हड़प्पा में अक्सर पुरानी इमारत है जो अपनी कहानियां बताती है लगभग डेढ़ साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रहे थे तो इस काम में जुटे इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल निशान मिले जो आधुनिक पाकिस्तान में है खंडहरों से हजारों ईंटे काटकर ले गए जिससे उन्होंने रेलवे लाइनें बिछाने शुरू कर दिया
हड़प्पा सभ्यता का अंत कैसे हुआ?
इस कारण कई इमारत पूरी तरह नष्ट हो गई इसके बाद 1920 में शुरुआती पुरातत्वविदों ने इस स्थल को ढूंढा और तब पता चला कि यह खंडहर उपमहाद्वीप के सबसे पुराने शहरों में से एक था क्योंकि इस इलाके का नाम हड़प्पा था इसीलिए बाद में यहां से मिलने वाली सभी पुरातात्विक वस्तुओं और इमारतों का नाम हड़प्पा सभ्यता के नाम पर पड़ा है ने इन नगरों का निर्माण लगभग 4600 साल पहले हुआ था इन नगरों में से कई को दो या उससे ज्यादा हिस्सों में विभाजित किया गया था
प्रत्येक पश्चिमी भाग छूटा था लेकिन ऊंचाई पर बना हुआ था और पूर्व हिस्सा बड़ा था लेकिन यह निचले हिस्से में था ऊंचाई वाले भाग को पुरातत्वविदों ने दुर्ग कहाँ और निचले हिस्से को निचला कहाँ गया दोनों हिस्सों की चारदीवारियां पक्की ईंटो से बनाई गई थी हजारों सालों बाद आज तक उनकी दीवारें खड़ी रही दीवार बनाने के लिए मिनटों की चढ़ाई इस तरह करते थे जिससे कि दीवारें सालों साल मजबूत रहे
मिसाल के तौर पर मोहनजोदड़ों में एक खास तालाब बनाया गया था जिसे पुरातत्वविदों ने महान स्नानागार कहा था इस तालाब को बनाने में इंस्टॉल प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया था मैं इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी इस सरोवर में दो तरफ से उतरने के लिए सीढ़ियां बनाई गई थी और चारों ओर कमरे बनाए गए थे इसमें भरने के लिए पानी कुएं से निकाला जाता था उपयोग के बाद इसे खाली कर दिया जाता था शाहजहां विशिष्ट नागरिक विशेष अवसरों पर स्नान किया करते थे
हड़प्पा संस्कृति में जल निष्काष्सन
कालीबंगा और लोथल जैसे अन्य नगरों में अग्नि कुंड भी मिले हैं यह संभव है यज्ञ किए जाते होंगे मोहनजोदड़ों जैसे कुछ नगरों में बड़े-बड़े भंडार गृह भी मिले इन नगरों के घर आम तौर पर एक या दो मंजिले होते थे घर के आंगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे इसके अलावा अधिकांश घरों में अलग-अलग स्नानागार भी होते थे और कुछ घरों में भी होते थे कई नगरों में ड्राप किए हुए नाले थे इन्हें सावधानी से सीधी लाइन में बनाया गया था हर नाली में हल्की ढलान होते थे ताकि पानी आसानी से बह सके अक्सर घरों की नालियों सड़कों की नालियों से जोड़ दिया जाता था जो बाद में बड़े बड़े नालों में मिल जाती थी
नालों के ड्राई होने के कारण इन में जगह-जगह पर मेनहोल बनाए गए थे जिनके जरिए इनकी देखभाल और सफाई की जा सके घर नालियों और सड़कों का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से एक साथ ही किया जाता था इन सभी बातों को देखते हुए पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता साढ़े चार हजार साल पहले भी इतनी विकसित थी कि नगरीय जीवन हड़प्पा के नगरों में बड़ी अड़चन रहा करती होगी यहां पर ऐसे लोग रहते होंगे जो नगर के खास इमारत है बनाने की योजना में जुटे रहते थे यह संभवत यहां के शासक थे यह भी संभव है कि यह शासक लोगों को बेचकर दूर से धातु बहुमूल्य पत्थर और अन्य उपयोगी चीजें मंगवाते थे
शायद शासक लोग खूबसूरत मनको तथा सोने चांदी से बने आभूषणों जैसी कीमती चीजों को अपने पास रखते होंगे इन नगरों में लिपिक भी होते थे जो मोहरों पर तो लिखते ही थे और शायद अन्य चीजों पर भी लिखते होंगे जो बच नहीं पाए हैं है इसके अलावा नगरों में शिल्पकार स्त्री-पुरुष में रहते थे जो अपने घर हो या किसी अन्य स्थल पर तरह तरह की चीज़ें बनाते होंगे लोग लंबी यात्राएं भी करते थे और वहां से उपयोगी वस्तुएं लाते थे सुदूर देशों के किस्से कहानियां हड़प्पा सभ्यता की खुदाई के दौरान मिट्टी से बने कई खिलौने भी मिले हैं जिनसे उस समय के बच्चे खेला करते होंगे
पुरातत्वविदों को जो चीज मिली है उनमें अधिकतर पत्थर शंख तांबे कहां से सोने और चांदी जैसी धातुओं से बनाए गए थे तांबे और कांसे से औजार हथियार गहने और बर्तन बनाए जाते थे यहां मिली सबसे आकर्षक वस्तुओं में मन के 62 और फलक है हड़प्पा सभ्यता के लोग पत्थर की मोहरा बनाया करते थे इन आयताकार मोहरों पर सामान्य जानवरों के चित्र मिलते हैं हड़प्पा सभ्यता के लोग लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे जिन पर काले रंग के खूबसूरत डिज़ाइन भी बने होते थे
हड़प्पा में लोगों को कई चीजें वहीं मिल जाया करते थे लेकिन तांबा लोहा सोना चांदी और बहुमूल्य पत्थरों जैसे पदार्थों का यह दूर से आया करते थे हड़प्पा के लोग तांबे का आयात संभवत आज के राजस्थान से करते थे यहां तक कि पश्चिमी एशियाई देश ओमान से भी तांबे का आयात किया जाता था सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थर का आयात गुजरात ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था यानी कि हड़प्पा सभ्यता के लोग हजारों साल पहले आयात और निर्यात के द्वारा व्यापार भी किया करते थे
कुछ लोग नगरों के अलावा गांव में भी रहते थे वे अनाज उगाते थे और जानवर पालते थे किसान और चरवाहे शहरों में रहने वाले शासकों लेखकों और दस्तकारों को खाने के समान देते थे पौधों के अवशेषों से पता चलता है कि हड़प्पा के लोग गेहूं, जो, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों आदि उगाते थे उस समय जमीन की जुताई के लिए हल का प्रयोग एक नई बात थी हड़प्पा काल के हल तो नहीं बच पाए हैं क्योंकि वे प्राय लकड़ी से बनाए जाते थे लेकिन हल्के आकार के खिलौने मिले हैं इससे यह साबित होता है कि उस समय खेती के लिए बैलों का प्रयोग भी किया जाता था और हड़प्पा के लोग गाय भैंस भेड़ और बकरियां पालते थे
बस्तियों के आसपास तालाब और चारागाह होते थे लेकिन सूखे महीनों में मवेशियों के झुंडो को चारा पानी की तलाश में दूर-दूर तक ले जाया जाता था वेट जैसे फलों को इकट्ठा करते थे मछलियां पकड़ते थे और हिरण जैसे जानवरों का शिकार भी किया करते थे गुजरात में हड़प्पा कालीन नगर का सूक्ष्म निरीक्षण कक्ष के इलाके में खातिर देश के किनारे धोलावीरा नगर बसा था जमीन उपजाऊ थी जहां पर सफलता के कई नगर दो भागो में विभक्त थे वह धोलावीरा नगर को तीन भागों में बांटा गया था इस के हर हिस्से के चारों ओर पत्थर की ऊंची ऊंची दीवार बनाई गई थी
इसके अंदर जाने के लिए बड़े-बड़े प्रवेश द्वार थे इस नगर में एक खुला मैदान भी था जहां सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे यहां मिले कुछ अवशेषों में हड़प्पा लिपि के बड़े बड़े अक्षरों को पत्थरों में खुदा पाया गया है आम तौर पर हड़प्पा के लेख मुहूर्त जैसी छोटी वस्तुओं पर ही पाए जाते हैं गुजरात की खंभात की खाड़ी में मिलने वाली साबरमती के एक नदी के किनारे बसा लोथल नगर ऐसे स्थान पर बसा था जहां कीमती पत्थर जैसा कच्चा माल आसानी से मिल जाता था यह पत्थरों शंख और धातुओं से बनाई गई चीजों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था इस नगर में एक भंडार गृह भी था यहां पर एक इमारत भी मिली है जहां संभव है मनके बनाने का काम होता था
पत्थर के टुकड़े आधे-अधूरे मनके मनके बनाने वाले उपकरण और पूरी तरह तैयार मनके भी शामिल हैं हड़प्पा सभ्यता के अंत का रहस्य लगभग तीन हजार नौ साल पहले एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है अचानक लोगों ने नगरों को छोड़ दिया लेखन मुहर और बालों का प्रयोग बंद हो गया दूर-दूर से कच्चे माल का आयात भी काफी कम हो गया था मोहनजोदड़ों में सड़कों पर कचरे के ढेर बनने लगे जल निकास प्रणाली नष्ट हो गई और सड़कों पर ही जोगी नुमा घर बनाए जाने लगे
आखिर यह सब क्यों हुआ था यह आज भी एक रहस्य है कुछ विद्वानों का कहना है कि नदियां सूख गई थी अन्य का कहना है कि जंगलों का विनाश हो गया था इसका कारण यह हो सकता है कि इन ठेर पकाने के लिए ईंधन की जरुरत पड़ती थी जिसके लिए उन्होंने जंगलों को काटा होगा इसके अलावा मवेशियों के बड़े-बड़े झंडों से चारागाह और घास वाले मैदान समाप्त हो गए होंगे कुछ इलाकों में बाढ़ आ गई लेकिन इन कारणों से यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि सभी नगरों का अंत कैसे हो गया
क्योंकि बाढ़ और नदियों के सूखने का आंसर तो कुछ ही इलाकों में हुआ होगा ऐसा लगता है कि उस समय के शासकों का नियंत्रण समाप्त हो गया था परिवर्तन का असर बिलकुल साफ़ दिखाई देता है आधुनिक पाकिस्तान के सिंध और पंजाब की बस्तियां उजड़ गए थे कई लोग पूर्व दक्षिण के लाखों में नहीं और छोटी बस्तियों में जाकर बस गए कि इसके लगभग 14 साल बाद नगरों का विकास हुआ
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