भारत पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर एक सक्रिय और संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है। भारत का रुख विकासशील देशों की आवश्यकताओं और वैश्विक पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाने पर आधारित है। पर्यावरण से जुड़े तीन प्रमुख मुद्दों पर भारत के पक्ष का विश्लेषण निम्नलिखित है:
1. जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Climate Change and Emissions):
भारत का पक्ष:
- समान लेकिन विभेदित जिम्मेदारी (CBDR): भारत का कहना है कि विकसित देशों ने ऐतिहासिक रूप से औद्योगिकीकरण के दौरान पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाया है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की जिम्मेदारी समान रूप से सभी देशों पर नहीं डाली जा सकती।
- भारत ने 2015 में पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के तहत कार्बन उत्सर्जन को कम करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का संकल्प लिया।
- भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, जो विकासशील देशों के लिए एक बड़ी प्रतिबद्धता है।
विश्लेषण:
भारत का दृष्टिकोण तर्कसंगत है क्योंकि देश की एक बड़ी आबादी अब भी गरीबी में है और उसे विकास की जरूरत है। इसके बावजूद भारत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) में भारी निवेश कर रहा है।
2. वनों और जैव विविधता का संरक्षण (Forest and Biodiversity Conservation):
भारत का पक्ष:
- भारत ने पर्यावरणीय संरक्षण के लिए संविधान में प्रावधान (अनुच्छेद 48ए और 51ए) किए हैं।
- देश में वन क्षेत्र बढ़ाने और जैव विविधता संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जैसे:
- नेशनल अफ़ॉरेस्टेशन प्रोग्राम
- कैंपा फंड (Compensatory Afforestation Management and Planning Authority)
- भारत का कहना है कि जैव विविधता संरक्षण में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां विश्व की कुल जैव विविधता का लगभग 8% हिस्सा मौजूद है।
विश्लेषण:
भारत वनों और जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय रहा है। “अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस” जैसे प्रयासों ने बाघों की संख्या बढ़ाने में मदद की है। हालांकि, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण इन प्रयासों को निरंतर चुनौती मिल रही है।
3. ऊर्जा और नवीकरणीय संसाधन (Energy and Renewable Resources):
भारत का पक्ष:
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना है।
- देश ने 2030 तक 50% ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को शुरू करके भारत ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।
विश्लेषण:
भारत का ऊर्जा क्षेत्र तेजी से बदलाव कर रहा है। जहां एक तरफ कोयले जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने के प्रयास हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग बढ़ रहा है। यह वैश्विक ऊर्जा संकट के समाधान में योगदान देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
निष्कर्ष:
भारत का पर्यावरणीय दृष्टिकोण संतुलन पर आधारित है। एक ओर, यह अपनी विकासशील अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को ध्यान में रखता है, तो दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय खतरों का सामना करने के लिए वैश्विक प्रयासों में योगदान करता है। भारत का रुख “विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन” पर आधारित है, जो उसकी आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है।