हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है?

हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है?
हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है?

संविधान की आवश्यकता एवं महत्व

हमे संविधान की आवश्यकता इसलिए भी जरुरी है क्योंकि इसके माध्यम से हम अपने जीवन के मूल रूपों को समझ सकते है। सभी लोग समाज के प्रति ऐकता की भावना रख सकते है। और अपने देश के इस व्यवस्था प्रणाली के नियम-कानून को समझ सकते है।

हमें संविधान की जरूरत क्यों है कोई तीन बिंदु लिखें

(i) संविधान का पहला काम यह है कि वह बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह उपलब्ध कराये जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे। आखिरी और शायद सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि संविधान किसी समाज की बुनियादी पहचान होता है।

इसका अर्थ यह है कि संविधान के माध्यम से ही किसी समाज की एक सामूहिक इकाई के रूप में पहचान होती है। इस सामूहिक पहचान को बनाने के लिए हमें इस संबंध में कुछ बुनियादी नियमों पर सहमत होना पड़ता है कि हम पर शासन कैसे होगा और शासितों में कौन-कौन से लोग होंगे।

संविधान बनने के पहले हमारी अन्य अनेक प्रकार की पहचान या अस्मिताएँ होती हैं। लेकिन कुछ बुनियादी नियमों और सिद्धांतों पर सहमत होकर हम अपनी मूलभूत राजनीतिक पहचान बनाते हैं। दूसरा, संवैधानिक नियम हमें एक ऐसा विशाल

ढाँचा प्रदान करते हैं जिसके अंतर्गत हम अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं, लक्ष्य और स्वतंत्रताओं का प्रयोग करते हैं। संविधान आधिकारिक बंधन लगा कर यह तय कर देता है कि कोई क्या कर सकता है और क्या नहीं। अतः संविधान हमें एक नैतिक पहचान भी देता है। तीसरा, और अंतिम, अब शायद यह संभव हो सका है कि अनेक बुनियादी राजनीतिक और नैतिक नियम विश्व के सभी प्रकार के संविधानों में स्वीकार किये गये हैं।

(ii) संविधान का दूसरा काम यह स्पष्ट करना है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी। संविधान यह भी तय करता है कि सरकार कैसे निर्मित होगी।

सरकार के लोकतांत्रिक रूप की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि लोग अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित करते हैं और उनमें अतिम निर्णय लेने को शक्ति होती है। यह देश के शासन में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करता है। यही कारण है कि लोकतंत्र को जनता का शासन भी कहा जाता है। यदि किसी देश में निर्वाचित संसद और सरकार हो, लेकिन वास्तविक शयितयाँ उन लोगों में निहित हो जो निर्वाचित नहीं हैं तो इसे जनता का शासन नहीं कहा जा सकता।

(iii) अतः संविधान का तीसरा काम यह है कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उसका उल्लंघन नहीं कर सकती।

संविधान सरकार की शक्तियों को कई तरह से सीमित करता है। सरकार की शक्तियों को सीमित करने का सबसे सरल तरीका यह है कि नागरिकों के रूप में हमारे मौलिक अधिकारों को स्पष्ट कर दिया जाए और कोई भी सरकार कभी भी उनका उल्लंघन न कर सके। इन अधिकारों का वास्तविक स्वरूप और व्याख्याएँ भिन्न-भिन्न संविधानों में बदलती रहती हैं। लेकिन अधिकतर संविधानों में कुछ विशेष मौलिक अधिकार सदैव पाये जाते हैं। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना किसी कारण के गिरफ़्तार करने के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त है। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक मूलभूत सीमा है।

(iv) संविधान का चौथा काम यह है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जिससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके।

संविधान की आवश्यकता एवं मुख्य कार्य

संविधान सभा द्वारा बनाया गया भारत का संविधान देश की जनता की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप है। संविधान का कार्य यही है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जिससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके। संविधान की आवश्यकता इसलिए भी है क्योकि देश की जनता के कल्याण के लिए यहाँ भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है, वहीं राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों का भी प्रावधान किया गया है।

इन सिद्धान्तों का उद्देश्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक, कानूनी और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है। मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों के अतिरिक्त भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, वयस्क मताधिकार, अनुसूचित जातियों व जनजातियों के कल्याण के प्रति विशेष ध्यान रखा गया है। देश में निवास कर रहे प्रत्येक धर्म के लोगों को अपने-अपने धर्म पर चलने की पूर्ण स्वतन्त्रता है।

संविधान की आवश्यकता में देश के प्रत्येक नागरिक को कानून के सम्मुख समानता का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, सभा और सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता तथा संघ और समुदाय बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस प्रकार भारत का संविधान देश की जनता की आशाओं व आकांक्षाओं के अनुरूप है।

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