुटिपूर्ण एवं दुर्बल नीति

कांग्रेस की त्रुटिपूर्ण एवं दुर्बल नीतियां भी भारत विभाजन का एक प्रमुख कारण थी। कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग की उन मांगों को भी स्वीकार कर लिया गया जो अनुचित थी कांग्रेस ने अनेक अवसरों पर अपने सिद्धांतों को भी त्याग दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस ने वर्ष 1916 के लखनऊ समझौता में मुसलमानों के पृथक प्रतिनिधित्व और उनको जनसंख्या से अधिक अनुपात में व्यवस्थापिका-सभाओं में सदस्य भेजने के अधिकारों को स्वीकार करते हुए मुसलमानों को अत्यधिक बढ़ावा दिया।

मुसलमानों के लिए पृथक राज्य के विचार का प्रवर्तक प्रख्यात कवि एवं राजनैतिक चिंतक मोहम्मद इकबाल को माना जाता है, क्योंकि 1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में मोहम्मद इकबाल ने ही सबसे पहले ‘सर्व इस्लाम की भावना से प्रेरित होकर पृथक मुस्लिम राष्ट्र की स्थापना की बात उठाई थी। उन्होंने लीग के अधिवेशन में कहा था कि यदि यह सिद्धांत स्वीकार कर लिया जाता है कि भारत के सांप्रदायिक प्रश्न का स्थायी हल भारतीय मुसलमान को अपने देश में अपनी संस्कृति और परंपराओं के पूर्ण और स्वतंत्र विकास का अधिकार है, तो मेरी इच्छा है कि पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, सिंध और बलुचिस्तान को मिलकर एक राज्य बना दिया जाये। इसी वर्ष जिन्ना ने भी कांग्रेस पर मुस्लिम हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था।

मुसलमानों के पृथक राष्ट्र का नाम ‘पाकिस्तान’ हो, यह विचार स्पष्ट रूप से पहली बार कैंब्रिज के अनुस्नातक विद्यार्थी व पंजाब प्रांत के नागरिक चौधरी रहमत अली के मस्तिष्क की उपज थी। रहमत अली की मौलिक सोच यह थी कि ब्रिटिश भारत के वह प्रांत, जहाँ मुसलमानों की बहुलता है, उसे भारत से अलग कर एक संप्रभु राज्य का निर्माण किया जाए, जहाँ मुसलमानों की अलग संस्कृति व पहचान हो उसने 1933 में केंब्रिज विश्वविद्यालय में एक पंफलेट जारीकर ब्रिटिश भारत के पंजाब, अफगानिस्तान (उत्तर-पक्षिमी प्रांत), कश्मीर सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर मुसलमानों के अलग राष्ट्र का नाम ‘पाकिस्तान’ दिया था।

रहमत अली का स्पष्ट विचार था कि हिंदू और मुसलमान मूलभूत रूप से पृथक राष्ट्र अथवा जातियाँ है। उसने लिखा था “हमारा धर्म, संस्कृति, इतिहास, परम्पराएं, साहित्य, आर्थिक प्रणाली, दाय के कानून, उत्तराधिकार और विवाह हिंदुओं से मुख्यतः भिन्न हैं। ये भिन्नताएं मुख्य मूल सिद्धांतों में ही नहीं, अपितु छोटे-छोटे ब्योरे में भी भिन्न हैं। हिंदू और मुसलमान आपस में बैठकर खाते नहीं और विवाह नहीं करते। हमारी राष्ट्रीय रीतियां, पंचांग यहाँ तक कि खाना और पहनावा सभी भिन्न है।” मुस्लिम लीग ने 1940 के लाहौर अधिवेशन में रहमत अली की इसी सोच को स्वीकार कर अलग राष्ट्र की माँग की लीग ने दो राष्ट्रवाद के सिद्धांत को इस रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश की कि यह मॉंग दोनों समुदाय को न्याय दिलायेगा और दोनों समुदाय स्वतंत्रापूर्वक व सदभावनापूर्वक आगे बढ़ सकेंगे। उनका मानना था कि एकता के लिए विभाजन अपरिहार्य है, और इसके माध्यम से अल्पसंख्यकों, शोषितों व पिछड़ों को उनके अधिकार प्राप्त हो सकते हैं।

1940 से लेकर 1947 तक की मुस्लिम लीग की राजनीति मुसलमानों के लिए एक स्वायत्त प्रदेश या स्वतंत्र देश की राजनीति पर आधारित थी। उसका आधारबिंदु मुस्लिम बहुल क्षेत्र विशेषकर उत्तर-पश्चिम और उत्तर पूर्वी भारत, जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक थे, वहाँ मुस्लिम संस्कृति व मुस्लिम विचारधारा की प्रभुत्ता रहे। जिन्ना ने 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की और भारतीय उपमहाद्वीप में एक पृथक् राष्ट्र की स्थापना का एक प्रस्ताव पारित किया। अधिवेशन में जिन्ना ने घोषित किया कि, “हिंदुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं। एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में ऐसे दो राष्ट्रों को एक साथ बाँधकर रखने से असंतोष बढ़ेगा और अंततः ऐसे राज्य की बनावट का विनाश होकर रहेगा।” अधिवेशन में जिन्ना ने स्पष्ट कह दिया कि वे अलग मुस्लिम राष्ट्र के अतिरिक्त कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।

जिन्ना के निर्देश पर खलीकुज्जमां द्वारा तैयार किये गये इस प्रस्ताव में तो ‘पाकिस्तान’ शब्द का प्रयोग किया गया था और न ही उन प्रदेशों का विवरण था, जो पाकिस्तान में सम्मलित होने थे। वास्तव में लाहौर प्रस्ताव के समय तक मुस्लिम लीग के नेता नहीं जानते थे कि पाकिस्तान का निर्माण, भारत की सीमा से अलग एक क्षेत्र के रूप में होगा। लीग के नेताओं का ऐसा कोई विचार भी नहीं था कि जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र है वहाँ से गैर मुस्लिमों की आबादी को अन्य क्षेत्रों में विस्थापित कर दिया जाए और जहाँ हिंदू बहुसंख्यक हैं, वहाँ से मुसलमानों को उनकी सोच थी कि जो आबादी जहाँ है, वही रहेगी और उनके सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक आधार वैसी ही रहेंगे। अंतर केवल इतना होगा कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान कहलायेंगे और हिंदू बहुल क्षेत्र भारत ।

विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने जिन्ना को हरसंभव सहयोग देकर उपकृत किया और आश्वासन दिया कि भारत को तब तक आजादी नहीं दी जायेगी, जब तक हिंदू और मुसलमान एकताबद्ध नहीं हो जाते। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता जेलों में बंद थे, तो जिन्ना और लीग को भारतीय उपमहाद्वीप में बिखरे मुसलमानों के बीच अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने और सांप्रदायिक भावनाओं को उकसाने की खुली छूट मिल गई। पंजाब और सिंध में लीग अपनी पहचान बनाने में सफल रही, जहाँ उसकी इसके पहले कोई खास पहचान नहीं थी। इस बीच 23 मार्च 1943 को जिन्ना ने ‘पाकिस्तान दिवस’ मनाने का आह्वान किया। उन्होंने मुस्लिम बहुल राज्यों के मुसलमानों को समझाया कि हिंदू और मुसलमान दो पृथक समुदाय हैं और हिंदू बहुसंख्यक भारत में उनके हित कभी
सुरक्षित नहीं हो सकते। हिंदू बहुसंख्यक भारत में वे अपने अधिकारों से वंचित हो जायेंगे, इसलिए मुस्लिम समाज की उन्नति एवं सुदृढ़ता के लिए उनका अलग राष्ट्र में रहना अनिवार्य है। 26 अप्रैल 1943 को लीग ने इसका समर्थन भी कर दिया। इस प्रकार जिन्ना की पाकिस्तान बनाने की माँग और सशक्त हो गई।

निष्कर्ष

महात्मा गांधी द्वारा भारत विभाजन का विरोध किया गया। इसलिए माउंटबेटेन ने पंडित नेहरू और सरदार पटेल को पाकिस्तान की स्थापना के लिए स्वीकृति प्रदान करवाई और नेहरू व पटेल ने बेगुनाहों की हत्या व उन पर अत्याचारों से अच्छा पाकिस्तान की स्थापना करना ही सही समझा। अंततः माउंटबेटेन द्वारा दोनों की सहमति प्राप्त करते हुए 3 जून, 1947 को भारत विभाजन की योजना को प्रकाशित कर दिया गया जिसे माउंटबेटेन योजना के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार न केवल भारतीय उपमहाद्वीप की संयुक्त राष्ट्रीयता के सिद्धांत को अप्रतिष्ठित किया गया बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के हिन्दूओं और मुस्लमानों को दो विभिन्न राष्ट्र करार दिया गया।

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