सोवियत संघ के विघटन (1991) के बाद संपूर्ण विश्व में जो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ, उसे अक्सर ध्रुवीय विश्व के रूप में वर्णित किया जाता है। इसका मतलब यह था कि सोवियत संघ की समाप्ति के बाद दुनिया में केवल एक ही प्रमुख सुपरपावर का प्रभुत्व कायम हुआ, और वह थी संयुक्त राज्य अमेरिका। इस परिवर्तन ने वैश्विक राजनीति, कूटनीति, और आर्थिक व्यवस्थाओं को एक नई दिशा में मोड़ दिया। इसे “Unipolar World” (एकध्रुवीय विश्व) कहा जाता है, और इसके मुख्य पहलुओं को समझने के लिए हमें निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
1. सोवियत संघ का विघटन और शीत युद्ध का समापन
- सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीत युद्ध (Cold War) समाप्त हो गया, जो लगभग 45 वर्षों तक दुनिया की प्रमुख वैश्विक राजनीति को प्रभावित करता था। सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संघर्ष ने दुनिया को दो खेमों में विभाजित कर दिया था: एक खेमे में सोवियत संघ और दूसरे में अमेरिका और उसके सहयोगी।
- सोवियत संघ के समाप्त होने के बाद, शीत युद्ध की संरचनाएँ खत्म हो गईं, और विश्व में एक नई कूटनीतिक व्यवस्था की आवश्यकता महसूस हुई।
2. संयुक्त राज्य अमेरिका का वैश्विक प्रभुत्व
- सोवियत संघ के गिरने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया की एकमात्र सुपरपावर के रूप में उभरा। इसका अर्थ था कि अमेरिका आर्थिक, सैन्य, और राजनीतिक दृष्टिकोण से दुनिया पर प्रमुख प्रभाव डालने वाला देश बन गया था।
- अमेरिका का वैश्विक प्रभुत्व न केवल मूल्य आधारित राजनीति (लोकतंत्र, स्वतंत्रता, मानवाधिकार) को बढ़ावा देने के रूप में था, बल्कि उसने विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र, नाटो (NATO) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से अपने प्रभाव को भी बढ़ाया।
- 1980-90 के दशक में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने संकीर्ण अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक सिद्धांत का प्रचार किया और अपनी सैन्य शक्ति और आर्थिक बल के माध्यम से वैश्विक राजनीति में सबसे प्रभावशाली स्थिति बनाई।
3. यूरोप में एकता और NATO का विस्तार
- सोवियत संघ के विघटन और यूरोपीय समाजवाद के पतन के बाद, पश्चिमी यूरोप ने यूरोपीय संघ (European Union) के रूप में अपनी आर्थिक और राजनीतिक एकता को मजबूत किया। इसके साथ ही, नाटो (NATO) का विस्तार भी हुआ, जिसमें पूर्व सोवियत क्षेत्र के देशों ने भी सदस्यता ली।
- इसने पूर्वी यूरोप को लोकतांत्रिक और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर मोड़ा और सोवियत विचारधारा को समाप्त किया। हालांकि रूस ने इस विस्तार को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा माना और इसे चुनौती दी, लेकिन वैश्विक स्तर पर अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रभाव बढ़ गया।
4. सैन्य और रणनीतिक प्रभुत्व
- सोवियत संघ के विघटन के बाद, अमेरिका का सैन्य प्रभुत्व अभूतपूर्व रूप से बढ़ा। अमेरिका के पास दुनिया की सबसे शक्तिशाली सैन्य मशीन थी, और उसने विभिन्न वैश्विक संघर्षों में अपनी भागीदारी बढ़ाई, जैसे कि गुल्फ युद्ध (1990-1991) और बोस्निया और कोसोवो युद्ध।
- 1990 के दशक के अंत में और 2001 में 9/11 के हमलों के बाद अमेरिकी सैन्य प्रभाव और भी अधिक बढ़ा, जब उसने अफगानिस्तान और इराक में सैन्य अभियानों की शुरुआत की। अमेरिका के नेतृत्व में नाटो और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन सक्रिय रूप से वैश्विक सैन्य गतिविदियों में शामिल हुए।
5. वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिकी नेतृत्व
- सोवियत संघ के विघटन के बाद, अमेरिका के नेतृत्व में ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) का दौर तेजी से बढ़ा। विश्व व्यापार संगठन (WTO), मल्टीनेशनल कंपनियाँ, और तकनीकी विकास ने अमेरिका को विश्व की आर्थिक राजधानी बना दिया।
- इस दौरान, अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की नीतियाँ लागू की गईं, और बाजार आधारित अर्थव्यवस्थाएँ दुनिया भर में स्थापित हुईं। अमेरिका ने अपनी डॉलर मुद्रा के माध्यम से वैश्विक व्यापार में प्रमुख भूमिका निभाई।
6. राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव
- एकध्रुवीय व्यवस्था में, अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर कूटनीतिक नेतृत्व का दावा किया। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में अमेरिका का प्रभाव अधिक बढ़ा और उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी शक्ति का भरपूर उपयोग किया।
- इसके अलावा, अमेरिका ने लोकतंत्र, मानवाधिकार और आर्थिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया, जो कि अमेरिका के विदेश नीति का प्रमुख हिस्सा बन गए। अमेरिका ने कई देशों में लोकतांत्रिक सरकारों के समर्थन में हस्तक्षेप किया।
7. रूस और चीन की चुनौती
- हालांकि अमेरिका वैश्विक प्रभुत्व की ओर बढ़ रहा था, लेकिन रूस और चीन जैसी शक्तियाँ धीरे-धीरे अपने प्रभाव का विस्तार करने लगीं।
- रूस ने सामरिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से पश्चिमी ताकतों से विरोध किया, विशेषकर यूक्रेन और सीरिया जैसे संघर्षों में। रूस ने शीत युद्ध के बाद के संकटों से निपटने के लिए अपनी शक्ति को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया।
- चीन ने भी अपनी आर्थिक शक्ति के माध्यम से वैश्विक राजनीति में अधिक भूमिका निभानी शुरू की। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और आर्थिक विकास ने उसे एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बना दिया, हालांकि वह अमेरिका के समान सैन्य शक्ति के मामले में पीछे था।
निष्कर्ष:
सोवियत संघ के विघटन के बाद का युग एक ध्रुवीय विश्व के रूप में सामने आया, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र सुपरपावर के रूप में स्थापित हुआ। इसने दुनिया को आर्थिक, राजनीतिक, और सैन्य दृष्टिकोण से एक नई दिशा में ले जाया। हालांकि, समय के साथ रूस और चीन जैसी शक्तियाँ अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देने लगीं, लेकिन 1991 के बाद का दौर एकध्रुवीय व्यवस्था के रूप में चित्रित किया गया, जहाँ अमेरिका ने वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव स्थापित किया।