असम में 1979 से 1985 तक बाहरी लोगों के विरुद्ध असम आंदोलन एक महत्वपूर्ण जन आंदोलन था। इसे “अखिल असम छात्र संघ” (AASU) और “असम गण संग्राम परिषद” के नेतृत्व में चलाया गया। इसका उद्देश्य असम में “बाहरी” लोगों (मुख्यतः बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों) को पहचानना, उनके नाम मतदाता सूची से हटाना और उन्हें वापस उनके देश भेजना था। इस आंदोलन की चार प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
1. अवैध प्रवासियों के खिलाफ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य:
असम आंदोलन का मुख्य मुद्दा राज्य में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की बढ़ती संख्या थी। आंदोलनकारियों का मानना था कि ये प्रवासी असम की सांस्कृतिक पहचान, भाषा और संसाधनों को खतरे में डाल रहे हैं। आंदोलन का उद्देश्य इन अवैध प्रवासियों की पहचान करना और उन्हें निर्वासित करना था।
2. शांतिपूर्ण शुरुआत और व्यापक जनसमर्थन:
इस आंदोलन की शुरुआत शांतिपूर्ण थी और इसमें असम के छात्र, किसान, महिलाएं, मजदूर और विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग शामिल थे। आंदोलन ने असम के हर क्षेत्र में व्यापक जनसमर्थन प्राप्त किया। यह आंदोलन असमिया लोगों की सांस्कृतिक और भाषायी पहचान की रक्षा के लिए संगठित हुआ।
3. हिंसक टकराव और नरसंहार:
हालांकि आंदोलन शुरू में शांतिपूर्ण था, लेकिन बाद में यह कई बार हिंसक हो गया।
- 1983 के नेली नरसंहार में हजारों लोग मारे गए।
- आंदोलन के दौरान हिंसक झड़पें, पुलिस कार्रवाई और बाहरी लोगों के खिलाफ आक्रामक रवैया सामने आया, जिससे कई जानें गईं और व्यापक अराजकता फैली।
4. असम समझौते के साथ आंदोलन का अंत:
यह आंदोलन 15 अगस्त 1985 को असम समझौते (Assam Accord) के साथ समाप्त हुआ।
- इस समझौते के तहत 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए सभी अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने का निर्णय लिया गया।
- यह समझौता असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
निष्कर्ष:
असम आंदोलन असम की सांस्कृतिक और भाषायी पहचान की रक्षा के लिए एक बड़ा आंदोलन था। हालांकि, इसने राज्य में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों को जन्म दिया, लेकिन इससे हिंसा और मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसी चुनौतियां भी सामने आईं।