अफगानिस्तान संकट से आप क्या समझते हैं?

अफगानिस्तान संकट एक लंबी और जटिल ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है, जो अफगानिस्तान में राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक अस्थिरता के कारण उत्पन्न हुआ। यह संकट विभिन्न समयों पर विभिन्न कारणों से गहरा होता गया, जिसमें आंतरिक संघर्ष, बाहरी हस्तक्षेप, युद्ध, और आतंकवाद शामिल हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

1. इतिहास और साम्राज्यवादी हस्तक्षेप:

अफगानिस्तान का इतिहास संघर्ष और बाहरी आक्रमणों से भरा हुआ रहा है। 19वीं शताबदी में ब्रिटिश साम्राज्य और रूस के बीच ‘ग्रेट गेम’ (Great Game) के दौरान अफगानिस्तान को एक रणनीतिक स्थान के रूप में देखा गया। इस दौरान ब्रिटेन ने अफगानिस्तान में कई आक्रमण किए। 20वीं शताबदी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप हुआ, जिसने 1979 में अफगानिस्तान पर आक्रमण किया। इसका परिणाम 1989 में सोवियत संघ की हार और युद्ध के बाद गंभीर अस्थिरता के रूप में हुआ।

2. तालिबान का उभार और सत्ता में आना:

1990 के दशक में, अफगानिस्तान एक बार फिर गृहयुद्ध और अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए तालिबान (Taliban) ने 1996 में अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा कर लिया। तालिबान एक सख्त इस्लामी शासन स्थापित करना चाहता था और उसने शरिया कानून को लागू किया, जिससे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन और धार्मिक असहमति को दबाने का काम हुआ। तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ा, खासकर 9/11 के बाद।

3. 9/11 और अमेरिकी हस्तक्षेप:

2001 में 11 सितंबर को हुए आतंकवादी हमलों (9/11) के बाद, अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया। यह हमला तालिबान शासन द्वारा अल-कायदा के आतंकवादी नेटवर्क को शरण देने के कारण किया गया था। इसके बाद अफगानिस्तान में एक नए प्रशासन का गठन हुआ और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया गया। इस अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की गई, लेकिन युद्ध और अस्थिरता का दौर जारी रहा।

4. अमेरिकी और नाटो सैनिकों की उपस्थिति:

अमेरिका और नाटो देशों ने अफगानिस्तान में सैन्य उपस्थिति बनाए रखी, ताकि तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों को कमजोर किया जा सके। इसके बावजूद, अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति लगातार बिगड़ती गई। भ्रष्टाचार, कमजोर सरकार, और बढ़ते आतंकी हमलों ने अफगानिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ा दीं।

5. तालिबान का पुनः उभार (2021):

अमेरिका और नाटो के सैनिकों की 2021 में अफगानिस्तान से वापसी की योजना के तहत, तालिबान ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति को पुनः स्थापित करना शुरू किया। अमेरिकी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान ने तेजी से अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया। अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार को अपदस्थ कर दिया।

6. अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति:

तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद, अफगानिस्तान में मानवीय संकट और अस्थिरता की स्थिति और गंभीर हो गई है। तालिबान शासन के तहत:

  • महिलाओं के अधिकारों में गंभीर हनन हुआ, जिसमें शिक्षा और कामकाजी अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए गए।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी रहा, जिसमें असहमति व्यक्त करने वालों को दबाना, गिरफ्तार करना, और प्रताड़ित करना शामिल था।
  • आर्थिक संकट भी बढ़ा, जिसमें वैश्विक मदद का अचानक रुक जाना और बुनियादी ढांचे की विफलता शामिल थी।

7. आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता:

तालिबान का उभार और अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति खराब होने से आतंकवादी समूहों को लाभ हुआ है। यह क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण बन सकता है, जिससे पाकिस्तान, भारत, ईरान, और मध्य एशियाई देशों को भी खतरा हो सकता है। अफगानिस्तान का यह संकट केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी प्रभाव डालता है।

8. मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:

तालिबान के शासन के बाद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता और प्रतिक्रिया बढ़ गई। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अफगान नागरिकों की स्थिति और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर चिंता व्यक्त करती रही हैं। कई देशों ने तालिबान शासन को वैधता देने से इनकार किया और अफगानिस्तान को दी जाने वाली सहायता को प्रतिबंधित कर दिया।

9. मानवता संकट:

तालिबान के नियंत्रण के बाद अफगानिस्तान में मानवीय संकट बढ़ा है। कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और शिक्षा का अभाव अफगान नागरिकों के लिए दैनिक समस्याएं बन गए हैं। महिलाएं और लड़कियां विशेष रूप से पीड़ित हैं, जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसरों से वंचित किया गया है।

निष्कर्ष:

अफगानिस्तान संकट एक बहुआयामी मुद्दा है, जिसमें आंतरिक राजनीतिक संघर्ष, बाहरी हस्तक्षेप, आतंकवाद, और मानवीय संकट शामिल हैं। यह संकट केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा, मानवाधिकार, और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गया है। अफगानिस्तान का भविष्य अब इस बात पर निर्भर करता है कि तालिबान अपने शासन को किस प्रकार संचालित करता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस संकट के समाधान के लिए क्या कदम उठाता है।