गठबंधन युग (Coalition Era) भारत में 1990 के दशक के बाद उभरा, जब एकल पार्टी बहुमत के दौर का अंत हुआ और विभिन्न राजनीतिक दलों को साथ मिलकर सरकारें बनानी पड़ीं। इस दौरान, विभिन्न विचारधाराओं के बावजूद, राजनीतिक दलों के बीच कुछ प्रमुख मुद्दों पर सहमति बनी। इनमें चार मुख्य मुद्दे हैं:
1. आर्थिक उदारीकरण और सुधार:
1991 के बाद आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई, जिसमें उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण (LPG reforms) को प्राथमिकता दी गई।
अधिकांश दलों ने इन सुधारों का समर्थन किया, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर मजबूत हुई।
हालांकि विभिन्न दलों के बीच सुधारों की गति को लेकर मतभेद हो सकते थे, लेकिन आर्थिक प्रगति के लिए इनका सामान्य समर्थन बना रहा।
2. संसदीय लोकतंत्र की मजबूती:
गठबंधन सरकारों के कारण सत्ता में साझेदारी और विचार-विमर्श की प्रक्रिया बढ़ी, जिससे संसदीय लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हुईं।
विभिन्न दलों ने संविधान के बुनियादी ढांचे और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रति प्रतिबद्धता बनाए रखी।
3. सामाजिक न्याय और आरक्षण:
मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद, सामाजिक न्याय की अवधारणा पर राजनीतिक दलों के बीच व्यापक सहमति बनी।
ओबीसी, अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण और कल्याणकारी नीतियों को अधिकतर दलों ने समर्थन दिया।
यह सहमति भारत में जातीय और सामाजिक असमानताओं को कम करने के प्रयासों में महत्वपूर्ण रही।
4. गठबंधन राजनीति का स्वीकार्य होना:
गठबंधन सरकारें राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने का एक सामान्य तरीका बन गईं।
अधिकांश दलों ने गठबंधन धर्म का पालन करने और सहयोग की राजनीति को बढ़ावा देने की आवश्यकता को समझा।
इससे विभिन्न दलों को सत्ता में भागीदारी और राष्ट्रीय मुद्दों पर सहमति बनाने का अवसर मिला।
निष्कर्ष – इन मुद्दों पर बनी सहमति ने न केवल गठबंधन सरकारों को सफल बनाया, बल्कि भारत की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को स्थिरता और दिशा प्रदान की।